खूंटी: जिले में राज परिवारों की पारंपरिक दुर्गा पूजा राय सिमला गांव में आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र है. नागवंशी राजाओं के वंशज 17वीं शताब्दी से दुर्गा पूजा का आयाेजन करते आ रहे है. राजतंत्र खत्म हो गया, लेकिन राय सिमला की दुर्गा पूजा की परंपरा अब भी जीवंत है. हालांकि समय के साथ कुछ बदलाव जरूर आए हैं. राज परिवारों के साथ-साथ आम लोग भी पूजा में पूरी श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं.
राज परिवार के रामचंद्र राय ने क्या कहा: राय सिमला गांव के इतिहास के संबंध में राज परिवार के रामचंद्र राय ने बताया कि लगभग तीन से साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व राजतंत्र में हमारे पूर्वज राजा फणि मुकुट राय छोटानागपुर के राजा थे. जिसके अंदर सिमडेगा, गुमला, रांची, खूंटी, लोहरदगा, सरायकेला खरसांवा, सहित कई अन्य जिले शामिल थे. बताया कि पूर्वज को पालकोट का क्षेत्र मिला, उसी के अंदर राय सिमला आता है.
राज परिवार के रंजीत नाथ ने क्या कहा: राज परिवार के रंजीत नाथ राय ने बताया कि जिले के तोरपा प्रखंड क्षेत्र के बारकुली पंचायत के राय सिमला गांव का राज परिवार फनी मुकुट राय के वंशज हैं. 1731 से लगातार यह परिवार राय शिमला में रह रहा है. रंजीत राय बताते हैं कि फनी मुकुट राय के वंशज हर वर्ष दुर्गा पूजा मनाते आ रहे हैं. राय सिमला में नागवंशी परिवार मठ की पूजा करते हैं. नागवंशी परिवार मां भुवनेश्वरी की पूजा करते हैं. यहां नवरात्रि में सप्तमी से मठ में पूजा प्रारंभ की जाती है. सप्तमी से लेकर दशहरा तक विशेष विधि विधान से पूजा की जाती है.
प्राचीन काल से नागवंशी कर रहे मां की पूजा: राज परिवार के रामचंद्र राय ने बताया कि यहां आज भी बलि प्रथा कायम है. परिवार तांत्रिक पूजा भी करते हैं. तांत्रिक पूजा पूर्व में पालकोट राजा और रातू महाराज भी करते थे लेकिन समय के साथ पूजा पद्धति में बदलाव आया है. अब तांत्रिक पूजा केवल राय सिमला में होती है. बताया कि तांत्रिक पूजा में एक मंत्र की स्थापना होती है. तांत्रिक पूजा में अष्टकोण का प्रतीक बनाया जाता है और उसमें मंत्र अर्जित किया जाता है. उस मंत्र से देवी की शक्ति की पूजा की जाती है. जिस समय देवी शक्ति स्वरूपा देवताओं के संग महिषासुर का वध करने जाती है, उसी समय देवी शक्ति की पूजा की जाती है. महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि उसे किसी भी तिथि को मारा नहीं जा सकता, इसलिए जिस दिन अष्टमी समाप्त होने वाली थी और नवमी चढ़ने वाला था ठीक उसी दिन मां ने महिषासुर का वध कर दिया. उसी समय से मां की पूजा होती आ रही है. मां की पूजा नागवंशी प्राचीनकाल से करते आ रहे हैं.