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आदिवासियों के लिए प्रकृति का वरदान है ये पेड़, बिना लागत होती है दो फसली कमाई

झारखंड के आदिवासियों के लिए महुआ प्रकृति के वरदान से कम नहीं है. इसके जरिए आदिवासियों को बिना किसी परिश्रम और लागत के कमाई हो जाती है. इस पेड़ के फल पेट की भूख शांत करने के अलावा इलाज के काम भी आते हैं. इतना ही नहीं इसका इस्तेमाल सांप को भगाने में भी किया जाता है.

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Published : Jun 24, 2019, 4:49 PM IST

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लातेहारः किसान दिन भर खेत में मेहनत करने के बाद एक फसल की कमाई हासिल कर पाते हैं लेकिन झारखंड में प्रकृति ने एक पेड़ के तौर पर ऐसा वरदान दिया है, जिससे आदिवासियों को आसानी से दो फसलों की कमाई मिल सकती है. महुआ के पेड़ से मिले फल के अलावा बीज से भी कमाई होती है. स्थानीय बोली में इसे डोरी कहते है. इसका इस्तेमाल तेल बनाने में किया जाता है, जिसकी बहुत डिमांड है.

वीडियो में देखिए पूरी खबर

लातेहार में महुआ के पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. आदिवासियों के लिए ये किसी कल्पवृक्ष से कम नहीं है. इसके फूल, फल, बीज और लकड़ी सभी चीजें काम में आती हैं. मार्च और अप्रैल महीने में महुआ के फूल झरते हैं. इसका इस्तेमाल शराब के अलावा कई पकवान और लड्डू बनाने में भी होता है जो स्वादिष्ट होने के साथ सेहतमंद भी है. स्थानीय लोग इसे गरीबों का किशमिश कहते हैं. महुआ के फल को मोइया या डोरी कहते हैं. डोरी से तेल निकाला जाता है और बचे हुए अवशिष्ट को जानवरों को खिलाने के साथ साथ सांप भगाने के काम में भी लाया जाता है.

जून माह के दूसरे सप्ताह से ग्रामीण डोरी चुनने का काम शुरू कर देते हैं और करीब 15 दिन के अंदर डोरी से तेल निकालने का काम भी किया जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि डोरी के तेल से सभी प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. इसके अलावे बुखार लगने पर इसका तेल शरीर में लगाने से बुखार खत्म हो जाता है.

ये भी पढ़ें-मिलिए लातेहार के 'दशरथ मांझी' से, सरकार ने नहीं दिया साथ तो खुद ही खोद दिया कुआं

दवा के तौर पर इस्तेमाल

आयुर्वेद में महुआ को वातनाशक और पाष्टिक बताया गया है. इसका इस्तेमाल पेट की बीमारियों में और दर्द निवारक के तौर पर किया जाता है. सदर अस्पताल के डॉक्टर हरेंद्र चंद्र ने बताया कि डोरी काफी उपयोगी है और इसके इस्तेमाल से कोई हानि नहीं होती.

महुआ का पेड़ लगाने से लेकर फूल और फल प्राप्त करने तक किसी मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती. ये ऐसा पेड़ है जिससे फूल और फल के रूप में दो बार फसल मिलती है. आदिवासियों को बिना पूंजी लगाए महुआ के जरिए कई फायदे मिलते हैं. यही वजह है कि महुआ आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है.

लातेहारः किसान दिन भर खेत में मेहनत करने के बाद एक फसल की कमाई हासिल कर पाते हैं लेकिन झारखंड में प्रकृति ने एक पेड़ के तौर पर ऐसा वरदान दिया है, जिससे आदिवासियों को आसानी से दो फसलों की कमाई मिल सकती है. महुआ के पेड़ से मिले फल के अलावा बीज से भी कमाई होती है. स्थानीय बोली में इसे डोरी कहते है. इसका इस्तेमाल तेल बनाने में किया जाता है, जिसकी बहुत डिमांड है.

