हजारीबागः मनरेगा भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 7 सितंबर 2005 को अधिनियमित किया गया. यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है, जो प्रतिदिन राज्य की न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल मजदूरी करने के लिए तैयार रहते हैं. कोरोना काल के दौरान मनरेगा मजदूरों के लिए वरदान से कम साबित नहीं हुई, जब पूरे देश में लॉकडाउन हुआ तो मजदूर अपने अपने गांव लौट पड़े. ऐसे में लौटे हुए मजदूरों का घर कैसे चले उन्हें रोजगार कैसे मिले इसमें मनरेगा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
गरीब कल्याण रोजगार अभियान
प्रवासी कामगारों को अपने पंचायत में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की ओर से प्रायोजित गरीब कल्याण रोजगार अभियान जिसमें देशभर के 116 जिलों का चयन किया गया. उसमें झारखंड के 3 जिले शामिल हैं, जिसमें गिरिडीह, गोड्डा के साथ-साथ प्रमंडलीय मुख्यालय हजारीबाग को शामिल किया गया था.
इन जिलों में सर्वाधिक पलायन होता दिखा. देश के 6 राज्यों के 116 जिलों में 50 हजार करोड़ लागत वाली गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की गई. गरीब कल्याण रोजगार अभियान योजना में ग्रामीण प्रवृति के 25 प्रकार के रोजगारपरक काम का सृजन कर प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया गया. ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार अभियान के तहत 100 की जगह 125 दिन मतलब 4 महीने का रोजगार मुहैया कराया गया. इसके साथ ही इस अभियान में न्यूनतम 25,000 श्रमिकों को जोड़े जाने का प्रावधान है.
रोजगार उपलब्ध कराना चुनौती से कम नहीं
प्रमंडलीय मुख्यालय हजारीबाग में कोरोना काल में करीब 62 हजार प्रवासी मजदूर कामगार महानगरों से वापस अपने गांव शहर लौटे. इन प्रवासी कामगारों को मनरेगा सहित अन्य योजनाओं में रोजगार उपलब्ध कराना चुनौती से कम नहीं रहा. योजना के तहत सामुदायिक स्वच्छता, ग्राम पंचायत भवन, वित्त निगम कोष के तहत आने वाले काम के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण, फाइबर केबल बिछाने के काम भी रहे. हजारीबाग के उप विकास आयुक्त अभय कुमार सिन्हा का भी कहना है कि हम लोगों ने मनरेगा योजना के तहत मजदूरों को रोजगार देने का काम किया है. इस बाबत बजट तैयार किया जाता है. जिला प्रोग्राम ऑफिसर, ब्लॉक ऑफिसर, पंचायत सेवक, रोजगार सेवक मनरेगा मजदूर को रोजगार देने के कार्य में लगा रहता है.
अभियान चलाकर रोजगार देने का काम
वहीं प्रवासी मजदूरों की बात की जाए तो हम लोगों ने बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में जोड़ा है. उन लोगों से कई तरह का भी काम कराया, जिसमें खासकर अकुशल मजदूरों के लिए विशेष तरह से हम लोगों ने अभियान चलाकर उन्हें रोजगार दिया है. प्रवासी मजदूर फिर से पलायन न करें इसका भी ख्याल रखा जा रहा है. हम लोग डोर टू डोर निरीक्षण भी कर रहे हैं. उनको उनके ही पंचायत में काम देने का काम भी कर रहे हैं.
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डेवलपमेंट के लिए विशेष प्रशिक्षण
झारखंड सरकार के श्रम नियोजन एवं कौशल विकास मंत्री सत्यानंद भोक्ता का भी कहना है कि हम लोग मजदूरों पर विशेष नजर रखे हुए हैं. जनवरी महीने से स्किल डेवलपमेंट के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि मजदूर दूसरे जगह पलायन न करें. झारखंड के ही कल कारखाने में उन्हें रोजगार मिले. इससे पलायन भी रुकेगा और मजदूरों को उनके ही राज्य में काम भी मिल जाएगा. झारखंड एक खनिज संपदा राज्य है और हम लोग देश की रीढ़ हैं. ऐसे में मजदूरों पर विशेष नजर रखी जा रही है.
