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इन उपेक्षित कॉलोनियों में गरीबी और बेबसी के आगे दम तोड़ती है जिंदगी, सरकार से उम्मीद

जामताड़ा के मिहिजामा में कई कॉलोनी ऐसे हैं जहां कुष्ठ रोग पीड़ित रहते हैं. समाजिक रूप से उपेक्षित ये लोग भीख मांग कर गुजारा करते हैं. सरकार से इन्हें उम्मीद है कि इन्हें रोजगार के साधन मुहैया कराया जाएगा.

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Published : Feb 2, 2019, 5:36 PM IST

Updated : Feb 2, 2019, 8:07 PM IST

जामताड़ा: जिले में कुष्ठ कॉलोनी में रहने वाले परिवार सामाजिक उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर हैं. इन्हें कोई सरकारी मदद मिल जाए या किसी सामाजिक संस्था ने कुछ दे दिया तो ठीक अन्यथा कुष्ठ परिवार के लोग अपने ही हाल पर जीने को विवश हैं.

जामताड़ा जिले के मिहिजाम में तीन कुष्ठ कॉलोनी है जहां कुष्ठ परिवार के लोग बसते हैं. पैर हाथ से लाचार इन लोगों का मुख्य पेशा भिक्षावृत्ति करना है. लेकिन कई बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

देखें वीडियो
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कहने तो सरकार ने इनके लिए ना सिर्फ पेंशन की व्यवस्था की है बल्कि हर महीने अनाज भी दिया जाता है. लेकिन इनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो इसके लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गई है. भ्रष्टाचार का आलम ये है कि पैसे नहीं दे पाने के कारण छात्र परीक्षा तक नहीं दे पाते और उनका भविष्य गरीबी और बेबसी के आगे दम तोड़ देता है.
बहरहाल, भले ही सरकार अपनी योजनाओं को लेकर पीठ थपथपा रही हो. लेकिन कुष्ठ रोग से पीड़ित इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के लिए इलाज के साथ-साथ रोजगार के साधन देना आज भी सरकार के लिए चुनौती है.

जामताड़ा: जिले में कुष्ठ कॉलोनी में रहने वाले परिवार सामाजिक उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर हैं. इन्हें कोई सरकारी मदद मिल जाए या किसी सामाजिक संस्था ने कुछ दे दिया तो ठीक अन्यथा कुष्ठ परिवार के लोग अपने ही हाल पर जीने को विवश हैं.

जामताड़ा जिले के मिहिजाम में तीन कुष्ठ कॉलोनी है जहां कुष्ठ परिवार के लोग बसते हैं. पैर हाथ से लाचार इन लोगों का मुख्य पेशा भिक्षावृत्ति करना है. लेकिन कई बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

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कहने तो सरकार ने इनके लिए ना सिर्फ पेंशन की व्यवस्था की है बल्कि हर महीने अनाज भी दिया जाता है. लेकिन इनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हो इसके लिए किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गई है. भ्रष्टाचार का आलम ये है कि पैसे नहीं दे पाने के कारण छात्र परीक्षा तक नहीं दे पाते और उनका भविष्य गरीबी और बेबसी के आगे दम तोड़ देता है.
बहरहाल, भले ही सरकार अपनी योजनाओं को लेकर पीठ थपथपा रही हो. लेकिन कुष्ठ रोग से पीड़ित इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के लिए इलाज के साथ-साथ रोजगार के साधन देना आज भी सरकार के लिए चुनौती है.

Intro:सामाजिक उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है कुष्ठ कॉलोनी में रहने वाले परिवार के लोग आज भी उन्हें उपेक्षा का जिंदगी जीने पड़ता है कभी कोई सरकारी मदद मिल जाए या कोई सामाजिक संस्था कुछ दे दिया तो ठीक अन्यथा अपने हाल पर जीने को विवश है कुष्ठ परिवार के लोग


