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ईश्वर चंद्र विद्यासागर का झारखंड से है 'खास रिश्ता', बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर 'नंदनकानन'

देश के महान समजा सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित नंदनकानन आज बदहाली के आंसू बहाता दिख रहा है. उन्होंने यहां रहकर 17 सालों तक संथाल के लोगों की सेवा की.

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Published : Jul 9, 2019, 6:02 AM IST

Updated : Jul 9, 2019, 7:33 AM IST

जामताड़ा: जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर करमाटाड़ प्रखंड में स्थित है नंदनकानन. जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्म स्थली के रूप में विख्यात है, बताया जाता है कि 100 साल पहले पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर यहां पर आए और नंदनकानन के नाम से कुटिया बनाकर रहने लगे. गरीब आदिवासी लोगों के बीच सेवा करना शुरू कर दिए. चिकित्सा और शिक्षा देकर लोगों की सेवा करने लगे.

देखें पूरी खबर

बताया जाता है कि जब विद्यासागर इस क्षेत्र में आए तब यह इलाका अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों से घिरा हुआ था. गरीबी और अशिक्षित इलाके को देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को सेवा करना शुरू कर दिया. नंदनकानन में निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी चलाया जो आज भी मौजूद है. उन्होंने नारी शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया. नारी शिक्षा को लेकर उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की जो फिलहाल बदहाल अवस्था में है. विद्यासागर की इस धरोहर को बचाकर रखने और उसको संचालन कर रहे विद्यासागर स्मृति नाम के एक समिति काम कर रही है.

सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का किया प्रयास
इस समिति के सदस्य देवाशीष मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि विद्यासागर का यहां आना का मुख्य मकसद सेवा करना था. यहां के लोगों की सेवा करना अपना मकसद बनाया, वे गरीब और दलित आदिवासियों की सेवा करते थे. ईश्वर चंद्र विद्यासागर मुफ्त में डिस्पेंसरी चलाकर लोगों की सेवा की. विधवा विवाह जैसे प्रचलन प्रारंभ किया, बाल विवाह सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास को दूर करने के प्रयास किया.

ये भी पढ़ें- मानव तस्करों की चंगुल से मुक्त हुई मासूम, दिल्ली में बेची गई थी झारखंड की बेटी

आज भी संचालित है निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी
बताया जाता है कि विद्यासागर ने 3 एकड़ जमीन लेकर कुटिया बनाई, जिसका नाम उन्होंने नंदनकानन रखा. नंदनकानन में रहकर ही वह लोगों को सेवा करते थे, आज भी नंदनकानन में उनके द्वारा बनाया गया निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी संचालित है. उनके द्वारा लगाए गए पेड़, कुआं जिसमें वे स्नान करते थे उनका पलंग जिसमें सोया करते थे आज भी यहां मौजूद है.

17 सालों तक की लोगों की सेवा
लगभग 17 सालों तक उन्होंने यहां रहकर लोगों की सेवा की. लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ जाने के बाद वे अपने पैतृक गांव वीर गांव पश्चिम बंगाल चले गए. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके चले जाने के बाद उनके परिजनों ने नंदनकानन संपत्ति को किसी मल्लिक परिवार को बेच डाला. लेकिन स्थानीय लोगों ने इस महापुरुष के घरोहर को बचाकर रखने के लिए उस मल्लिक परिवार से फिर से इसे खरीदा. फिलहाल विद्यासागर स्मृति समिति द्वारा घरोहर को बचा कर रखा है. आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने के कारण विद्यालय चल नहीं पा रहा है और ना ही यह नंदनकानन खास विकसित और पर्यटन का रूप ले रहा है.

ये भी पढ़ें- मॉब लिंचिंग रोकें, वारदात होने पर दोषियों को तत्काल करें गिरफ्तार: डीजीपी

'पूजनीय हैं विद्यासागर'
इस बारे में जिले के उपायुक्त विद्यासागर को पूजनीय करार दिया और कहा कि इस ऐतिहासिक धरोहर को समिति के लोगों से वार्ता कर उसे विकसित रूप देने का कार्य किया जाएगा. कर्माटांड़ रेलवे स्टेशन आज इनके नाम से विद्यासागर रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता है.