दूसरी ओर झारखंड सरकार के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख का भी कहना है कि झारखंड में अभी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. ऐसे में हम लोग सभी मजदूरों को रोजगार नहीं दे सकते हैं. यहां एक संघीय ढांचा है देश के किसी भी कोने में जाकर लोग काम कर सकते हैं. ऐसे में मजदूर दूसरे राज्य में काम करने जा भी रहे हैं लेकिन आने वाले समय में हम लोग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के बाद मजदूरों को यही रोजगार देंगे.
मजदूरों को हो रहा फायदा
वर्तमान समय में कई जगह मनरेगा का कार्य चल रहा है. दारू प्रखंड में मनरेगा के तहत आंगनबाड़ी केंद्र, बिरहोर टोला का निर्माण और डोभा का भी निर्माण किया जा रहा है, जिसमें प्रवासी मजदूर के साथ-साथ ग्रामीण भी काम कर रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि हम लोगों को फायदा यहीं हो रहा है कि पैसा के लिए ठेकेदार के पास नहीं दौड़ना पड़ रहा है.
हम लोगों को 1 सप्ताह के अंदर पैसा मिल जा रहा है. वहीं बाहर भी पलायन करने की जरूरत नहीं है. दूसरी ओर रोजगार सेवक का कहना है कि मजदूरों का पलायन तो हुआ है, लेकिन अभी भी कई प्रवासी मजदूर गांव में ही हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें रोजगार अपने घर में ही मिले. इस कारण पलायन की रफ्तार कम है.
195 रुपये प्रतिदिन मजदूरी
मनरेगा मजदूरों के सामने सबसे बड़ी समस्या पैसा को लेकर है. वर्तमान समय में लगभग 195 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है. अगर अन्य मजदूरों से मजदूरी की तुलना की जाए तो लगभग आधे के आसपास है. ऐसे में मजदूर मनरेगा में काम नहीं करके कहीं और निजी स्तर में काम करना चाहते हैं, यही कारण पलायन का है. जरूरत है सरकार को मजदूरी बढ़ाने की, तभी मजदूरों का पलायन रुकेगा.
मनरेगा अंतर्गत प्रवासी मजदूरों को कार्य में लगाने का विवरण
हजारीबाग में कुल 257 पंचायत हैं. लॉकडाउन के दौरान कुल 52977 प्रवासी मजदूर पहुंचे, जिनमें 29765 अकुशल प्रवासी मजदूर थे. इनमें से 2191 महिलाएं और 6198 पुरुष कुल 8389 लोगों के पास पहले से मनरेगा का जॉब कार्ड था.
वहीं इस दौरान 3,732 महिला और 14,069 पुरुष कुल 17,801 प्रवासी मजदूरों को नया जॉब कार्ड उपलब्ध कराया गया. कुल प्रवासी मजदूरों की संख्या 26190 थी. वहीं सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी मजदूरों की संख्या जिन्हें काम उपलब्ध कराया गया. उनमें महिलाओं की संख्या 3,349 और पुरुष की संख्या 6,327 कुल 9,676 मजदूर थे.
वहीं अगर दिसंबर की बात की जाए तो वर्तमान में 1,31,957 परिवार कार्डधारक हैं जिसमें 1,73,229 लोगों का निबंधन किया हुआ है. इस वर्ष 1,31,907 हाउसहोल्ड और 1,73,152 लोगों को काम करने का प्रस्ताव दिया गया, जिसमें 101753 हाउसहोल्ड को काम दिया गया. जिसमें 1,22,893 मजदूर चिंहित थे. वहीं अब तक 2022 परिवार का 100 दिन का कार्य पूरा हो चुका है.
अगर वर्तमान समय में प्रवासी मजदूरों की आंकड़े की बात की जाए तो प्रत्येक प्रखंड से मजदूरों का पलायन हुआ है, लेकिन उनमें से कई ऐसे मजदूर हैं जो 100 दिन का काम पूरा कर चुके हैं. ऐसे में उन मजदूरों का अब आंकड़ा तैयार किया जा रहा है. वहीं अन्य प्रखंड का भी आंकड़ा तैयार करने को कहा गया है कि कितने प्रवासी मजदूर अभी वर्तमान में हैं और कितने अपने काम के लिए दूसरे शहर चले गए.