हजारीबागः जिले के बड़कागांव प्रखंड के केरेडारी रोड में 200 विस्थापित महिला अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए बड़े ही लगन और परिश्रम के साथ जुटी हुई है. ये वो महिलाएं हैं जो उत्खनन कार्य के कारण विस्थापित हो गईं. विस्थापित होने के बाद इन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ा. खेती वाली जमीन जो सोना उगला करती थी वहां से कोयला निकलना शुरू हो गया. ऐसे में ये बेरोजगार भी हो गईं. लेकिन इस चुनौती को उन्होंने अपनी कामयाबी की डगर बना ली. पहले कंपनी के द्वारा इन्हें कपड़ा सीने की ट्रेनिंग दी गई. जिसमें शर्ट, पैंट, जैकेट, कोट, स्वेटर, स्कूल के कपड़े, ट्रैक सूट शामिल थे. जब यह हुनरवान हो गई तो अब बड़े बड़े मॉल के प्रबंधक इनसे गारमेंट्स बनवा रहे हैं. हजारीबाग ही नहीं महानगरों में भी इन महिलाओं का बना हुआ शर्ट पैंट बिक रहा है.
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गारमेंट सीने वाली महिलाएं भी बताती हैं कि पहले हमलोगों की स्थिति बेहद खराब थी. हमलोगों की जमीन एनटीपीसी के द्वारा ले लिया गया और इसके बाद हमलोग बेरोजगार हो गए. ऐसे में कंपनी के लोगों ने बात की और बताया कि कोयला उत्खनन करना देश के लिए जरूरी है. इसके लिए आपको जमीन देनी होगी. आप लोगों को रोजगार देने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी और आप लोग ट्रेनिंग पाकर खुद के पैर पर खड़े हो सकते हैं. ऐसे में हमलोगों ने ट्रेनिंग ली और आज पैसा कमा रहे हैं. जिससे हमारे घर की स्थिति भी बदल रही है.
कंपनी के कर्मी भी बताते हैं कि गारमेंट्स कंपनी में लगभग 200 महिलाएं काम कर रही हैं. कपड़ा अलग-अलग बड़े-बड़े कंपनी को भेजा जाएगा. यही नहीं अब हमलोग अपना क्षेत्र भी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. आने वाले समय में एक्सपोर्ट लाइसेंस लेने की तैयारी चल रही है. ताकि महिलाओं के द्वारा बनाया गया कपड़ा विदेशों तक जाएं. कंपनी के कर्मी भी बताते हैं कि यह 200 महिलाएं जो हमारे यहां काम कर रही हैं सभी विस्थापित हैं.
International Women's Day: विस्थापन के दर्द को पीछे छोड़ 200 महिलाएं कपड़े सिल कर बना रही भविष्य
विस्थापन का दर्द बहुत ही तकलीफ देने वाला होता है. विस्थापन के कई कारण होते हैं. जिसमें उत्खनन सबसे महत्वपूर्ण है. जिस क्षेत्र में भी उत्खन होता है वहां के लोग विस्थापित हो जाते हैं. लेकिन उत्खनन कार्य भी देश की प्रगति के लिए जरूरी है. ऐसे में बड़कागांव में भी कोयला उत्खनन के कारण कई परिवार विस्थापित हो गए. लेकिन इन्हीं परिवारों में से 200 महिलाओं ने विस्थापन के दर्द को अपना शक्ति बनाया. आज वह अपने पैरों पर खड़े हो रही है और उनकी पहचान दूर तलक तक जा रही है.
हजारीबागः जिले के बड़कागांव प्रखंड के केरेडारी रोड में 200 विस्थापित महिला अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए बड़े ही लगन और परिश्रम के साथ जुटी हुई है. ये वो महिलाएं हैं जो उत्खनन कार्य के कारण विस्थापित हो गईं. विस्थापित होने के बाद इन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ा. खेती वाली जमीन जो सोना उगला करती थी वहां से कोयला निकलना शुरू हो गया. ऐसे में ये बेरोजगार भी हो गईं. लेकिन इस चुनौती को उन्होंने अपनी कामयाबी की डगर बना ली. पहले कंपनी के द्वारा इन्हें कपड़ा सीने की ट्रेनिंग दी गई. जिसमें शर्ट, पैंट, जैकेट, कोट, स्वेटर, स्कूल के कपड़े, ट्रैक सूट शामिल थे. जब यह हुनरवान हो गई तो अब बड़े बड़े मॉल के प्रबंधक इनसे गारमेंट्स बनवा रहे हैं. हजारीबाग ही नहीं महानगरों में भी इन महिलाओं का बना हुआ शर्ट पैंट बिक रहा है.
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गारमेंट सीने वाली महिलाएं भी बताती हैं कि पहले हमलोगों की स्थिति बेहद खराब थी. हमलोगों की जमीन एनटीपीसी के द्वारा ले लिया गया और इसके बाद हमलोग बेरोजगार हो गए. ऐसे में कंपनी के लोगों ने बात की और बताया कि कोयला उत्खनन करना देश के लिए जरूरी है. इसके लिए आपको जमीन देनी होगी. आप लोगों को रोजगार देने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी और आप लोग ट्रेनिंग पाकर खुद के पैर पर खड़े हो सकते हैं. ऐसे में हमलोगों ने ट्रेनिंग ली और आज पैसा कमा रहे हैं. जिससे हमारे घर की स्थिति भी बदल रही है.
कंपनी के कर्मी भी बताते हैं कि गारमेंट्स कंपनी में लगभग 200 महिलाएं काम कर रही हैं. कपड़ा अलग-अलग बड़े-बड़े कंपनी को भेजा जाएगा. यही नहीं अब हमलोग अपना क्षेत्र भी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. आने वाले समय में एक्सपोर्ट लाइसेंस लेने की तैयारी चल रही है. ताकि महिलाओं के द्वारा बनाया गया कपड़ा विदेशों तक जाएं. कंपनी के कर्मी भी बताते हैं कि यह 200 महिलाएं जो हमारे यहां काम कर रही हैं सभी विस्थापित हैं.