हजारीबाग: महुआ झारखंड की पहचान है. महुआ आदिवासी समाज के लिए महत्व रखता है. झारखंड में महुआ का दूसरा नाम किशमिश है. ग्रामीण आदिवासी महुआ पेड़ के तना, छाल, फल, फूल और पत्तियों का इस्तेमाल दवा के रूप में भी करते हैं. महुआ चुनने के लिए ग्रामीण अक्सर जंगलों को रुख करते हैं, लेकिन यही महुआ वन विभाग के लिए चुनौती बनता जा रहा है.
वन विभाग का मानना है कि गर्मी शुरू होते ही महुआ पक कर गिरते हैं. इस महुआ को चुनने के लिए लोग जंगलों में पहुंचते हैं, लेकिन जंगल में फैले हुए पत्तों की वजह से महुआ चुनने में परेशानी होती है. इस परेशानी से बचने के लिए ग्रामीण पत्तों में आग (fire in forest) लगा देते हैं और आग पूरे जंगल में फैल जाता है. इससे पर्यावरण समेत वन्य जीवों पर भी असर पड़ता है.
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ग्रामीण क्षेत्रों में चलाए जाएंगे जागरूकता कार्यक्रम: वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि महुआ चुनने वाले ग्रामीण पत्तों को साफ करने के लिए वहां आग लगा देते हैं. इस आग से होने वाले नुकसान के बारे में ग्रामीणों को जागरूक करने की जरुरत है. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे. कार्यक्रम के दौरान महुआ चुनने के तरीकों के बारे में भी बताया जाएगा. इसके लिए वन समिति समाजसेवी और पर्यावरण विदों का सहारा लिया जाएगा. ताकि आने वाले समय में ऐसी घटना पर विराम लगाया जा सके. वहीं वन विभाग इन्हीं ग्रामीणों को जंगलों का सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी कर रहे हैं.