हजारीबाग: जिले के एक युवा ने देश की नामी इंजीनियरिंग कॉलेज बीआईटी मेसरा में सिविल इंजीनियर की पढ़ाई की. पढ़ाई के बाद 14 सालों तक विभिन्न कंपनियों में उच्च पदाधिकारी के पद पर काम किया. अब वे खेती से जुड़े कार्य में अपनी सेवा दे रहे हैं और किसानों को नए तकनिक से खेती करने की गुर सिखा रहे हैं, जिससे किसानों के आमदनी में बढ़ोतरी हुई है और वो खुश हैं.
टेक्नोलॉजी की मदद से सहायता
हजारीबाग नूतन नगर के रहने वाले अमरनाथ दास 2006 में झारखंड समेत पूरे देश के प्रतिष्ठित इंजिनियरिंग कॉलेज बीआईटी मेसरा से सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद नामी-गरामी कंपनी में 14 सालों तक काम किया. यमुना एक्सप्रेस में बकायदा अपनी काबिलियत का परिचय दिया. इसके बाद फॉर्मूला वन सड़क, बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट एक्सप्रेसवे में भी विभिन्न कंपनियों के तहत सेवा दी. 14 सालों तक सेवा देने के बाद इनके जीवन में ऐसा परिवर्तन आया कि किसानों की मदद पहुंचाने के लिए नौकरी छोड़ कर अपने शहर हजारीबाग आ पहुंचे, जहां इन्होंने सीधे खेती ही नहीं बल्कि किसानों को टेक्नोलॉजी की मदद से सहायता भी की ताकि उनकी आमदनी बढ़ सके.
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सिड को सीडलिंग में परिवर्तित
इंजीनियर अमरनाथ दास ने स्वाइल लेस टेक्नोलॉजी पर आधारित पॉलीहाउस बनाया, जहां सिड को सीडलिंग में परिवर्तित कर किसानों को दिया. इसके लिए मिट्टी की जगह पर कोको पीट का उपयोग किया, जिसके कारण 90% से अधिक बीज पौधा में परिवर्तित हुआ. इनका कहना है कि इस टेक्नोलॉजी के कारण पौधा वायरस, बैक्टीरिया फ्री रहता है और पौधा स्वस्थ भी रहता है, जिससे किसानों को फसल अधिक से अधिक मिलता है. वैसे युवा जो इंजीनियरिंग करने के बाद रोजगार में नहीं आ पाए हैं या किसी कारणवश उनकी नौकरी छूट गई है, उन्हें यह टिप्स देते हैं कि अपने लिए कुछ नया करने की जरूरत है.
किसानों को मदद पहुंचाने की थी चाह
ऐसे युवा भविष्य में प्रेरणा के स्रोत भी बनते हैं और दूसरों को रोजगार देते हैं. इसलिए युवाओं को हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है. इंजीनियर के पास टेक्नोलॉजी है और उस टेक्नोलॉजी की मदद से वे देश और समाज की सेवा भी कर सकते हैं. इंजीनियर अमरनाथ दास का कहना है कि वह खेती से जुड़कर किसानों को मदद करना चाहते थे. इस कारण इस टेक्नोलॉजी में अपना कैरियर बना रहे हैं. उनका मानना है कि जब वह दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में नौकरी कर रहे थे. इसी दौरान वहां इस तरह की व्यवस्था देखी और उसी समय मन बना लिया कि हम हजारीबाग और झारखंड के किसानों को मदद पहुंचाने के लिए अपने शहर जाएंगे और वहां कुछ नया करेंगे.
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गौशाला की जमीन पर बनाया पॉलीहाउस
हजारीबाग के सीतागढ़ स्थित गौशाला के जमीन पर उन्होंने पॉलीहाउस बनाया. वहां के मुखिया भी कहते हैं कि उनलोगों ने इंजीनियर के बारे में कई बातें सुनी हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई इंजीनियर अपनी नौकरी छोड़ कर किसानों को नई टेक्नोलॉजी में मदद कर रहा है. उनके आने से किसानों को लाभ मिल रहा है. किसान अपने जरूरत के अनुसार, इन्हें बीज मुहैया कराते हैं और उन बीजों को पौधा में परिवर्तित कर किसानों को सौंपते हैं. ऐसे में एक बार में लगभग दो लाख पौधा उनके पॉलीहाउस में तैयार हो सकता है.
पॉलीहाउस बनाने के लिए इजराइल से मंगाया सामान
अमरनाथ दास का कहना है कि इस विधि से महीने के 70 से 75 हजार रुपए की कमाई भी हो रही है और किसान भी बम बम है. किसान भी अब अमरनाथ दास को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दे रहे हैं. युवा इंजीनियर अमरनाथ दास की एक ख्वाहिश है कि झारखंड एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट को लेकर पूरे विश्व में जाना जाए.