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हजारीबाग के पूरन पनियां गांव का रियलिटी चेक! देखिए, ईटीवी भारत की पूरी पड़ताल की पूरी रिपोर्ट

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Published : Jan 10, 2022, 9:36 PM IST

Updated : Jan 10, 2022, 10:23 PM IST

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक गर्भवती महिला को खटिया से अस्पताल ले जाया गया. लेकिन रास्ते में ही उसका प्रसव हो गया. वाकया हजारीबाग के सुदूर गांव का है. हजारीबाग के पूरन पनियां गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया. स्पेशल रिपोर्ट से जानिए क्या कुछ निकला इस पड़ताल में.

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हजारीबाग के पूरन पनियां

हजारीबागः ईटीवी भारत की टीम पूरन पनियां गांव पहुंची. क्योंकि पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जो इसी इलाके का बताया गया था. जिसमें दिखाया गया था कि सड़क नहीं होने के कारण खटिया में महिला को अस्पताल ले जाया गया और रास्ते में ही उसका प्रसव हो गया. हजारीबाग के पूरन पनियां गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी है, इस बात की तफ्तीश के लिए ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल किया और जानने की कोशिश की गांव में आखिर क्या सुविधा है.

इसे भी पढ़ें- हजारीबाग में महिला को खटिया पर ले जाना पड़ा अस्पताल, प्रसव पीड़िता के इलाज में हुई दो घंटे की देरी


आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर मूलभूत सुविधा सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र को ना मिले तो कहना गलत नहीं होता है कि सरकार ने उन क्षेत्रों को अनदेखा किया है. ऐसा ही कुछ स्थिति हजारीबाग के इचाक प्रखंड के पूरन पनियां गांव की है. वैसे तो इस गांव के बारे में बहुत कम ही लोगों को जानकारी है. लेकिन महिला के खटिया में अस्पताल ले जाने का वीडियो वायरल होने के बाद ये गांव सुर्खियों में है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

ईटीवी भारत ने भी एक वायरल वीडियो का रियलिटी चेक किया और जानने की कोशिश की कि आखिर गांव की क्या स्थिति है. ईटीवी भारत की टीम हजारीबाग के इचाक प्रखंड के पूरन पनियां गांव की ओर रवाना हुई. गांव जाने के लिए स्थानीय लोगों की भी मदद चाहिए थी. ऐसे में कुछ लोगों ने मदद भी किया कुछ समाजसेवी भी सामने आए और फिर हम लोग निकल पड़े उस गांव की ओर. नदी, जंगल, नाला पार करते हुए गांव पहुंचे.

पूरन पनियां गांव पहुंचने के लिए लगभग 7 से 8 किलोमीटर तक मोटरसाइकिल से जाना पड़ता है. इस बीच कई बार मोटरसाइकिल से उतरना भी पड़ता है. क्योंकि सड़क उस गांव तक नहीं जाती है. बेहद परेशानी के बाद जब गांव पहुंचे तो ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रकृति की गोद में वह गांव बसा हुआ है. प्रकृति ने इस गांव बेहद खूबसूरती से सजाया है. लेकिन सरकार की अनदेखी भी साफ तौर से दिखी. यहां ना सड़क दिखी, ना अस्पताल और ना ही अच्छा स्कूल. गांव के स्कूल में मात्र पांचवी क्लास तक ही बच्चे स्कूल में पढ़ सकते हैं. अगर आगे पढ़ने की इच्छा हुई तो फिर 7 से 8 किलोमीटर दूर जंगल पार करके जाना पड़ेगा. जिस कारण बच्चे स्कूल जाना भी पसंद नहीं करते हैं. माता पिता भेजना भी नहीं पसंद करते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों से पूछा कि आपके गांव में किस महिला का प्रसव रास्ते में हो गया और डोली में उसे अस्पताल ले जाना पड़ा. तब वो महिला भी सामने आई और आपबीती ईटीवी भारत से साझा की. लेकिन वो महिला आदिवासी है और वह हिंदी नहीं जानती है. ऐसे में वो अपनी बात नहीं रख पाई. लेकिन उसके परिजनों ने सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. गांव में एक महिला भी ईटीवी भारत की टीम को मिली जो गांव में प्रसव कराने का काम करती है. जिसे ग्रामीण महिला डॉक्टर कहते हैं. इस महिला ने बताया कि उसने इस गांव की कई महिलाओं का प्रसव कराया है. क्योंकि यहां डॉक्टर नहीं है, इस कारण गांव के लोग उसे ही बुलाते हैं और वो भी काफी दूर से आती हैं. अगर रात में किसी का फोन आ गया तब आना मुश्किल हो जाता है. कोई घर वाला अगर पहुंचा दिया तो ठीक है नहीं तो सुबह का इंतजार करना होता है. उनका भी कहना है कि अगर सड़क होती तो गांव में डॉक्टर भी आते और यहां के मरीज अस्पताल भी जा सकते थे. लेकिन यहां मरीज भगवान भरोसे ही रहते हैं.