जामताड़ा: जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर करमाटाड़ प्रखंड में स्थित है नंदनकानन. जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्म स्थली के रूप में विख्यात है, बताया जाता है कि 100 साल पहले पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर यहां पर आए और नंदनकानन के नाम से कुटिया बनाकर रहने लगे. गरीब आदिवासी लोगों के बीच सेवा करना शुरू कर दिए. चिकित्सा और शिक्षा देकर लोगों की सेवा करने लगे.

देखें पूरी खबर

बताया जाता है कि जब विद्यासागर इस क्षेत्र में आए तब यह इलाका अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों से घिरा हुआ था. गरीबी और अशिक्षित इलाके को देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को सेवा करना शुरू कर दिया. नंदनकानन में निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी चलाया जो आज भी मौजूद है. उन्होंने नारी शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया. नारी शिक्षा को लेकर उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की जो फिलहाल बदहाल अवस्था में है. विद्यासागर की इस धरोहर को बचाकर रखने और उसको संचालन कर रहे विद्यासागर स्मृति नाम के एक समिति काम कर रही है.

सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का किया प्रयास
इस समिति के सदस्य देवाशीष मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि विद्यासागर का यहां आना का मुख्य मकसद सेवा करना था. यहां के लोगों की सेवा करना अपना मकसद बनाया, वे गरीब और दलित आदिवासियों की सेवा करते थे. ईश्वर चंद्र विद्यासागर मुफ्त में डिस्पेंसरी चलाकर लोगों की सेवा की. विधवा विवाह जैसे प्रचलन प्रारंभ किया, बाल विवाह सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास को दूर करने के प्रयास किया.

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आज भी संचालित है निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी
बताया जाता है कि विद्यासागर ने 3 एकड़ जमीन लेकर कुटिया बनाई, जिसका नाम उन्होंने नंदनकानन रखा. नंदनकानन में रहकर ही वह लोगों को सेवा करते थे, आज भी नंदनकानन में उनके द्वारा बनाया गया निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी संचालित है. उनके द्वारा लगाए गए पेड़, कुआं जिसमें वे स्नान करते थे उनका पलंग जिसमें सोया करते थे आज भी यहां मौजूद है.

17 सालों तक की लोगों की सेवा
लगभग 17 सालों तक उन्होंने यहां रहकर लोगों की सेवा की. लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ जाने के बाद वे अपने पैतृक गांव वीर गांव पश्चिम बंगाल चले गए. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके चले जाने के बाद उनके परिजनों ने नंदनकानन संपत्ति को किसी मल्लिक परिवार को बेच डाला. लेकिन स्थानीय लोगों ने इस महापुरुष के घरोहर को बचाकर रखने के लिए उस मल्लिक परिवार से फिर से इसे खरीदा. फिलहाल विद्यासागर स्मृति समिति द्वारा घरोहर को बचा कर रखा है. आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने के कारण विद्यालय चल नहीं पा रहा है और ना ही यह नंदनकानन खास विकसित और पर्यटन का रूप ले रहा है.

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'पूजनीय हैं विद्यासागर'
इस बारे में जिले के उपायुक्त विद्यासागर को पूजनीय करार दिया और कहा कि इस ऐतिहासिक धरोहर को समिति के लोगों से वार्ता कर उसे विकसित रूप देने का कार्य किया जाएगा. कर्माटांड़ रेलवे स्टेशन आज इनके नाम से विद्यासागर रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता है.

