जामताड़ा: संथाली आदिवासी समाज में महुआ का पेड़ काफी महत्व रखता है. इस समाज में महुआ का पेड़ न केवल समाज और संस्कृति से जुड़ा हुआ है, बल्कि इनकी आमदनी का एक अच्छा जरिया भी है.
सामाजिक रीति रिवाज
संथाल परगना के ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता है, जो कि संथाली आदिवासी समाज के लोगों के जीवन में काफी महत्व रखता है. यह पेड़ आदिवासी संथाली समाज में उनकी संस्कृति और सामाजिक रीति रिवाज से जुड़ा हुआ ही नहीं है, बल्कि उनके आमदनी का अच्छा जरिया और आर्थिक स्रोत भी है. इसकी उपयोगिता के कारण ही इन समाज में इसे पवित्र पेड़ के रूप में माना जाता है. यही नहीं इस पेड़ के फूल, फल और पत्तों से उनका सामाजिक जीवन भी जुड़ा हुआ है.
ये भी पढ़ें-रांचीः झारखंड हाई कोर्ट में अति महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई को अगले आदेश तक के लिए बढ़ाया गया
'महुआ' समाज का एक अभिन्न अंग
ये आदिवासी समाज महुआ के फूल को चुनकर इसका सेवन करते हैं, साथ ही पशु-पक्षी को भी खिलाते हैं और बाजार में बेचकर आमदनी भी करते हैं. इसके बीज से तेल निकाला जाता है. इसे सुखाकर पशु को भी खिलाया जाता है, साथ ही इससे शराब भी तैयार किया जाता है. इसके कई लाभ भी है. आदिवासी समाज के साहित्यकार सुशील मरांडी महुआ के फायदे के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि यह आदिवासी संथाली समाज का एक अभिन्न अंग है जो उसके समाज और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. वाहा पर्व में भी उपयोग किया जाता है. खाने में भी उपयोग किया जाता है और पशुओं को भी खिलाया जाता है, साथ ही इससे आर्थिक आमदनी भी की जाती है.
पर्यावरण की रक्षा
महुआ के पेड़ के फायदे और गुण के कारण बताया जाता है कि महुआ का पेड़ काटने पर पूरी तरह से पाबंदी है. इसे काटा नहीं जा सकता है, जिसका देखरेख का जिम्मा वन विभाग को है, ताकि इसे कोई काटे नहीं. इसके काटने पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है. वन विभाग के डीएफओ ने बताया कि महुआ की उपयोगिता संथाली समाज के लिए काफी उपयोगी है. फागुन चैत महीने में जब पेड़ से पत्ते झड़ने लगते हैं. उसी समय महुआ के पेड़ पर पीला रंग का फूल खिल उठता है, जिसे महुआ कहते हैं. यही महुआ पेड़ से टपकता है. पर्यावरण की रक्षा करता है. पूरे वातावरण को अपने फूल और अपने महक से खुशनुमा बना देता है.
ये भी पढ़ें-1500 परिवारों को योगदा सत्संग से मिली खाद्य सामग्री, लोगों से जुड़ने की अपील
बड़े चाव से खाते हैं पशु-पक्षी
बताया जाता है कि 20 से 22 दिन तक लगातार पेड़ से महुआ टपकता रहता है. इसके मिठास रस को पशु-पक्षी बड़े चाव से खाते हैं. पेड़ से जब महुआ टपकने लगता है तो गांव के आदिवासी बच्चे और बड़े सभी इसे चुनने में लग जाते हैं. चुनचुन कर महुआ को इकट्ठा करके रखते हैं. उसके बाद इसको बाजार बेचते हैं, जिससे उनको अच्छी आमदनी की प्राप्ती होती है. ग्रामीणों का कहना है कि महुआ को चुनकर खुद भी खाते हैं. पशुओं को भी खिलाते हैं और बाजार में बेचते भी हैं, जिससे साल में 8 से 10 हजार का इनकम हो जाता है.
काफी लाभकारी होता है महुआ
महुआ का पेड़, फूल और बीज आदिवासी समाज के संस्कृति से न सिर्फ जुड़ा हुआ है, बल्कि प्राकृतिक रूप से इसके कई गुणकारी फायदे भी हैं. इसके तेल और फल से दवा बनाए जाते हैं. जिससे कई रोगों का इलाज किया जाता है. यहां तक इससे शराब बनाने के भी काम में लाया जाता है, जो कि ग्रामीण आदिवासी समाज को इससे रोजगार से जोड़कर उनको काफी आर्थिक रूप से संपन्न बनाया जा सकता है. इस बारे में जामताड़ा जिला उपायुक्त ने बताया कि संथाली आदिवासी समाज में महुआ का काफी महत्व है. इससे उनका आर्थिक समृद्धि और रोजगार हो सके, इसके लिए प्रयास किया जा रहा है.