वीडियो में देखिए पूरी खबर

लातेहार में महुआ के पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. आदिवासियों के लिए ये किसी कल्पवृक्ष से कम नहीं है. इसके फूल, फल, बीज और लकड़ी सभी चीजें काम में आती हैं. मार्च और अप्रैल महीने में महुआ के फूल झरते हैं. इसका इस्तेमाल शराब के अलावा कई पकवान और लड्डू बनाने में भी होता है जो स्वादिष्ट होने के साथ सेहतमंद भी है. स्थानीय लोग इसे गरीबों का किशमिश कहते हैं. महुआ के फल को मोइया या डोरी कहते हैं. डोरी से तेल निकाला जाता है और बचे हुए अवशिष्ट को जानवरों को खिलाने के साथ साथ सांप भगाने के काम में भी लाया जाता है.

जून माह के दूसरे सप्ताह से ग्रामीण डोरी चुनने का काम शुरू कर देते हैं और करीब 15 दिन के अंदर डोरी से तेल निकालने का काम भी किया जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि डोरी के तेल से सभी प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. इसके अलावे बुखार लगने पर इसका तेल शरीर में लगाने से बुखार खत्म हो जाता है.

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दवा के तौर पर इस्तेमाल

आयुर्वेद में महुआ को वातनाशक और पाष्टिक बताया गया है. इसका इस्तेमाल पेट की बीमारियों में और दर्द निवारक के तौर पर किया जाता है. सदर अस्पताल के डॉक्टर हरेंद्र चंद्र ने बताया कि डोरी काफी उपयोगी है और इसके इस्तेमाल से कोई हानि नहीं होती.

महुआ का पेड़ लगाने से लेकर फूल और फल प्राप्त करने तक किसी मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती. ये ऐसा पेड़ है जिससे फूल और फल के रूप में दो बार फसल मिलती है. आदिवासियों को बिना पूंजी लगाए महुआ के जरिए कई फायदे मिलते हैं. यही वजह है कि महुआ आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है.

Intro:प्रकृति का उपहार "डोरी"---पेट की भूख के साथ सांपों का भय भी करता है दूर लातेहार. प्रकृति हमेशा मानव जाति को अनुपम उपहार देती रहती है. ऐसा ही एक उपहार है डोरी का फल. डोरी मनुष्य के पेट की भूख मिटाने के साथ साथ सांपों के भय से भी मुक्ति प्रदान करता है.


Body:दरअसल डोरी का फल महुआ के पेड़ पर लगता है. महुआ का सीजन खत्म होने के बाद पेड़ पर डोरी फलते हैं. इस डोरी से ग्रामीणों को खाद्य तेल भरपूर मात्रा में मिल जाती है .इसके अलावे तेल बनाने के बाद जो अवशिष्ट पदार्थ बच जाते हैं. उस अशिष्ट पदार्थ के खड़ी को जानवरों को खिलाने के साथ साथ सांप भगाने के काम में भी लाया जाता है. लातेहार में महुआ के पेड़ काफी मात्रा में पाए जाते हैं ऐसे में जून माह के दूसरे सप्ताह से ग्रामीणों के द्वारा डोरी चुनने का काम आरंभ कर दिया जाता है और 15 दिन के अंदर डोरी से तेल निकालने का काम भी किया जाता है. ग्रामीण महिला सबीना बीबी ने कहा कि डोरी के तेल से सभी प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं .इसके अलावे बुखार लगने पर इसका तेल शरीर में लगाने से बुखार खत्म हो जाता है. वही ग्रामीण सूबे उरांव ने कहा कि डोरी के खरी जलाने से सांप भाग जाते हैं. इधर इस संबंध में सदर अस्पताल के डीएस डॉक्टर हरेन चंद्र ने कहा कि डोरी का फसल काफी उपयोगी होता है. इसके खाने से किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती. jh-lat-dori latehar-visual and byte-jh 10010 byte- सबीना बीवी byte- सूबे उरांव byte- डॉ हरेंद्र चंद्र


Conclusion:बिना पूंजी लगाए डोरी के माध्यम से ग्रामीणों को कई महीने का खाद्य तेल मिल जाता है. इससे ग्रामीणों को इस महंगाई के दौर मे भी काफी सहूलियत होती है.
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