खूंटी: जिले में इन दिनों हर जगह धान रोपनी का कार्य जोरों पर है, खेतों में बेहतर फसल के लिए आदिवासी समुदाय परंपरागत तरीके से धान की रोपाई करता है. धान को लेकर पूजा हर तरफ दिखाई पड़ती है, लेकिन आदिवासी समुदाय में पूरे सालभर धान की खेती को लेकर विशेष तैयारी की जाती है. धान रोपाई के वक्त परदेश में रहने वाले आदिवासी समुदाय भी अपने-अपने गांव लौटते हैं और परंपरागत तरीके धान रोपाई के कार्यक्रम में भाग लेते हैं.
क्या है परंपरा
आदिवासी समुदाय के लोग प्रत्येक राजस्व ग्राम में रोपनी और बिचड़ा निकाइ की मजदूरी दर ग्रामसभा में निर्धारित करते हैं. खेत की जुताई मदइत परंपरा के आधार पर की जाती है. रोपनी के दिन रोपा करने वाले मालिक के घर आंगन को गोबर से लीपा जाता है, फिर खेत के मेड़ में खेत की मिट्टी लेकर सखुआ के पत्तल में अरवा चावल, धान के बीज, उरद और धान के बिचड़े के तीन गुच्छे रखे जाते हैं और मुर्गी की बलि चढ़ाई जाती है और भगवान की विशेष पूजा की जाती है. जिससे बारिश भी हो और अच्छी पैदावार हो सके.
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रोपनी शुरू करने से पूर्व सबसे पहले पूजा में चढ़ाए गए तीन बिचड़ों की रोपाई घर के मुख्य व्यक्ति से करवायी जाती है. उसके बाद पूरे खेत में एक साथ धान की रोपाई की जाती है. धान रोपनी के समय विशेष रोपनी के गीत भी गाए जाते हैं. धान रोपनी के मधुर गीत-संगीत प्रकृति के साथ मानव जीवन के जुड़ाव और प्रकृति पर निर्भरता को दर्शाते हैं.