Body: आज भी कुष्ठ परिवार के लोगों को सामाजिक उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है भिक्षावृत्ति करना उनकी मजबूरी बन।गई हैं किसी तरह रोजी रोजगार कर अपना औंर परिवार के बाल बच्चों को पालते हैं
जामताड़ा जिले के मिहिजाम में तीन कुष्ठ कॉलोनी है जहां कुष्ठ परिवार के लोग बसते हैं सैकड़ों की संख्या में कुष्ठ परिवार के लोग किसी तरह झुग्गी झोपड़ी बनाकर अपना जिंदगी काटने को विवश है पैर हाथ से लाचार इन लोगों का मुख्य पेशा भिक्षावृत्ति करना है दिन भर भिक्षावृत्ति का जोर जुगाड़ होता है उससे अपना घर और परिवार और बच्चों का परवरिश करते हैं समाज में उन्हें स्थान नहीं मिल पाता है उन्हें उपेक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाता है इनका रहने का अपना ही एक कॉलोनी बसा हुआ है या एक ही परिवार के लोग रहते हैं जहां इन्हीं का ही परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत करते हैं इन्हें अभी तक प्रधानमंत्री आवास मिला है और ना ही अंबेडकर ही आवास नसीब हो पाता है कहने के लिए ₹600 महीना और अनाज 5 किलो इन्हें सरकार की तरफ से मिलता है दाल भात योजना के तहत ₹5 में भोजन अपना कर लेते हैं लेकिन इन्हें पानी अच्छे स्वास्थ्य और दवा दारू की व्यवस्था और अच्छा मकान नहीं मिल पा रहा है आर्थिक संकट के कारण अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ा नहीं पाते हैं और ना ही अच्छे जगह अपना इलाज करा पाते हैं मिशनरी द्वारा इन्हें एक मकान तो बना दिया गया है जिसमें अपना गुजर-बसर करते हैं पढ़ाई पैसे की तंगी के कारण भीख मांग कर अपने बच्चे को पढ़ाते हैं लेकिन आगे बच्चे को पैसे के अभाव में नहीं पढा पाते हैं स्थानीय एक बूढ़ी महिला ने आपबीती बताते हुए कहती है कि हाथ पैर से लाचार हैं किसी तरह भीख मांग कर अपने बेटे को मैट्रिक तक पढ़ाई लेकिन पैसे 1200 नहीं रहने के कारण वह आगे अपने बेटे को नहीं पढ़ा पाई और उसका बेटा पढ़ने से वंचित रह गया जिसका कि उसे अफसोस है वह कहती है सिर्फ ₹600 महीना और चावल मिलता है लेकिन हाथ पैर से लाचार कारण सरकार द्वारा उसे साइकिल ने दिया गया था ना ही आवाज से मिला है स्थान है रहने वाले वह बताते हैं कि भिक्षावृत्ति करना उनकी मजबूरी लोगों ने हे दृष्टि से देखते हैं उन्हें दृष्टि से देखा जाता है लेकिन सरकार द्वारा नए रोजगार के लिए और रहने के लिए कोई सुविधा नहीं दी जाती गंभीर रूप से अगर इलाज कराना पड़े तो उनके इलाज के लिए कोई साधन नहीं उपलब्ध है

हाथ पैर से लाचार होने कारण पानी भी चापाकल से नहीं चला पाते हैं पानी टंकी से द्वारा यदि ने पानी की व्यवस्था हो जाए तो इन्हें काफी सहूलियत हो सकती यहां रहने वाले लोग पानी की व्यवस्था पेंशन की राशि ज्यादा बढ़ाने और आवाज देने और बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के अलावा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की मांग सरकार से कर रहे हैं
बाईट कुष्ठ परिवार के लोग


Conclusion:जामताड़ा जिला प्रशासन द्वारा कुष्ठ रोगियों के उत्थान और से मुक्त करने केरला के लिए जिला कुष्ठ निवारण समिति का गठन किया गया है जिसके द्वारा समय-समय पर इन लोगों का इलाज दवा और किट का वितरण भी किया जाता है जिसका लाभ नहीं मिल रहा है लेकिन इनके बच्चों की अच्छी शिक्षा परवरिश रोजी रोजगार और आवास सरकार द्वारा जो होनी चाहिए था उसे नहीं मिल पा रहा है आज भी यह परिवार के लोग उपेक्षित जिंदगी जीने को विवश है

संजय तिवारी ईटीवी भारत जामताड़ा
Last Updated : Feb 2, 2019, 8:07 PM IST
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