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Tokyo Olympics 2020: ऐसे ही ओलंपिक टीम में शामिल नहीं हुई हैं निक्की, कमरे की दीवार बयां कर रही है मेहनत की कहानी

टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में झारखंड की तीन बेटियां गोल्ड के लिए जोर लगाने को तैयार हैं. खूंटी की निक्की प्रधान (Nikki Pradhan) टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड से चूकना नहीं चाहती हैं. निक्की झारखंड के एक छोसे से गांव से टोक्यो तक कैसे पहुंची जानिए पूरी कहानी.

Tokyo Olympics 2020
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Published : Jul 23, 2021, 10:04 AM IST

Updated : Jul 23, 2021, 12:17 PM IST

रांची/खूंटी: झारखंड के लिए इस बार का टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) खास है. क्योंकि झारखंड की धरती की तीन बेटियां इस बार टोक्यो ओलंपिक में खेल रही है. भारतीय हॉकी दल में झारखंड की दो खिलाड़ी शामिल है. सिमडेगा की सलीमा टेटे और खूंटी की निक्की प्रधान. लेकिन निक्की प्रधान (Nikki Pradhan) ने अपने जन्म स्थान खूंटी से ज्यादा वक्त रांची में बिताया है. रांची में ही उनकी ट्रेनिंग हुई है और रांची में ही रहकर वह हॉकी से जुड़े तमाम उपलब्धियों को हासिल किया है.

ये भी पढ़ें- Tokyo Olympics 2020: टोक्यो ओलंपिक में झारखंड की दीपिका बने विश्व का अर्जुन, सभी कर रहे हैं दुआएं

निक्की प्रधान झारखंड के छोटे से जिला खूंटी के हेसेल गांव की रहने वाली है. पिता सोमा प्रधान खेती किसानी का काम करते हैं और माता जितेन देवी घर गृहस्थी का काम संभालती हैं. बड़ी बहन शशि प्रधान हॉकी की बदौलत आज रेलवे में पदस्थापित हैं, वहीं बहन कांति प्रधान ने भी हॉकी को ही अपना कैरियर बना लिया. दो बहनों का हॉकी में करियर बन जाने से निक्की प्रधान ने भी हॉकी को ही अपना वर्तमान और भविष्य बना बना लिया.

देंखें पूरी स्टोरी

गुरू ने प्रतिभा को पहचाना

निक्की प्रधान के पिता बताते हैं कि छोटी सी उम्र में ही गांव के बच्चे हॉकी से परिचित थे. बांस के हॉकी स्टिक और बांस का ही गेंद गांव के बच्चों को हॉकी का ककहरा सीखने के लिए काफी थे. निक्की की पढ़ाई लिखाई स्थानीय पेलौल के सरकारी विद्यालय में हुई. पेलौल के सहायक शिक्षक दशरथ महतो उन दिनों हॉकी में रुचि रखने वाली छात्राओं को हर दिन सुबह मैदान में हॉकी की बारीकियां सिखाते थे. उसी वक्त निक्की प्रधान की रनिंग क्षमता से कोच दशरथ प्रभावित हुए और निक्की को हॉकी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश की. शुरुवात में निक्की मैदान से भाग जाती थी लेकिन दशरथ महतो की हॉकी की पाठशाला ने सभी छात्राओं को खेलने और जीतने का जुनून और जज्बा पैदा किया. कोच दशरथ महतो ने 50 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों को जगह बनाने में बतौर कोच हॉकी के गुर सिखाए.

Tokyo Olympics 2020
निक्की के बारे में जानकारी

ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सपना

समय के साथ निक्की प्रधान राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बनाने में सफल रही और एशियाड में भी निक्की प्रधान को खेलने का मौका मिला. एशियाड से मैच जीतने के बाद हॉकी प्रेमियों के प्यार ने निक्की के हौसले को पंख दिए और लगातार अभ्यास के बल पर निक्की ने ओलंपिक में भी खेलने का सपना बुना और टोक्यो ओलंपिक में खूंटी की बेटी ने भी अपनी बेहतर खेल प्रतिभा के बल पर अपनी जगह बनायी.

