जामताड़ाः मकर संक्रांति के मौके पर जामताड़ा के दुखिया मंदिर परिसर में 15 दिनों तक लगने वाला करमदाहा मेला कोरोना की भेंट चढ़ गया है. अति प्राचीन काल से चले आ रहे इस मेला के न लगने से जहां लोगों में मायूसी है वहीं रोजी रोजगार और करोड़ों के आर्थिक कारोबार पर भी प्रभाव पड़ा है.
जामताड़ा जिले के नारायणपुर प्रखंड बराकर नदी किनारे स्थित दुखिया बाबा मंदिर में प्रतिवर्ष 14 से 30 जनवरी तक मेला लगता था. मेले में दूर-दूर से लोग आते थे. दुखिया बाबा की पूजा अर्चना करते थे और मेले का आनंद लेते थे, लेकिन कोरोना को लेकर सरकार ने मेला पर प्रतिबंध लगा दिया है. जिससे चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है.
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि दुखिया बाबा मंदिर अति प्राचीन मंदिर है. धनबाद, गिरिडीह, देवघर, बिहार, बंगाल से लोग आते हैं. बाबा सबकी मनोकामना पूरा करते हैं. मेला नहीं लगने से लोगों में निराशा है.
बराकर नदी किनारे स्थित हैं मंदिर
बराकर नदी के किनारे नारायणपुर प्रखंड अंतर्गत स्थित है दुखिया बाबा का मंदिर जो धनबाद और जामताड़ा जिले की सीमा पर स्थित है दुखिया बाबा का मंदिर. नदी किनारे स्थित रहने के कारण नदी में स्नान कर भक्त और श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं. धनबाद जिले की सीमा पर बरकरार नदी के किनारे स्थित है दुखिया बाबा का मंदिर . दुखिया बाबा के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक समय इस क्षेत्र में काफी अकाल पड़ा था. लोगों के खाने के लाले पड़ गए थे.
ऐसी स्थिति में मुखिया बाबा प्रकट हुए. लोगों ने दुखिया बाबा का शरण लिए दुखिया बाबा ने लोगों के दुखों का हरण कर लिया. तब से कहा जाता है इसे दुखिया बाबा के नाम से जाना जाने लगा. दूर-दूर आसपास के क्षेत्र यहां पर श्रद्धालु लोग आते हैं और अपना दुख बाबा को सुनाते हैं. ऐसी मान्यता है कि बाबा अपने भक्तों की दुखों का हरण कर लेते हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
मकर संक्रांति के मौके पर खासकर काफी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. नदी में स्नान कर बाबा की पूजा अर्चना करते हैं और अपनी फसल बाबा के मंदिर में चढ़ाते हैं. मकर संक्रांति के मौके पर 14 से 30 जनवरी तक मेला का आयोजन होता है. बताया जाता है कि राजा कर्ण के समय से ही दुखिया बाबा मंदिर में मेले का आयोजन होता रहा है. इसलिए इस मेला का नाम करमदाहा मेला पड़ा. बताया जाता है कि मेला में मकर संक्रांति के मौके पर लोग स्नान कर पूजा पाठ कर खरीदारी करते थे. मेला का आनंद लेते थे.
मंदिर में पसरा सन्नाटा
प्रतिवर्ष 15 दिनों तक लगने वाला इस क्रमदाहा मेला को जो प्राचीनकाल करीब 300 वर्ष पुराना बताया जा रहा है. इस साल कोरोना को देखते हुए प्रशासन ने प्रतिबंध लगा दिया है. जिससे 15 दिनों तक काफी चहल-पहल और रौनक लगने वाली दुखिया बाबा मंदिर परिसर में सन्नाटा पसरा हुआ है.
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करमदाहा मेला न लगने से लोगों में काफी मायूसी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि राजा कर्ण के समय से ही दुखिया बाबा मंदिर में मेला लगता रहा है जिससे करमदाहा मेला कहा जाता है . मेला में बिहार बंगाल दूसरे राज्य के अलावा अन्य जिलों से काफी संख्या में लोग आते थे. खरीदारी करते थे. कारोबार करते थे. लोग मनोरंजन करते थे. इससे काफी प्रभाव पड़ा है और मायूसी है.
वर्षों पुराना करमदाहा मेला इस साल कोरोना के कारण न लगने से जहां लोगों में मायूसी है . पर्यटन स्थल के रूप में विकसित दुखिया बाबा मंदिर में सन्नाटा पसरा हुआ है. तो वहीं प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए के कारोबार करने वाले और रोजी रोजगार कर साल भर इस मेला से कमाने वाले लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा है .