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अस्पताल है लेकिन डॉक्टर-नर्स नहीं, झोलाछाप पर निर्भर ग्रामीण

कोरोना काल में जहां मरीज परेशान है. वहीं खूंटी के बीरबांकी में आज भी ग्राणीण अपने पहले अस्पताल के इंतजार में हैं. कई बार इलाके को बुनियादी सुविधा देने की बात कही गई, लेकिन आज भी इस इलाके में कोई अस्पताल नहीं है. जिससे स्थानीय झोलाछाप डॉक्टरों से अपना इलाज कराते हैं.

Khunti
अस्पताल में नहीं है कोई सुविधा
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Published : Jun 3, 2021, 1:48 PM IST

खूंटी: सरकार के विकास कार्यो की जमीनी हकीकत अगर कहीं नजर आती है तो वह क्षेत्र की सड़कों और अस्पताल से होती है. ढाई लाख की आबादी वाला बीरबांकी इलाका आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी झेल रहा है. नक्सलियों के खौफ के साये में रहने वाला ये बीरबांकी गांव जिसे विकास करने के लिए कई घोषणाएं की गई. जिला प्रशासन ने कई इलाके को संवारने के लिए कई बार ब्लू प्रिंट तैयार किया बावजूद इसके आज भी बिरबांकी वैसा ही है जैसा पहले था. विकास के नाम पर एक अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जिसे नक्सलियों ने कुछ वर्ष पूर्व डायनामाइट से उड़ा दिया था. अस्पताल का कार्य संवेदक ने बंद कर दिया बाद में सीआरपीएफ की निगरानी में अस्पताल बनकर तैयार हो गया. लेकिन आज वहां न तो कोई डॉक्टर है और न ही नर्स, यूं कहें तो सिर्फ एक अस्पताल भवन है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़े- झारखंड में सभी जिला अस्पताल में खुलेगा पोस्ट कोविड केयर विंग, अपर मुख्य सचिव ने दिए निर्देश

झोलाछाप डॉक्टरों के पास इलाज कराने को मजबूर हुए ग्रामीण

स्थानीय ग्रामीण कई बार अधिकारियों के दफ्तरों का चक्कर काट चुके है कि अस्पताल शुरू हो जाए, जिससे मरीजों के इलाज में आसानी होगी. लेकिन खोखले सिस्टम ने बीरबांकी के लिए कोई पहल नहीं की. महज अड़की मुख्यालय से 20 किमी जबकि खूंटी से 50 किमी दूर है बीरबांकी. कोरोना काल में जहां सिस्टम लोगों को बेहतर इलाज का दावा कर रही है, लेकिन ग्रामीण उसे मानने को तैयार नहीं है. बीरबांकी मुखिया सिविल सर्जन के कार्यालय पहुंचे और अस्पताल खुलवाने की गुहार लगाई. मुखिया का कहना है कि गांव में अधिकतर ग्रामीण बीमार रहते है, जो स्थानीय डॉक्टर (झोलाछाप) के भरोसे रहना पड़ता है उन्हें नहीं मालूम कि कोरोना है या कुछ और. ग्रामीण जब भी बीमार पड़ते है तो झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर अपना इलाज करवाते हैं. जब मरीज ठीक नहीं होता है तो वहीं झोलाछाप डॉक्टर उसे रेफर कर देते हैं. इससे कई बार तो मरीजों की मौत हो जाती है. महिला संबंधी बीमारियों का इलाज डॉक्टर नहीं करते वावजूद स्थानीय महिलाएं झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर है.

क्या कहते हैं ग्रामीण

स्थानीय बताते है कि अगर नवनिर्मित अस्पताल भवन को सुचारू रूप से शुरू कर दिया जाता है तो किसी को परेशानी नहीं होगी. अस्पताल में डॉक्टर रहने लगे तो बीरबांकी अस्पताल में ढाई लाख की आबादी इलाज कराएगा. यहीं नहीं पड़ोसी जिला चाईबासा के बंदगांव से भी मरीज अपना इलाज करवाने पहुंचेगें. इधर सिविल सर्जन प्रभात कुमार मानते हैं कि बिरबांकी इलाके में स्वास्थ्य सुविधा बहाल की जाय तो ग्रामीण मरीजों का स्थानीय स्तर पर ही इलाज संभव हो सकेगा. बीमारी की हालात में ग्रामीण नीम हकीमों के इलाज से भी बच सकेंगे और मृत्यु दर में भी कमी आएगी. सिविल सर्जन ने बताया कि कोरोना संक्रमण के घटते मामलों के बाद जल्द ही बिरबांकी स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्यकर्मियों की ड्यूटी खूंटी मुख्यालय से वापस बहाल की जाएगी और डॉक्टरों की सेवा सुविधा भी बीरबांकी में बहाल की जायगी.