ये भी पढ़ें- Tokyo Olympics 2020: टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड के लिए झारखंड की तीन बेटियां लगाएंगी जोर, जानें उनकी खूबियां

हॉकी स्टिक के लिए मशक्कत

देश के लिए गोल्ड लाने पहुंची निक्की के पिता बताते है कि आर्थिक तंगी थी जब निक्की के लिए हॉकी स्टिक उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे बावजूद जैसे-तैसे बाजार से लकड़ी खरीद कर उसे हॉकी स्टिक बना कर देते थे. धीरे धीरे निक्की का बेहतर प्रदर्शन देख दसरथ महतो जो कोच है उनकी मेहनत और निक्की के लगन से चयन हुआ. धीरे धीरे आज निक्की खूंटी ही नहीं पूरे देश में अपनी पहचान बना कर झारखंड का नाम रोशन कर रही है.

Tokyo Olympics 2020
निक्की के पिता

ईटीवी भारत की टीम निक्की प्रधान के निवास स्थान रेलवे क्वार्टर का जायजा लिया. रांची रेलवे स्टेशन के समीप इस रेलवे क्वार्टर में निक्की अपनी बड़ी बहन और जीजा जी के साथ रहती है. जिस कमरे में निक्की प्रधान रहती है. उस कमरे की दीवारों में निक्की के प्रदर्शन और उनकी उपलब्धियों से जुड़े मेडल्स और प्रशस्ति पत्र यह बताने के लिए काफी है कि किस कदर इस खिलाड़ी ने मेहनत की है और उपलब्धियों को हासिल की है. 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में भी निक्की प्रधान ने हिस्सा लिया था. लेकिन वह ओलंपिक भारतीय दल और निक्की के लिए भी कुछ खास नहीं रहा था. लेकिन इस बार निक्की की मेहनत और भारतीय हॉकी टीम का लय बेहतर है. पूरे देश के साथ-साथ झारखंड के खेल प्रेमी भी इस बार आर्चरी के साथ-साथ हॉकी में भी गोल्ड मेडल की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

निक्की के घर का हाल

रेलवे क्वार्टर में रहती है निक्की

रांची रेलवे स्टेशन के समीप रेलवे क्वार्टर में निक्की प्रधान कई वर्षों से रह रही हैं. निक्की के जीजाजी लखन कांवर बताते हैं कि इस बार मेडल पक्का है. क्योंकि भारतीय हॉकी महिला टीम ने बेहतर प्रैक्टिस के साथ-साथ रियो ओलंपिक के प्रदर्शन को ही भुलाकर बेहतर करने का ठाना है. दूसरी ओर निक्की की छोटी बहन सरीना भी राष्ट्रीय स्तर की हॉकी प्लेयर हैं. उनकी मानें तो निक्की जब रांची से रवाना हो रही थी. उन्होंने कहा था कि मेडल लेकर ही वह वापस आएगी. बताते चलें कि निक्की चार बहने हैं और सभी बहने हॉकी के धुरंधर प्लेयर हैं. तीन बहने राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है और निक्की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झारखंड के साथ-साथ पूरे देश का नाम रोशन कर रही हैं.

रांची/खूंटी: झारखंड के लिए इस बार का टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) खास है. क्योंकि झारखंड की धरती की तीन बेटियां इस बार टोक्यो ओलंपिक में खेल रही है. भारतीय हॉकी दल में झारखंड की दो खिलाड़ी शामिल है. सिमडेगा की सलीमा टेटे और खूंटी की निक्की प्रधान. लेकिन निक्की प्रधान (Nikki Pradhan) ने अपने जन्म स्थान खूंटी से ज्यादा वक्त रांची में बिताया है. रांची में ही उनकी ट्रेनिंग हुई है और रांची में ही रहकर वह हॉकी से जुड़े तमाम उपलब्धियों को हासिल किया है.

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निक्की प्रधान झारखंड के छोटे से जिला खूंटी के हेसेल गांव की रहने वाली है. पिता सोमा प्रधान खेती किसानी का काम करते हैं और माता जितेन देवी घर गृहस्थी का काम संभालती हैं. बड़ी बहन शशि प्रधान हॉकी की बदौलत आज रेलवे में पदस्थापित हैं, वहीं बहन कांति प्रधान ने भी हॉकी को ही अपना कैरियर बना लिया. दो बहनों का हॉकी में करियर बन जाने से निक्की प्रधान ने भी हॉकी को ही अपना वर्तमान और भविष्य बना बना लिया.

