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संताली समाज धूमधाम से मना रहा दसाय पर्व और दशाई नृत्य, अनूठी है इसकी परंपरा

दशहरा के अवसर पर संथाली समाज ने दसाय पर्व और दशाई नृत्य मनाया जाता है (Santali Samaj is celebrating Dasai festival). आश्विन महीने में दुर्गा पूजा के मौके पर ही संताली समाज की पूजा शुरू होती है. इसके बाद वे घूम-घूमकर नाचते-गाते हैं, जिसे दशाई नृत्य कहा जाता है.

Santali Samaj is celebrating Dasai festival
Santali Samaj is celebrating Dasai festival
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Published : Oct 4, 2022, 5:16 PM IST

Updated : Oct 4, 2022, 5:31 PM IST

जामताड़ा: दुर्गा पूजा और दशहरा 10 दिनों तक काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. वहीं इस पर्व को आदिवासी संताली समाज में दसाय पर्व या दशाई नृत्य के रूप में मनाते हैं (Santali Samaj is celebrating Dasai festival ). नवरात्रि के अवसर पर आदिवासी मांदर, नगाड़ा, झाल लेकर नृत्य करते हुए गांव, मेला और पूजा पंडालों का भ्रमण करते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

ये भी पढ़ें: मां पर अद्भुत आस्था, यहां पिछले 100 सालों से लगता है भूतों का मेला


दसाय पर्व दसाई नृत्य के रूप में मनाते हैं आदिवासी समाज: दशहरा का पर्व आदिवासी संथाल समाज से जुड़ा हुआ है. आदिवासी संताली समाज दशहरा को बेलरन दसाय और दशाई नृत्य के रूप में मनाते हैं. आश्विन महीने में दुर्गा पूजा के मौके पर ही उनकी पूजा शुरू होती है और वे गांव गांव में घूम-घूमकर नाचते-गाते हैं, जिसे दशाई नृत्य कहा जाता है. संताली समाज के लोग साड़ी की धोती बनाकर पगड़ी बांधकर हाथ में मोर का पंख लेकर पारंपरिक वाद्य यंत्र की ताल पर एक साथ थिरकते हैं. संथाल समाज के लोगों का कहना है कि इस अवसर पर पहाड़ पर पूजा किया जाता है और मुर्गा और कबूतर की बलि दी जाती है, जिसके बाद गांव-गांव घूमकर नृत्य किया जाता है.

देखें वीडियो




तरह-तरह की हैं परंपाराएं: दसाय पर्व या दशाई नृत्य को लेकर तरह-तरह की कथाएं प्रचलित हैं. कहीं इसे महिषासुर वध से देखा जाता है, तो कहीं संथाल के कुल गुरु की तलाश को लेकर. तो कहीं हुदड़ कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि आदिवासी के कुलगुरु हुदड़ को किसी स्त्री ने कब्जे में लेकर छिपा दिया था. उसी कुलगुरू की खोज में आज भी वेशभूषा बदलकर समाज के लोग नाचते, गाते हैं.

आपात स्थिति से निपटने को लेकर तांत्रिक विधि का भी करते हैं प्रयोग: ऐसा कहा जाता है कि आदिकाल से आपात स्थिति से बचने के लिए तांत्रिक कामरू गुरू आदिवासी समाज द्वारा सहारा लिया गया था. इसी परंपरा को निभाते हुए सिद्ध गुरू की अगुवाई में आदिवासी समाज दसाय नृत्य करते हैं और घर-घर जाकर इस दिन झाड़-फूंक टोटका भी करते हैं. इस दिन झाड़-फूंक तांत्रिक विद्या भी सिखाई जाती है. आदिवासी समाज के कामरु गुरु बताते हैं कि दसाय नृत्य कर घर जाते हैं. टोटका करते हैं और झाड़-फूंक करते हैं और अपने बच्चों को भी ज्ञान देते हैं ताकि विपत्ति से बचा जा सके.

जामताड़ा: दुर्गा पूजा और दशहरा 10 दिनों तक काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. वहीं इस पर्व को आदिवासी संताली समाज में दसाय पर्व या दशाई नृत्य के रूप में मनाते हैं (Santali Samaj is celebrating Dasai festival ). नवरात्रि के अवसर पर आदिवासी मांदर, नगाड़ा, झाल लेकर नृत्य करते हुए गांव, मेला और पूजा पंडालों का भ्रमण करते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

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दसाय पर्व दसाई नृत्य के रूप में मनाते हैं आदिवासी समाज: दशहरा का पर्व आदिवासी संथाल समाज से जुड़ा हुआ है. आदिवासी संताली समाज दशहरा को बेलरन दसाय और दशाई नृत्य के रूप में मनाते हैं. आश्विन महीने में दुर्गा पूजा के मौके पर ही उनकी पूजा शुरू होती है और वे गांव गांव में घूम-घूमकर नाचते-गाते हैं, जिसे दशाई नृत्य कहा जाता है. संताली समाज के लोग साड़ी की धोती बनाकर पगड़ी बांधकर हाथ में मोर का पंख लेकर पारंपरिक वाद्य यंत्र की ताल पर एक साथ थिरकते हैं. संथाल समाज के लोगों का कहना है कि इस अवसर पर पहाड़ पर पूजा किया जाता है और मुर्गा और कबूतर की बलि दी जाती है, जिसके बाद गांव-गांव घूमकर नृत्य किया जाता है.

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तरह-तरह की हैं परंपाराएं: दसाय पर्व या दशाई नृत्य को लेकर तरह-तरह की कथाएं प्रचलित हैं. कहीं इसे महिषासुर वध से देखा जाता है, तो कहीं संथाल के कुल गुरु की तलाश को लेकर. तो कहीं हुदड़ कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि आदिवासी के कुलगुरु हुदड़ को किसी स्त्री ने कब्जे में लेकर छिपा दिया था. उसी कुलगुरू की खोज में आज भी वेशभूषा बदलकर समाज के लोग नाचते, गाते हैं.

आपात स्थिति से निपटने को लेकर तांत्रिक विधि का भी करते हैं प्रयोग: ऐसा कहा जाता है कि आदिकाल से आपात स्थिति से बचने के लिए तांत्रिक कामरू गुरू आदिवासी समाज द्वारा सहारा लिया गया था. इसी परंपरा को निभाते हुए सिद्ध गुरू की अगुवाई में आदिवासी समाज दसाय नृत्य करते हैं और घर-घर जाकर इस दिन झाड़-फूंक टोटका भी करते हैं. इस दिन झाड़-फूंक तांत्रिक विद्या भी सिखाई जाती है. आदिवासी समाज के कामरु गुरु बताते हैं कि दसाय नृत्य कर घर जाते हैं. टोटका करते हैं और झाड़-फूंक करते हैं और अपने बच्चों को भी ज्ञान देते हैं ताकि विपत्ति से बचा जा सके.

Last Updated : Oct 4, 2022, 5:31 PM IST
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