कोडरमाः जिला के मरकच्चो प्रखंड का शेरसिंगा गांव, चारों तरफ जंगलों से घिरे होने के कारण दशको पहले तक इस गांव में शेर भी दिखा करते थे. इस कारण इस गांव का नाम शेरसिंगा पड़ा. जंगलों से घिरे होने के साथ-साथ यह नक्सलियों के आवागमन का मुख्य मार्ग भी हुआ करता था. लेकिन कहते हैं न कि अगर मन में लगन हो और एक मार्गदर्शक मिल जाए तो लोग अपनी राह आसान बना लेते हैं. कोडरमा डीसी आदित्य रंजन के मार्गदर्शन पर इस गांव के लोगों ने जल संरक्षण के लिए एक छोटी सी शुरुआत की और इस गांव के लोग स्वालंबन बनाने की राह पर निकल पड़े हैं.
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अब तक इस गांव के लोगों ने स्वालंबन की दिशा में तकरीबन 700 टीसीबी की खुदाई की है साथ ही गांव में सड़क के दोनों किनारे हजारों पौधे लगाए हैं. इसके अलावे गांव के लोग जंगलों की रक्षा के लिए वन देवी की पूजा भी करते हैं. इस गांव में पूरी तरह से मेढ़बंदी, कुल्हाड़बंदी और शराबबंदी लागू है और एकजुटता के साथ गांव के लोग आत्मनिर्भर बनने की कवायद में जुटे हुए हैं.
कोडरमा के शेरसिंगा गांव के आसपास के रहने वाले लोग भी यह मानने लगे हैं कि इस गांव में काफी कुछ बदल गया है. जहां कल तक इस गांव के लोग समस्याओं को लेकर अधिकारी और जनप्रतिनिधियों से फरियाद करते नजर आते थे. आज उसी गांव के लोग उन समस्याओं को खुद ब खुद दूर कर रहे हैं. गांव को स्वालंबन बनाने के लिए लोगों की लगन और मेहनत को देखते हुए पदाधिकारी खुद गांव के लिए सरकारी योजनाओं का निर्धारण कर रहे हैं.
उपायुक्त आदित्य रंजन ने बताया कि स्वालंबन के पीछे सिर्फ एक ही मकसद है कि लोगों की सरकारी योजनाओं पर निर्भरता कम हो. जब गांव ही समृद्ध होगा, लोगों की आमदनी अच्छी होगी तो यहां से युवाओं को पलायन करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. जिले के तकरीबन डेढ़ सौ गांव में स्वालंबन के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इनमें से कुछ गांव स्वालंबी हो चुके हैं, तो कुछ इस राह में काफी आगे निकल चुके हैं. स्वालंबन के तहत गांव में साफ सफाई से लेकर जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जा रहें हैं.