जामताड़ा: संथाल आदिवासी समाज में कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो गले में तुलसी कंठी माला धारण करती हैं और पूरी तरह से शाकाहारी होती हैं. इनका जीवन काफी सादा होता है. जी हां यह बात सुनने में आपको जरूर अटपटा और अजीब सा लगता होगा, लेकिन यह सत्य है. जिले की इन संथाली आदिवासी महिलाओं का जीवन आध्यात्मिक होता है. इस समाज को सफाहोड़ आदिवासी के रूप में जाना जाता है. ये आदिवासी महिलाएं मांस, मछली, अंडा, प्याज और लहसुन तक नहीं खाती हैं. जानकारी के अनुसार कंठी माला धारण करनेवाली आदिवासी महिलाएं शिव की उपासक होती हैं. संथाली आदिवासी भाषा में भजन-कीर्तन भी करती हैं.
क्या कहती हैं आदिवासी समाज की महिला समाजसेवीः इस संबंध में आदिवासी समाज के महिला समाजसेवी एफ बास्की ने बताया कि तुलसी कंठी माला धारण करने वाली महिलाएं शाकाहारी जीवन जीते हैं. मांस, मछली, अंडा के साथ लहसुन और प्याज तक नहीं खाती हैं. ये महिलाएं शिव-पार्वती की पूजा करती हैं.
जामताड़ा में काफी संख्या में आदिवासी महिलाएं हैं शाकाहारीः जामताड़ा जिले में ऐसी काफी संख्या में आदिवासी महिलाएं हैं, जो आदिवासी समाज से अलग गले में तुलसी कंठी माला धारण कर शाकाहारी जीवन जीते हैं. जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि हम शिव के उपासक हैं. तुलसी माला धारण कर मांस, मछली नहीं खाते हैं और पूजा शिव-पार्वती की पूजा करते हैं.
आध्यात्मिक जीवन जीते हैं सफाहोड़ आदिवासीः बहरहाल जो भी हो आदिवासी समाज जहां एक और प्रकृति के पूजक होते हैं, वहीं दूसरी ओर सफाहोड़ समुदाय के आदिवासी आध्यात्मिक जीवन जीते हैं. साधारण आदिवासियों से अलग इनका जीवन होता है. बताते चलें कि संताल परगना के राजमहल स्थित गंगा घाट में हर वर्ष माघी पूर्णिमा पर मेला लगता है. इसे सफाहोड़ आदिवासियों का महाकुंभ भी कहा जाता है. जहां सफाहोड़ समुदाय के लोग गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं और शिव-पार्वती की आराधना करते हैं. वहीं मकर संक्रांति पर भी दुमका में गर्म कुंड में स्नान करने के लिए सफाहोड़ आदिवासी पहुंचते हैं.