कोडरमाः जिले के झुमरी तिलैया का कलाकंद, एक ऐसी मिठाई है जिसके बारे में लोग जानते भी है और पहचानते भी. लेकिन कम ही लोग इसके असली जायके से वाकिफ होंगे. कोडरमा का कलाकंद, अंग्रेजों के शासन काल से ही यहां की पहचान है. कलाकंद बनाने की शुरुआत यहीं से हुई थी. जिसके बाद पूरे देश में कलाकंद विख्यात हुआ.
झुमरी तिलैया कलाकंद की जननी
झुमरी तिलैया में केसरिया और सादा कलाकंद के कई सुप्रसिद्ध दुकानें हैं. कलाकंद मिठाई से न सिर्फ भारत के लोग वाकिफ हैं, बल्कि विदेशों में भी झुमरी तिलैया के कलाकंद की अपनी पहचान है. अंग्रेजों के शासनकाल में झुमरी तिलैया का यह कलाकंद और इसकी मिठास ब्रिटिश अधिकारियों की पहली पसंद थी. कोडरमा के झुमरी तिलैया शहर में ही सबसे पहले कलाकंद मिठाई बनना शुरू हुआ था. हालांकि 1960 के बाद से लगातार कलाकंद को लेकर यहां का कारोबार आगे बढ़ रहा है.
काफी समय से कलाकंद के व्यवसाय से जुड़े ओम खेतान बताते हैं कि आज भी जिनके घरवाले विदेश में रहते हैं, वे यहां से कलाकंद जरूर ले जाते हैं. ओम खेतान की माने तो यहां की आबो हवा कलाकंद के स्वाद को अनोखा बनाती है.
पूरे देश में सबसे अलग है यहां के कलाकंद का स्वाद
हालांकि कई दशक पहले कोडरमा में कलाकंद का बनना शुरू हुआ था. जिसके बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी अब कलाकंद बननी और बिकनी शुरू हो गई है. लेकिन जो जायका कोडरमा के कलाकंद में है, वह अपने आप में अनोखा है. इसे लेकर लोगों के अपने-अपने अनुभव भी हैं. पुणे में नौकरी करने वाले महेश बताते हैं कि वे जब भी यहां आते हैं, यहां का कलाकंद पुणे ले जाकर अपने दोस्तों को खिलाते हैं.
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त्योहारों में सबसे अधिक कलाकंद की डिमांड
त्योहारों में इसकी बिक्री तो परवान पर होती है. कई लोग तो एडवांस में इसकी खरीदारी कर ले जाते हैं. लोगों का कहना है कि यहां के कलाकंद का स्वाद कहीं और नहीं मिल सकता. झुमरी तिलैया के सुप्रसिद्ध कलाकंद की मिठास लोगों के दिलों में बसी है. कलाकंद शुद्ध दूध से तैयार किया जाता है और इसमें चीनी की मात्रा भी काफी कम होती है. बावजूद इसके इसका अनोखा स्वाद कई दशकों से लगातार बरकारार है.