इसे भी पढ़ें- पानी से पेंशन तक के लिए तरस रहे दुमका के पहाड़िया, पढ़ें पूरी दुख कथा


राकेश हेंब्रम जो समाजसेवी हैं और इस गांव के लोगों के बारे में हमेशा आवाज उठाते हैं. उनका कहना है कि लगभग 400 की आबादी वाला यह गांव है और यहां सड़क नहीं है. ऐसे में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है और जो हिंदी बोल भी नहीं सकते. सरकार तक हमेशा आवाज उठाई गयी लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. गांव के वार्ड पार्षद सदस्य भी बताते हैं कि महिला के रास्ते में ही प्रसव हो जाना गांव के लिए काफी अपमानजनक है. लेकिन कोई उपाय नहीं है, डोली में करके कई मरीजों को पहाड़ पार कराया जाता है. उनकी मांग है कि इस गांव को सड़क चाहिए, जिससे यहां का विकास हो, लोग अस्पताल जा सके, गांव के बच्चे पढ़ाई के लिए दूर जा सके.


महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरा क्षेत्र जंगल का है. ऐसे में सड़क निर्माण करना यहां चुनौती से भरा है. वन अधिग्रहण क्षेत्र होने के कारण सड़क बनाने के लिए वन विभाग से भी मंजूरी की जरूरत होगी. यहां सवाल खड़ा होता है कि अगर विभाग एनओसी नहीं देता है तो क्या ये लोग इसी तरह अपना जीवन काटेंगे. ऐसे में जरूरत है वैकल्पिक व्यवस्था करने की ताकि इस गांव के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके.

हजारीबागः ईटीवी भारत की टीम पूरन पनियां गांव पहुंची. क्योंकि पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जो इसी इलाके का बताया गया था. जिसमें दिखाया गया था कि सड़क नहीं होने के कारण खटिया में महिला को अस्पताल ले जाया गया और रास्ते में ही उसका प्रसव हो गया. हजारीबाग के पूरन पनियां गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी है, इस बात की तफ्तीश के लिए ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल किया और जानने की कोशिश की गांव में आखिर क्या सुविधा है.

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आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर मूलभूत सुविधा सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र को ना मिले तो कहना गलत नहीं होता है कि सरकार ने उन क्षेत्रों को अनदेखा किया है. ऐसा ही कुछ स्थिति हजारीबाग के इचाक प्रखंड के पूरन पनियां गांव की है. वैसे तो इस गांव के बारे में बहुत कम ही लोगों को जानकारी है. लेकिन महिला के खटिया में अस्पताल ले जाने का वीडियो वायरल होने के बाद ये गांव सुर्खियों में है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

ईटीवी भारत ने भी एक वायरल वीडियो का रियलिटी चेक किया और जानने की कोशिश की कि आखिर गांव की क्या स्थिति है. ईटीवी भारत की टीम हजारीबाग के इचाक प्रखंड के पूरन पनियां गांव की ओर रवाना हुई. गांव जाने के लिए स्थानीय लोगों की भी मदद चाहिए थी. ऐसे में कुछ लोगों ने मदद भी किया कुछ समाजसेवी भी सामने आए और फिर हम लोग निकल पड़े उस गांव की ओर. नदी, जंगल, नाला पार करते हुए गांव पहुंचे.

