रांची: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने मंगलवार को स्वतंत्रता संग्राम के महान जनजातीय नायक भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू पहुंचकर उनकी स्मृतियों को नमन किया. राष्ट्रपति ने उनकी प्रतिमा पर श्रद्धांजलि के बाद उनके वंशजों से मुलाकात की. राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान बिरसा के जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थ यात्रा के समान है. उन्होंने इस कार्यक्रम के बाद ट्वीट किया, मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ राज्यपाल रमेश बैस, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी मौजूद रहे.
ये भी पढ़ें- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर किया माल्यार्पण, राज्यपाल और सीएम ने भी की शिरकत
भगवान बिरसा की जयंती को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस (Jan Jatiya Gaurav Divas 2022) के रूप में मनाया जाता है. केंद्र सरकार के निर्णय के अनुसार, पिछले साल से ही यह परंपरा शुरू हुई है. झारखंड की राजधानी रांची से 66 किलोमीटर दूर खूंटी जिले में जंगलों-पहाड़ियों से घिरे गांव उलिहातू में 15 नवंबर 1875 को इसी गांव में जन्मे बिरसा मुंडा ने ऐसी क्रांति का बिगुल फूंका था, जिसमें झारखंड के एक बड़े इलाके ने अंग्रेजी राज के खात्मे और 'अबुआ राइज' यानी अपना शासन का एलान कर दिया था.
-
भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का आज मुझे सौभाग्य मिला।
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 15, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन करके, मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं।
उनके जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थ-यात्रा के समान है। pic.twitter.com/eSyGGnqDMh
">भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का आज मुझे सौभाग्य मिला।
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 15, 2022
भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन करके, मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं।
उनके जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थ-यात्रा के समान है। pic.twitter.com/eSyGGnqDMhभगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का आज मुझे सौभाग्य मिला।
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 15, 2022
भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन करके, मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं।
उनके जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थ-यात्रा के समान है। pic.twitter.com/eSyGGnqDMh
बिरसा मुंडा ने जिस क्रांति का ऐलान किया था, उसे झारखंड की आदिवासी भाषाओं में 'उलगुलान' के नाम से जाना जाता है. 1899 में उलगुलान के दौरान उनके साथ हजारों लोगों ने अपनी भाषा में एक स्वर में कहा था- 'दिकू राईज टुन्टू जना-अबुआ राईज एटे जना।' इसका अर्थ है, दिकू राज यानी बाहरी राज खत्म हो गया और हमलोगों का अपना राज शुरू हो गया. बिरसा मुंडा ऐसे योद्धा थे, जिन्हें लोग भगवान बिरसा मुंडा के रूप में जानते हैं. बहुत कम लोगों को पता है कि बिरसा मुंडा के उलगुलान से घबरायी ब्रिटिश हुकूमत ने खूंटी जिले की डोंबारी बुरू पहाड़ी पर जलियांवाला बाग से भी बड़ा नरसंहार किया था.
स्टेट्समैन के 25 जनवरी, 1900 के अंक में छपी खबर के मुताबिक इस लड़ाई में 400 लोग मारे गये थे. कहते हैं कि इस नरसंहार से डोंबारी पहाड़ी खून से रंग गयी थी. लाशें बिछ गयी थीं और शहीदों के खून से डोंबारी पहाड़ी के पास स्थित तजना नदी का पानी लाल हो गया था. इस युद्ध में अंग्रेज जीत तो गए, लेकिन विद्रोही बिरसा मुंडा उनके हाथ नहीं आए.
इसके बाद 3 फरवरी 1900 को रात्रि में चाईबासा के घने जंगलों से बिरसा मुंडा को पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे गहरी नींद में थे. उन्हें रांची जेल में बंद कर भयंकर यातनाएं दी गयीं. एक जून को अंग्रेजों ने उन्हें हैजा होने की खबर फैलाई और 9 जून की सुबह जेल में ही उन्होंने आखिरी सांस ली. उनकी लाश रांची के मौजूदा डिस्टिलरी पुल के पास फेंक दी गयी थी. इसी जगह पर अब उनकी समाधि बनायी गयी है.