देंखें पूरी स्टोरी

गुरू ने प्रतिभा को पहचाना

निक्की प्रधान के पिता बताते हैं कि छोटी सी उम्र में ही गांव के बच्चे हॉकी से परिचित थे. बांस के हॉकी स्टिक और बांस का ही गेंद गांव के बच्चों को हॉकी का ककहरा सीखने के लिए काफी थे. निक्की की पढ़ाई लिखाई स्थानीय पेलौल के सरकारी विद्यालय में हुई. पेलौल के सहायक शिक्षक दशरथ महतो उन दिनों हॉकी में रुचि रखने वाली छात्राओं को हर दिन सुबह मैदान में हॉकी की बारीकियां सिखाते थे. उसी वक्त निक्की प्रधान की रनिंग क्षमता से कोच दशरथ प्रभावित हुए और निक्की को हॉकी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश की. शुरुवात में निक्की मैदान से भाग जाती थी लेकिन दशरथ महतो की हॉकी की पाठशाला ने सभी छात्राओं को खेलने और जीतने का जुनून और जज्बा पैदा किया. कोच दशरथ महतो ने 50 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों को जगह बनाने में बतौर कोच हॉकी के गुर सिखाए.

Tokyo Olympics 2020
निक्की के बारे में जानकारी

ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सपना

समय के साथ निक्की प्रधान राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बनाने में सफल रही और एशियाड में भी निक्की प्रधान को खेलने का मौका मिला. एशियाड से मैच जीतने के बाद हॉकी प्रेमियों के प्यार ने निक्की के हौसले को पंख दिए और लगातार अभ्यास के बल पर निक्की ने ओलंपिक में भी खेलने का सपना बुना और टोक्यो ओलंपिक में खूंटी की बेटी ने भी अपनी बेहतर खेल प्रतिभा के बल पर अपनी जगह बनायी.

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हॉकी स्टिक के लिए मशक्कत

देश के लिए गोल्ड लाने पहुंची निक्की के पिता बताते है कि आर्थिक तंगी थी जब निक्की के लिए हॉकी स्टिक उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे बावजूद जैसे-तैसे बाजार से लकड़ी खरीद कर उसे हॉकी स्टिक बना कर देते थे. धीरे धीरे निक्की का बेहतर प्रदर्शन देख दसरथ महतो जो कोच है उनकी मेहनत और निक्की के लगन से चयन हुआ. धीरे धीरे आज निक्की खूंटी ही नहीं पूरे देश में अपनी पहचान बना कर झारखंड का नाम रोशन कर रही है.

Tokyo Olympics 2020
निक्की के पिता

ईटीवी भारत की टीम निक्की प्रधान के निवास स्थान रेलवे क्वार्टर का जायजा लिया. रांची रेलवे स्टेशन के समीप इस रेलवे क्वार्टर में निक्की अपनी बड़ी बहन और जीजा जी के साथ रहती है. जिस कमरे में निक्की प्रधान रहती है. उस कमरे की दीवारों में निक्की के प्रदर्शन और उनकी उपलब्धियों से जुड़े मेडल्स और प्रशस्ति पत्र यह बताने के लिए काफी है कि किस कदर इस खिलाड़ी ने मेहनत की है और उपलब्धियों को हासिल की है. 2016 में आयोजित रियो ओलंपिक में भी निक्की प्रधान ने हिस्सा लिया था. लेकिन वह ओलंपिक भारतीय दल और निक्की के लिए भी कुछ खास नहीं रहा था. लेकिन इस बार निक्की की मेहनत और भारतीय हॉकी टीम का लय बेहतर है. पूरे देश के साथ-साथ झारखंड के खेल प्रेमी भी इस बार आर्चरी के साथ-साथ हॉकी में भी गोल्ड मेडल की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

निक्की के घर का हाल

रेलवे क्वार्टर में रहती है निक्की

रांची रेलवे स्टेशन के समीप रेलवे क्वार्टर में निक्की प्रधान कई वर्षों से रह रही हैं. निक्की के जीजाजी लखन कांवर बताते हैं कि इस बार मेडल पक्का है. क्योंकि भारतीय हॉकी महिला टीम ने बेहतर प्रैक्टिस के साथ-साथ रियो ओलंपिक के प्रदर्शन को ही भुलाकर बेहतर करने का ठाना है. दूसरी ओर निक्की की छोटी बहन सरीना भी राष्ट्रीय स्तर की हॉकी प्लेयर हैं. उनकी मानें तो निक्की जब रांची से रवाना हो रही थी. उन्होंने कहा था कि मेडल लेकर ही वह वापस आएगी. बताते चलें कि निक्की चार बहने हैं और सभी बहने हॉकी के धुरंधर प्लेयर हैं. तीन बहने राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है और निक्की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झारखंड के साथ-साथ पूरे देश का नाम रोशन कर रही हैं.

Last Updated : Jul 23, 2021, 12:17 PM IST
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