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अमावस की रात होती है सिद्धि की रात्रि, भूमिगत मंदिर में है पंच मुंडी आसन

हजारीबाग का श्मशान काली की पूजा बेहद खास है. जहां मध्य रात्रि विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यहां की पूजा की खासियत यह है कि यहां एक भूमिगत मंदिर है, जहां विशेष आयोजन में ही कपाट खुलता है और अंदर में ही पूजा होती है. कहा जाता है कि यहा पंच मुंडी आसन है, जहां तंत्र विद्या के साधक विशेष पूजा अर्चना कर सिद्धि प्राप्त करते हैं.

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Published : Nov 15, 2020, 7:35 AM IST

Updated : Nov 15, 2020, 10:29 AM IST

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श्मशान काली की पूजा

हजारीबागः अमावस्या की रात कई मायनों में खास होती है. एक तरफ जहां मां काली की भव्य पूजा होती है वहीं दूसरी तरफ तांत्रिकों के लिए भी अमावस्या की रात बेहद खास होती है. क्योंकि तांत्रिक इस रात को सिद्धि की रात कहते हैं. हजारीबाग में भी अमावस्या की रात श्मशान घाट स्थित मंदिर में बने मां काली का भव्य मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है.

देखें पूरी खबर

भूमिगत मंदिर में होती है पूजा

मुक्तिधाम में स्थित मां काली के मंदिर में भूतनाथ मंडली ने भव्य पूजा अर्चना की और सुख शांति और समृद्धि की कामना की गई. इस दौरान लंगर का आयोजन भी किया जाता है. ऐसा माना जाता के अमावस्या की रात काली पूजा में जो लोग सच्चे मन से मां से मांगते हैं उसकी झोली कभी खाली नहीं रहती. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां एक भूमिगत मंदिर भी है. जहां विशेष पूजा अर्चना के दौरान कपाट खुलता है और फिर पूजा अर्चना के बाद कपाट बंद कर दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां पंच मुंडी आसन है, जहां सिद्धि की जाती है यहां बहुत ही नियम के साथ पूजा किया जाता है.

इसे भी पढ़ें- अनाथ बच्चों के साथ नजर आए वर्दी वाले बाबू, मनाया बाल दिवस और दिवाली

इस मंदिर को जागृत माना जाता है
इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह बहुत अधिक जागृत है. जब मंदिर भव्य नहीं बना था उस वक्त एक बरामदा था और वहां बिरजू नाम का व्यक्ति रहा करता था. उसकी आंख नहीं थी, उसने मां से यह आशीर्वाद मांगा था कि जब उसकी मौत हो तो वह मां को देख सके. मौत के पहले उसका आंख वापस आ गईं और वह देखने लगा. यही नहीं वर्तमान समय में एक व्यक्ति जिसका दोनों पैर खराब था. वह वर्षों मां के दरबार में सेवा देता रहा और उसका दोनों पैर भी ठीक हो गया.

पहले इस मंदिर में विशेष रुप से सिद्धि के लिए तांत्रिक दूरदराज से पहुंचते भी थे. अब धीरे-धीरे समय बीतने के साथ से अमवस्या के दिन तांत्रिक दूर होते चले गए. फिर भी आज के समय में यह मंदिर का महत्व कम नहीं हुआ है. यही कारण है कि आज भी दूर दराज से भक्त यहां पहुंचते हैं.

हजारीबागः अमावस्या की रात कई मायनों में खास होती है. एक तरफ जहां मां काली की भव्य पूजा होती है वहीं दूसरी तरफ तांत्रिकों के लिए भी अमावस्या की रात बेहद खास होती है. क्योंकि तांत्रिक इस रात को सिद्धि की रात कहते हैं. हजारीबाग में भी अमावस्या की रात श्मशान घाट स्थित मंदिर में बने मां काली का भव्य मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है.

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भूमिगत मंदिर में होती है पूजा

मुक्तिधाम में स्थित मां काली के मंदिर में भूतनाथ मंडली ने भव्य पूजा अर्चना की और सुख शांति और समृद्धि की कामना की गई. इस दौरान लंगर का आयोजन भी किया जाता है. ऐसा माना जाता के अमावस्या की रात काली पूजा में जो लोग सच्चे मन से मां से मांगते हैं उसकी झोली कभी खाली नहीं रहती. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां एक भूमिगत मंदिर भी है. जहां विशेष पूजा अर्चना के दौरान कपाट खुलता है और फिर पूजा अर्चना के बाद कपाट बंद कर दिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां पंच मुंडी आसन है, जहां सिद्धि की जाती है यहां बहुत ही नियम के साथ पूजा किया जाता है.

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इस मंदिर को जागृत माना जाता है
इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह बहुत अधिक जागृत है. जब मंदिर भव्य नहीं बना था उस वक्त एक बरामदा था और वहां बिरजू नाम का व्यक्ति रहा करता था. उसकी आंख नहीं थी, उसने मां से यह आशीर्वाद मांगा था कि जब उसकी मौत हो तो वह मां को देख सके. मौत के पहले उसका आंख वापस आ गईं और वह देखने लगा. यही नहीं वर्तमान समय में एक व्यक्ति जिसका दोनों पैर खराब था. वह वर्षों मां के दरबार में सेवा देता रहा और उसका दोनों पैर भी ठीक हो गया.

पहले इस मंदिर में विशेष रुप से सिद्धि के लिए तांत्रिक दूरदराज से पहुंचते भी थे. अब धीरे-धीरे समय बीतने के साथ से अमवस्या के दिन तांत्रिक दूर होते चले गए. फिर भी आज के समय में यह मंदिर का महत्व कम नहीं हुआ है. यही कारण है कि आज भी दूर दराज से भक्त यहां पहुंचते हैं.

Last Updated : Nov 15, 2020, 10:29 AM IST
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