खूंटी: सरकार के विकास कार्यो की जमीनी हकीकत अगर कहीं नजर आती है तो वह क्षेत्र की सड़कों और अस्पताल से होती है. ढाई लाख की आबादी वाला बीरबांकी इलाका आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी झेल रहा है. नक्सलियों के खौफ के साये में रहने वाला ये बीरबांकी गांव जिसे विकास करने के लिए कई घोषणाएं की गई. जिला प्रशासन ने कई इलाके को संवारने के लिए कई बार ब्लू प्रिंट तैयार किया बावजूद इसके आज भी बिरबांकी वैसा ही है जैसा पहले था. विकास के नाम पर एक अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जिसे नक्सलियों ने कुछ वर्ष पूर्व डायनामाइट से उड़ा दिया था. अस्पताल का कार्य संवेदक ने बंद कर दिया बाद में सीआरपीएफ की निगरानी में अस्पताल बनकर तैयार हो गया. लेकिन आज वहां न तो कोई डॉक्टर है और न ही नर्स, यूं कहें तो सिर्फ एक अस्पताल भवन है.

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झोलाछाप डॉक्टरों के पास इलाज कराने को मजबूर हुए ग्रामीण

स्थानीय ग्रामीण कई बार अधिकारियों के दफ्तरों का चक्कर काट चुके है कि अस्पताल शुरू हो जाए, जिससे मरीजों के इलाज में आसानी होगी. लेकिन खोखले सिस्टम ने बीरबांकी के लिए कोई पहल नहीं की. महज अड़की मुख्यालय से 20 किमी जबकि खूंटी से 50 किमी दूर है बीरबांकी. कोरोना काल में जहां सिस्टम लोगों को बेहतर इलाज का दावा कर रही है, लेकिन ग्रामीण उसे मानने को तैयार नहीं है. बीरबांकी मुखिया सिविल सर्जन के कार्यालय पहुंचे और अस्पताल खुलवाने की गुहार लगाई. मुखिया का कहना है कि गांव में अधिकतर ग्रामीण बीमार रहते है, जो स्थानीय डॉक्टर (झोलाछाप) के भरोसे रहना पड़ता है उन्हें नहीं मालूम कि कोरोना है या कुछ और. ग्रामीण जब भी बीमार पड़ते है तो झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर अपना इलाज करवाते हैं. जब मरीज ठीक नहीं होता है तो वहीं झोलाछाप डॉक्टर उसे रेफर कर देते हैं. इससे कई बार तो मरीजों की मौत हो जाती है. महिला संबंधी बीमारियों का इलाज डॉक्टर नहीं करते वावजूद स्थानीय महिलाएं झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर है.

क्या कहते हैं ग्रामीण

स्थानीय बताते है कि अगर नवनिर्मित अस्पताल भवन को सुचारू रूप से शुरू कर दिया जाता है तो किसी को परेशानी नहीं होगी. अस्पताल में डॉक्टर रहने लगे तो बीरबांकी अस्पताल में ढाई लाख की आबादी इलाज कराएगा. यहीं नहीं पड़ोसी जिला चाईबासा के बंदगांव से भी मरीज अपना इलाज करवाने पहुंचेगें. इधर सिविल सर्जन प्रभात कुमार मानते हैं कि बिरबांकी इलाके में स्वास्थ्य सुविधा बहाल की जाय तो ग्रामीण मरीजों का स्थानीय स्तर पर ही इलाज संभव हो सकेगा. बीमारी की हालात में ग्रामीण नीम हकीमों के इलाज से भी बच सकेंगे और मृत्यु दर में भी कमी आएगी. सिविल सर्जन ने बताया कि कोरोना संक्रमण के घटते मामलों के बाद जल्द ही बिरबांकी स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्यकर्मियों की ड्यूटी खूंटी मुख्यालय से वापस बहाल की जाएगी और डॉक्टरों की सेवा सुविधा भी बीरबांकी में बहाल की जायगी.

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