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ग्रामीण महिलाओं ने शुरू की जरबेरा की खेती, शादी और त्यौहार में फूलों की मांग बढ़ने से बढ़ा हौसला

चुनावी सभा हो या मांगलिक समारोह या फिर मातम सभी में फूल की जरूरत होती है. पिछले कुछ सालों से फूलों की बढ़ रही मांग को देखते हुए हजारीबाग की ग्रामीण महिलाओं ने जरबेरा की खेती शुरू कर दी. कुछ ही दिनों में इनकी खेती रंग लाने लगी और अब ये महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई हैं.

Gerbera farming
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Published : Oct 23, 2021, 5:30 PM IST

हजारीबाग: बरही प्रखंड के केदारुत पंचायत की सखी मंडल की महिलाएं जरबेरा फूल की खेती कर खुद की अलग पहचान समाज में बना रही हैं. फूलों की खेती से ग्रामीण महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही है. साथ ही साथ घर परिवार का जीवन यापन कर रही है. इनके इस कदम को अवतार डेवलपमेंट फाउंडेशन मदद कर रहा है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन के अंतर्गत महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की कोशिश की जा रही है. सरस्वती आजीविका सखी मंडल के लगभग 15 से 20 महिलाओं का समूह फूलों की खेती में लगा हुआ है.

ये भी पढ़ें- हजारीबाग में जरबेरा के फूलों से खिल रही महिलाओं की जिंदगी, खेती से खोल रही हैं तरक्की का रास्ता

झारखंड में धीरे-धीरे फूल की खेती जोर पकड़ रही है. नए किसान इससे जुड़ रहे हैं. पर आज भी झारखंड में जितने फूलों की मांग है वह पूरी नहीं हो पा रही है. ऐसे में अब महिला किसान इस व्यापार से खुद को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं. चुनावी सभा हो या मांगलिक समारोह या फिर मातम फूल सब की पहली जरूरत होती है. पहले बरही प्रखंड में सिर्फ अनाज की खेती होती थी. लेकिन अब प्रगतिशील महिला किसानों के सकारात्मक प्रयास से फूलों की खेती वृहद पैमाने पर हो रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

महिलाएं जरबेरा फूल की खेती करके आत्मनिर्भर होने की कोशिश कर रही है. महिलाओं का कहना है कि घर का काम निपटा कर हमलोग ग्रीन हाउस में खेती कर रहे हैं. महिलाओं का कहना है कि फूलों की मांग हमेशा होती है. इस कारण हम लोग इसकी खेती कर रहे हैं. पहले हम लोगों को हाथ फैलाना पड़ता था. लेकिन अब हम लोग खुद का पैसा कमा कर घर चला रहे हैं. फूल हम लोगों को संस्था के द्वारा दिया गया.

शहर की चकाचौंध से कोसों दूर रहने वाले ग्रामीण क्षेत्र की लगभग 15 महिला समूह से जुड़कर कम लागत में जैविक खेती करने का हुनर सीख लिया और इसके बाद फूल की खेती में लग गई. जिससे अब खाद और बीज खरीदने के लिए बाजार का चक्कर भी नहीं लगाना पडा. बल्कि घर पर ही केंचुआ खाद और कीटनाशक दवाइयां बनाकर कम लागत में बेहतर उपज कर ले रही हैं.

Gerbera farming
जरबेरा की खेती करती महिलाएं

महिलाएं बताती हैं कि हम लोग कुछ नया करना चाहते थे. हम लोगों को पता चला कि जैविक खेती से उत्पाद अच्छा हो सकता है. इस कारण फूलों की खेती शुरू की हूं. ऐसे तो सब्जी की खेती हम लोग करते हैं. लेकिन फूलों की खेती करने में अलग ही खुशी होती है. सबसे खास बात हमारे बगीचा की यह है खरीदार हमारे गांव तक पहुंचते हैं. हमें बाजार जाने की जरूरत नहीं होती है.

महिलाओं को मदद करने वाली अवतार डेवलपमेंट फाउंडेशन के पदाधिकारी बताते हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के अंतर्गत महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की कोशिश की जा रही है. जिससे महिलाएं स्वावलंबी हो रही हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हम लोग जैविक खाद्य से फूलों की खेती कर रहे हैं. जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बरकरार रहती है. हम लोग गांव में अन्य जगह भी जैविक खाद बनाने के लिए तैयारी कर रहे हैं. आने वाले दिनों में जैविक खाद भी हम लोगों के द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा.