Intro:जामताङा: पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर की कर्म स्थली के रूप में विख्यात है नंदनकानन जहां दूरदराज से लोग घूमने और देखने आते हैं लोग।


Body:जामताड़ा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर करमाटाङ प्रखंड में स्थित है नंदनकानन। जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्म स्थली के रूप में विख्यात है ।बताया जाता है कि 100 साल पहले पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर यहां पर आए और नंदनकानन के नाम से कुटिया बनाकर रहने लगे। और गरीब आदिवासी लोगों के बीच सेवा करना शुरू कर दिए। चिकित्सा और शिक्षा देकर लोगों की सेवा करने लगे । बताया जाता है कि जब विद्यासागर इस क्षेत्र में आए तो उस समय यह इलाका काफी अंधविश्वास सामाजिक कुरीतियों से घिरा हुआ था। गरीबी और अशिक्षा से यह इलाका जकड़ा हुआ था। जिन्हें देख विद्यासागर को रहा नहीं गया और वे चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में लोगों को सेवा करना शुरू किए। नंदनकानन में निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी चलाया जो आज भी मौजूद है। उन्होंने खासकर नारी शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया। नारी शिक्षा को लेकर उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की जो फिलहाल जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। विद्यासागर की इस धरोहर को बचाकर रखने और उसको संचालन कर रहे विद्यासागर स्मृति नाम के एक समिति काम कर रही है ।इस समिति के सदस्य देवाशीष मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि विद्यासागर का यहां आना का मुख्य मकसद सेवा करना था। यहां के लोगों को सेवा करना अपना मकसद बनाया ।गरीब और दलित आदिवासी को सेवा करते थे।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर मुफ्त में डिस्पेंसरी चलाकर लोगों को सेवा किए ।विधवा विवाह जैसे प्रचलन का प्रारंभ किया। बाल विवाह सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास को दूर करने के प्रयास किए। खासकर नारी शिक्षा पर तो जोर दिया ।कहते हैं कि विद्यासागर ने बांग्ला लिपि वर्णमाला पुस्तक लिखा जो आज भी बंगला में विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। विद्यासागर के बारे में बताया जाता है कि की 18 73 74 में 3 एकड़ जमीन लेकर कुटिया बनाई। जिसका नाम उन्होंने नंदनकानन रखा। नंदनकानन में रहकर ही वह लोगों को सेवा करते थे ।आज भी नंदनकानन में उनके द्वारा बनाए गए निशुल्क होमयोपैथिक डिस्पेंसरी संचालित है । उनके द्वारा लगाए गए पेड़ कुआं जिसमें व स्नान करते थे उनका पलंग जिसमें सोया करते थे ।आज भी इस नंदनकानन में मौजूद है।
बताया जाता है कि करीब 17 साल विद्यासागर रहकर लोगों के बीच से सेवा की ।लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ जाने के बाद वे अपने पैतृक गांव वीर गांव पश्चिम बंगाल चले गए ।जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके चले जाने के बाद उनके परिजनों ने नंदनकानन संपत्ति को किसी मल्लिक परिवार को बेच डाला। लेकिन स्थानीय लोगों ने इस महापुरुष के घरोहर को बचाकर रखने के लिए उस मल्लिक परिवार से पुनः इस जमीन को नंदन कानन को खरीदा। फिलहाल विद्यासागर स्मृति समिति द्वारा घरोहर को बचा कर रखा गया है । आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने के कारण विद्यालय चल नहीं पा रहा है और ना ही यह नंदनकानन खास विकसित और पर्यटन का रूप ले रहा है ।हालांकि इसे लेकर जब जामताड़ा जिले के उपायुक्त से संपर्क साधा गया तो उन्होंने विद्यासागर को एक पूजनीय जरूर करार दिया और कहा कि विद्या सागर द्वारा जो किया गया कार्य और जो ऐतिहासिक धरोहर को समिति के लोगों से वार्ता कर उसे विकसित रूप देने का कार्य किया जाएगा
विद्यासागर के नाम से पूर्व रेलवे का अंतर्गत पड़ने वाला कर्माटाङ रेलवे स्टेशन का नामकरण विद्यासागर पङा है ।आज इनके नाम से विद्यासागर रेलवे स्टेशन जाना जाता है।


Conclusion:विद्यासागर आज भले ही नहीं है। पर उनकी की गई कृति और गाथा नंदनकानन में गूंज रही है। जो आज भी लोगों को तरोताजा करता है। जरूरत है ऐसे महान विभूति के स्मारक और किए गए धरोहर को बचाकर रखने की।
संजय तिवारी ईटीवी भारत जामताड़ा
Last Updated : Jul 9, 2019, 7:33 AM IST
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