पूरन पनियां गांव पहुंचने के लिए लगभग 7 से 8 किलोमीटर तक मोटरसाइकिल से जाना पड़ता है. इस बीच कई बार मोटरसाइकिल से उतरना भी पड़ता है. क्योंकि सड़क उस गांव तक नहीं जाती है. बेहद परेशानी के बाद जब गांव पहुंचे तो ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रकृति की गोद में वह गांव बसा हुआ है. प्रकृति ने इस गांव बेहद खूबसूरती से सजाया है. लेकिन सरकार की अनदेखी भी साफ तौर से दिखी. यहां ना सड़क दिखी, ना अस्पताल और ना ही अच्छा स्कूल. गांव के स्कूल में मात्र पांचवी क्लास तक ही बच्चे स्कूल में पढ़ सकते हैं. अगर आगे पढ़ने की इच्छा हुई तो फिर 7 से 8 किलोमीटर दूर जंगल पार करके जाना पड़ेगा. जिस कारण बच्चे स्कूल जाना भी पसंद नहीं करते हैं. माता पिता भेजना भी नहीं पसंद करते हैं.

ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों से पूछा कि आपके गांव में किस महिला का प्रसव रास्ते में हो गया और डोली में उसे अस्पताल ले जाना पड़ा. तब वो महिला भी सामने आई और आपबीती ईटीवी भारत से साझा की. लेकिन वो महिला आदिवासी है और वह हिंदी नहीं जानती है. ऐसे में वो अपनी बात नहीं रख पाई. लेकिन उसके परिजनों ने सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. गांव में एक महिला भी ईटीवी भारत की टीम को मिली जो गांव में प्रसव कराने का काम करती है. जिसे ग्रामीण महिला डॉक्टर कहते हैं. इस महिला ने बताया कि उसने इस गांव की कई महिलाओं का प्रसव कराया है. क्योंकि यहां डॉक्टर नहीं है, इस कारण गांव के लोग उसे ही बुलाते हैं और वो भी काफी दूर से आती हैं. अगर रात में किसी का फोन आ गया तब आना मुश्किल हो जाता है. कोई घर वाला अगर पहुंचा दिया तो ठीक है नहीं तो सुबह का इंतजार करना होता है. उनका भी कहना है कि अगर सड़क होती तो गांव में डॉक्टर भी आते और यहां के मरीज अस्पताल भी जा सकते थे. लेकिन यहां मरीज भगवान भरोसे ही रहते हैं.

इसे भी पढ़ें- पानी से पेंशन तक के लिए तरस रहे दुमका के पहाड़िया, पढ़ें पूरी दुख कथा


राकेश हेंब्रम जो समाजसेवी हैं और इस गांव के लोगों के बारे में हमेशा आवाज उठाते हैं. उनका कहना है कि लगभग 400 की आबादी वाला यह गांव है और यहां सड़क नहीं है. ऐसे में लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है और जो हिंदी बोल भी नहीं सकते. सरकार तक हमेशा आवाज उठाई गयी लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. गांव के वार्ड पार्षद सदस्य भी बताते हैं कि महिला के रास्ते में ही प्रसव हो जाना गांव के लिए काफी अपमानजनक है. लेकिन कोई उपाय नहीं है, डोली में करके कई मरीजों को पहाड़ पार कराया जाता है. उनकी मांग है कि इस गांव को सड़क चाहिए, जिससे यहां का विकास हो, लोग अस्पताल जा सके, गांव के बच्चे पढ़ाई के लिए दूर जा सके.


महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरा क्षेत्र जंगल का है. ऐसे में सड़क निर्माण करना यहां चुनौती से भरा है. वन अधिग्रहण क्षेत्र होने के कारण सड़क बनाने के लिए वन विभाग से भी मंजूरी की जरूरत होगी. यहां सवाल खड़ा होता है कि अगर विभाग एनओसी नहीं देता है तो क्या ये लोग इसी तरह अपना जीवन काटेंगे. ऐसे में जरूरत है वैकल्पिक व्यवस्था करने की ताकि इस गांव के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके.

Last Updated : Jan 10, 2022, 10:23 PM IST
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