कोडरमा: आंखों के बिना जिंदगी जीना बहुत मुश्किल है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने देते. वे कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे वे लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाते हैं. ऐसी ही कहानी कोडरमा निवासी सूरज पंडित की है. सूरज पंडित की आंखों की रोशनी चली गई है. उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता. लेकिन आंखों के बिना भी वे अपनी कला से मिट्टी को अलग-अलग आकार दे सकते हैं. कहा जा सकता है कि सूरज पंडित मन की आंखों से मिट्टी को आकार देते हैं.
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सूरज पंडित कोडरमा के डोमचांच प्रखंड के रहने वाले हैं. 13 साल की उम्र में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन उन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को कभी अपने साहस और जज्बे के आड़े नहीं आने दिया. सूरज पिछले 40 सालों से अपने पुश्तैनी कारोबार को जिंदा रखे हुए हैं. सूरज छठ और विवाह समारोहों में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दीये सहित मिट्टी के बर्तन तैयार करते हैं. वे परिवार के सदस्यों की मदद से हर दिन अलग-अलग मिट्टी के बर्तन तैयार करते हैं. जो भी उनके बारे में सुनता है वो उनसे मिलने जरूर आता है.
पूर्वजों से सीखी कला को रखा है जीवित: चाक की तेज गति से मिट्टी को हर आकार देने में जुटे सूरज पंडित ने बताया कि वे अपने पूर्वजों से सीखी कला को आज भी जीवित रखे हुए हैं और अनुभव के आधार पर मन की आंखों से कई मिट्टी के दीये और मिट्टी के बर्तन बनाते हैं. परिवार के सदस्य बाजार जाकर इन बर्तनों को बेचते हैं, जिससे परिवार का भरण-पोषण होता है. उन्होंने बताया कि वह आंखों से देख नहीं सकते, इसलिए बाहर जाकर कोई दूसरा काम नहीं कर सकते. हालांकि, अनुभव के आधार पर उन्होंने बिना देखे ही अपने पुश्तैनी कारोबार को सालों तक जिंदा रखा है. जिसमें मुनाफा भले ही कम हो, लेकिन आत्मसंतुष्टि बहुत मिलती है.
उपायुक्त ने दिया मदद का आश्वासन: सूरज की हिम्मत और जज्बे को देखकर उपायुक्त मेघा भारद्वाज ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया है. उपायुक्त मेघा भारद्वाज ने कहा कि सूरज पंडित को विश्वकर्मा योजना से लाभ मिलेगा. साथ ही यह भी प्रयास किया जाएगा कि उनके द्वारा निर्मित उत्पादों को अच्छी कीमत मिले।. अगर हौसला और जज्बा हो तो कोई भी अपनी मंजिल पा सकता है, भले ही सूरज की आंखे न चमक रहें हो लेकिन उनके बनाए दीयों से कई घर रोशन हो रहे हैं.