खूंटी: झारखंड गठन के बाद से लगातार राज्य में मुख्यमंत्री बदलते गए, लेकिन नहीं बदली तो सिर्फ भगवान बिरसा मुंडा के जन्मस्थली उलिहातू की तस्वीर और वंशजों की तकदीर. उलिहातू के विकास के लिए कई योजनाएं बनी, पर उलिहातू में सड़क को छोड़कर बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई. इसके बावजूद शहीद ग्राम योजना के अंतर्गत योजनाएं बनती ही जा रही है और करोड़ों खर्च होते जा रहे हैं. अब वंशज ही अबत क किये गए खर्च की जांच करने की गुहार लगा रहे हैं.
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कई गांवों में नहीं है पेयजल की सुविधा
शहीद भगवान बिरसा मुंडा के वंशज समेत पूरे उलिहातू और आसपास के 13 गांवों में बेहतर पेयजलापूर्ति योजना हाथी दांत साबित हो रहा है. झारखंड गठन के बाद से बाड़ीनिचकेल पंचायत अंतर्गत उलिहातू में पेयजलापूर्ति बहाल नहीं की जा सकी. लेकिन पानी के नाम कर करोड़ों रुपये पानी में बहा दिए गए. करोड़ों रुपये कहां गए किसी को मालूम नहीं.
उलिहातू में शुद्धपेयजल के लिए फिर से 20 करोड़ की योजना बन रही है. अब तक कई करोड़ खर्च होने के बाद बिरसा के वंशज जांच की मांग कर रहे हैं कि आखिर करोड़ों रुपये कहां गए. भगवान बिरसा के वंशजों ने सरकार से जांच करने की गुहार लगाई है. उन्होंने कहा है कि पहले जांच कर कार्रवाई करें, उसके बाद पानी के लिए कोई नई योजना लाएं.
करोड़ों खर्च लेकिन फिर भी नहीं मिला पीने का पानी
बुनियादी सुविधाओं के नाम पर करोड़ों की योजना बनने के बाद भी बिरसा के वंशजों को पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. करोड़ों रुपये का हिसाब किसी के पास नहीं है. कभी किसी ने बिरसा मुंडा के गांव की सुध नहीं ली. भाजपा हो या कांग्रेस या झामुमो के नेताओं ने भी माना है कि अधिकारियों की मिली भगत से करोड़ों रुपये का बंदरबाट हुआ है.
अगर करोड़ों रुपये शुद्ध पेयजल के लिए खर्च किया जाता तो शायद आज शहीदों के वंशज पानी के लिए दो किमी दूर नहीं जाते, घर-घर नल से जल मिल रहा होता. नेताओं ने सीधे तौर पर अधिकारियों और ठेकेदारों की जेब भरने की योजना बनाई. जबकि अधिकारियों का कहना है कि इलाका ड्राई जोन होने के कारण योजना सफल नहीं रहा. आखिर सवाल ये उठता है कि जब ड्राई जोन ही था तो योजना किसके लिए बनी.
पानी ना होने से कई योजनाएं हुई ठप
उलिहातू के ग्रामीण आज भी खेत के बीच में स्थित चुंआ से ही अपनी प्यास बुझाते हैं. सरकार की करोड़ों रुपये से बनी कई अलग-अलग योजनाओं से मात्र 2-3 माह ही उलिहातू के लोगों को पानी पहुंचता है. पेयजल के संकट से निजात दिलाने के लिए पेयजल का स्थायी समाधान सरकार और प्रशासन को अब करने की जरूरत है.
उलिहातू में पानी का संकट खड़ा होने से पानी से जुड़ी अन्य सरकारी योजनाएं भी कछुआ चाल से चलने के लिए मजबूर हैं. पानी के संकट ने उलिहातू में बने शौचालय के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी है. पानी के संकट ने शहीद ग्राम आवास योजना पर भी ग्रहण लगा दिया है. ऐसा लग रहा है कि पानी के बिना उलिहातू का विकास अधूरा ही रह जायेगा. उलिहातू में पेयजल उपलब्ध कराने में पेयजल स्वच्छता विभाग हर बार बोरिंग कराता है, लेकिन उलिहातू में जलस्तर के लगातार घटते संकट ने अब कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
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जब ईटीवी ने अधिकारियों से पूछे सवाल
जिम्मेदार विभाग से जब ईटीवी की टीम उलिहातू में किए गए कार्यों की जानकारी मांगी तो बताया कि अब तक लगभग 10 करोड़ की राशि शामिल है. यूं कह सकते है कि जितना बड़ा उलिहातू नहीं उससे बड़ी राशि खर्च कर दिया गया और अब फिर से 20 करोड़ खर्च करने की तैयारी की जा रही है. पेयजल स्वच्छता विभाग के कार्यपालक पदाधिकारी राधेश्याम रवि ने ईटीवी भारत के सवालों के जवाब दिए जिसमें उन्होंने बताया कि कार्य हुए है, यहां की भौगोलिक स्तिथि बेहतर नहीं होने के कारण योजनाएं सफल नहीं हो पाई. एक सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि योजनाएं अधिकारियों के लिए बनी, ग्रामीणों के लिए ही योजनाएं बनी वहां खर्च भी हुआ.
इससे स्पष्ट होता है कि अबतक जितने भी राशि खर्च हुए वो वंशजों के लिए था ही नहीं, बल्कि अधिकारियों के लिए ही बनी थी. शायद यही कारण है कि अब वंशज भी जांच करने की मांग कर रहे हैं. वंशजों का साफ कहना है पहले पूर्व में खर्च की गई राशि की जांच हो, उसके बाद ही कोई नई योजना उलिहातू में लाई जाए. अब देखना होगा कि क्या वाकई में सरकार या सिस्टम उलिहातू में किये गए करोड़ों की खर्च का जांच करवाएगी. अगर जांच होती है तो कितने अधिकारी नपेंगे कितनों पर कार्रवाई होगी.