खूंटीः झारखंड के खूंटी जिले में लोग कोरोना को भगाने के लिए रात में घर से निकल जा रहे हैं. बताया जाता है कि जब भी कोई विपदा आती है तो आदिवासी समाज के लोग इसे भगाने के लिए रातों में अपने घरों से एक साथ निकल आते हैं. उनके अनुसार कुछ परंपराएं आदिकाल से चली आ रही है. इसी क्रम में रविवार की रात भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातु में बच्चे, युवा और बुजुर्ग हाथों में पारंपरिक हथियार और लाठी ठंडा लेकर कोरोना भगाने निकल पड़ते हैं.
सबसे पहले गांव के लोग उलिहातु अखरा के पास एकत्रित हुए. उसके बाद उन्होंने एक साथ कहने लगे कोरोना नीर में (कोरोना भागो), आले दिशुम आलोम हिजुआ (हमारे देश में मत आओ) का शोर मचाते हुए उलिहातु और गेरने के सीमांत तक गए. जिसके बाद सारे लोग वापस लौट आये परंपरा के अनुसार कोरोना को भगाने के लिए पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ भी किया जा रहा है. वहीं अगले दिन गेरने गांव के लोग भी अपने गांव से कोरोनो को भगाने के लिए जुलूस निकालेंगे.
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बीमारियों को भगाने के लिए अपनाते हैं ये तरिका
वैसे तो सभी आदिवासी बहुल गांवों में साल भर के लिए मनुष्य और मवेशियों को होने वाली बीमारियों को भगाने के लिए रोगहार नाम की परंपरा को दोहराया जाता है, जिसमें सुबह उठकर महिलाएं घरों की साफ-सफाई करती हैं. घर के पुराने और टुटे मिट्टी के बर्तनों, झाड़ू आदि माथे पर रखकर, चेहरे पर राख और सिंदुर लगाकर गांव के सीमान तक जाकर टुटे मिट्टी के बर्तनों और झाडू को फेंक आती हैं. आदिवासियों में विश्वास है कि ऐसा करने से बीमारी गांव में नहीं आती है, लेकिन विशेष महामारी के मौके पर विशेष रूप से बीमारी को भगाने की परंपरा भी है. आदिवासियों में ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन इस युग मे इसे अंधविश्वास ही कह सकते हैं.