Gerbera farming
जरबेरा की खेती करती महिलाएं

कहा जाए तो महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिए फूलों की खेती मील का पत्थर साबित होगा. जैविक खेती के द्वारा महिलाओं को नए पद्धति से खेती करने की जानकारी भी दी जा रही है. जिससे उत्पाद अच्छा होने की उम्मीद लगाई जा सकती है.

हजारीबाग: बरही प्रखंड के केदारुत पंचायत की सखी मंडल की महिलाएं जरबेरा फूल की खेती कर खुद की अलग पहचान समाज में बना रही हैं. फूलों की खेती से ग्रामीण महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही है. साथ ही साथ घर परिवार का जीवन यापन कर रही है. इनके इस कदम को अवतार डेवलपमेंट फाउंडेशन मदद कर रहा है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन के अंतर्गत महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की कोशिश की जा रही है. सरस्वती आजीविका सखी मंडल के लगभग 15 से 20 महिलाओं का समूह फूलों की खेती में लगा हुआ है.

ये भी पढ़ें- हजारीबाग में जरबेरा के फूलों से खिल रही महिलाओं की जिंदगी, खेती से खोल रही हैं तरक्की का रास्ता

झारखंड में धीरे-धीरे फूल की खेती जोर पकड़ रही है. नए किसान इससे जुड़ रहे हैं. पर आज भी झारखंड में जितने फूलों की मांग है वह पूरी नहीं हो पा रही है. ऐसे में अब महिला किसान इस व्यापार से खुद को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं. चुनावी सभा हो या मांगलिक समारोह या फिर मातम फूल सब की पहली जरूरत होती है. पहले बरही प्रखंड में सिर्फ अनाज की खेती होती थी. लेकिन अब प्रगतिशील महिला किसानों के सकारात्मक प्रयास से फूलों की खेती वृहद पैमाने पर हो रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

महिलाएं जरबेरा फूल की खेती करके आत्मनिर्भर होने की कोशिश कर रही है. महिलाओं का कहना है कि घर का काम निपटा कर हमलोग ग्रीन हाउस में खेती कर रहे हैं. महिलाओं का कहना है कि फूलों की मांग हमेशा होती है. इस कारण हम लोग इसकी खेती कर रहे हैं. पहले हम लोगों को हाथ फैलाना पड़ता था. लेकिन अब हम लोग खुद का पैसा कमा कर घर चला रहे हैं. फूल हम लोगों को संस्था के द्वारा दिया गया.

शहर की चकाचौंध से कोसों दूर रहने वाले ग्रामीण क्षेत्र की लगभग 15 महिला समूह से जुड़कर कम लागत में जैविक खेती करने का हुनर सीख लिया और इसके बाद फूल की खेती में लग गई. जिससे अब खाद और बीज खरीदने के लिए बाजार का चक्कर भी नहीं लगाना पडा. बल्कि घर पर ही केंचुआ खाद और कीटनाशक दवाइयां बनाकर कम लागत में बेहतर उपज कर ले रही हैं.

Gerbera farming
जरबेरा की खेती करती महिलाएं

महिलाएं बताती हैं कि हम लोग कुछ नया करना चाहते थे. हम लोगों को पता चला कि जैविक खेती से उत्पाद अच्छा हो सकता है. इस कारण फूलों की खेती शुरू की हूं. ऐसे तो सब्जी की खेती हम लोग करते हैं. लेकिन फूलों की खेती करने में अलग ही खुशी होती है. सबसे खास बात हमारे बगीचा की यह है खरीदार हमारे गांव तक पहुंचते हैं. हमें बाजार जाने की जरूरत नहीं होती है.

महिलाओं को मदद करने वाली अवतार डेवलपमेंट फाउंडेशन के पदाधिकारी बताते हैं कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के अंतर्गत महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की कोशिश की जा रही है. जिससे महिलाएं स्वावलंबी हो रही हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हम लोग जैविक खाद्य से फूलों की खेती कर रहे हैं. जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बरकरार रहती है. हम लोग गांव में अन्य जगह भी जैविक खाद बनाने के लिए तैयारी कर रहे हैं. आने वाले दिनों में जैविक खाद भी हम लोगों के द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा.

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जरबेरा की खेती करती महिलाएं

कहा जाए तो महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिए फूलों की खेती मील का पत्थर साबित होगा. जैविक खेती के द्वारा महिलाओं को नए पद्धति से खेती करने की जानकारी भी दी जा रही है. जिससे उत्पाद अच्छा होने की उम्मीद लगाई जा सकती है.

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