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हजारीबाग: मौत को दावत दे रहा कोनार नदी पर बना पुल, कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के बेड़म कोनार नदी के ऊपर बने पुल का हाल बेहाल है. यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजाना अधूरे पुल के ऊपर बांस के बने सिढी से चढ़ते हैं और फिर शहर की ओर अपना जीवन यापन की जुगाड़ में निकल जाते हैं. नक्सलियों ने आज से 5 साल पहले इस पुल को डायनामाइट से उड़ा दिया था.

हजारीबाग: मौत को दावत दे रहा कोनार नदी पर बना पुल
Bamboo bridge built on Konar river of hazaribag feasting on death
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Published : Jul 16, 2020, 6:04 AM IST

हजारीबाग: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर टाटीझरिया प्रखंड के बेडम कोनार नदी पुल को आज से 5 साल पहले नक्सलियों ने डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया था. समय बितता चला गया. सरकार बदल गई, लेकिन इस पुल की तस्वीर नहीं बदली. आलम यह है कि ग्रामीण जान हथेली पर रखकर सिढी से पुल पर चलते हैं और फिर अपना जीवन यापन के लिए शहर की ओर निकल पड़ते हैं. सरकार लाख दावें कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. हजारीबाग का यह पुल 100 गांवों को जोड़ती है.

देखें स्पेशल खबर

पुल पार करने में होती है बड़ी कठिनाई

हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के बेड़म कोनार नदी के ऊपर बने पुल का हाल बेहाल है. यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजाना अधूरे पुल के ऊपर बांस के बने सिढी से चढ़ते हैं और फिर शहर की ओर अपना जीवन यापन की जुगाड़ में निकल जाते हैं. स्थिति बद से बदतर इसलिए है कि अगर गांव के लोगों को कुछ सामान खरीदना होता है तो वह किसी तरह पुल के ऊपर समान ले आते हैं और फिर 4 से 5 लड़के मिलकर उसे नीचे उतारते हैं. साइकिल से गांव से शहर जाने वाले लोग साइकिल माथे के ऊपर उठा कर जाते हैं. ऐसे में यह भी संभावना बनी रहती है कि कोई अनहोनी न घट जाए. इसे लेकर ग्रामीण काफी परेशान हैं.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-सीबीएसई ने जारी किया दसवीं का परीक्षा परिणाम

रोजाना होती है जीवन बचाने की कोशिश

प्रधानमंत्री जन धन योजना में पैसा तो आ रहा है, लेकिन इस पैसा का उपयोग तभी होगा जब पैसा खाता से निकाला जाए. महिलाएं अपने खाता से पैसा निकालने के लिए इस लकड़ी के सिढी से पुल पर आती हैं और फिर वापस जाती है. एक हाथ में दूध पीता बच्चा, गर्दन में छाता फंसाए हुए और दूसरे हाथ से जीवन बचाने की कोशिश हर रोज महिलाएं यहां करती हैं. महिलाएं कहती हैं कि करें तो क्या करें. घर में शादी हो या कोई त्योहार उनलोगों को शहर आना होता है और इसी पुल से चढ़कर आना होता है.

पुल का टेंडर

हजारीबाग का यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. नक्सलियों ने आज से 5 साल पहले इस पुल को डायनामाइट से उड़ा दिया था. ऐसे में नक्सली भी कभी-कभार क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं. पुलिस को जानकारी होने के बावजूद वह ऑपरेशन में नहीं जा पाती है. क्योंकि जाने का कोई साधन नहीं है. नदी में बरसात के कारण पानी भरा है. नदी पार करना भी मुश्किल है. ऐसे में न पुलिस गांव जा पाती है और न ही गांव के लोग शिकायत लेकर थाने पहुंच पाते हैं. ऐसे में अब विष्णुगढ़ एसडीपीओ भी लाचार नजर आते हैं. इस गांव के प्रबुद्ध लोग कहते हैं कि ग्रामीणों के प्रयास से इस पुल का टेंडर किया गया. टेंडर लेने वाले संवेदक ने काम भी शुरू कर दिया था और फिर काम छोड़कर भाग गया. ऐसे में कार्य भी पूरा नहीं हो सका है और पुल अब तक निर्माणाधीन है.

ये भी पढ़ें-कौशल दिवस पर बोले मोदी- सीखते रहने से ऊर्जा से भर उठता है जीवन

नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सरकारी काम के लिए अलग फंड

मामले में हजारीबाग की उप विकास आयुक्त विजया जाधव का कहना है कि अभी काम रुका हुआ है. जब काम होगा तो प्राथमिकता दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि कई ऐसी योजनाएं हैं, जिसके तहत काम किया जा सकता है. जनप्रतिनिधि मुखिया या आम जनता अपनी बातों को रखते हैं तो वह उस योजना को पूरा कराते. अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कोई सरकारी काम करना हो तो उसके लिए अलग फंड है. हर व्यक्ति के पास हर सवाल का जवाब है, लेकिन बेबस ग्रामीण हर रोज अपनी जान हथेली पर रखकर सिढी से पुल पर चढ़ते हैं और फिर दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लग जाते हैं. जरूरत है सरकार को इस मामले पर तत्काल संज्ञान लेने की. नहीं तो कभी बड़ी घटना घट सकती है और किसी के घर का चिराग बुझ सकता है.

हजारीबाग: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर टाटीझरिया प्रखंड के बेडम कोनार नदी पुल को आज से 5 साल पहले नक्सलियों ने डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया था. समय बितता चला गया. सरकार बदल गई, लेकिन इस पुल की तस्वीर नहीं बदली. आलम यह है कि ग्रामीण जान हथेली पर रखकर सिढी से पुल पर चलते हैं और फिर अपना जीवन यापन के लिए शहर की ओर निकल पड़ते हैं. सरकार लाख दावें कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. हजारीबाग का यह पुल 100 गांवों को जोड़ती है.

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पुल पार करने में होती है बड़ी कठिनाई

हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के बेड़म कोनार नदी के ऊपर बने पुल का हाल बेहाल है. यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजाना अधूरे पुल के ऊपर बांस के बने सिढी से चढ़ते हैं और फिर शहर की ओर अपना जीवन यापन की जुगाड़ में निकल जाते हैं. स्थिति बद से बदतर इसलिए है कि अगर गांव के लोगों को कुछ सामान खरीदना होता है तो वह किसी तरह पुल के ऊपर समान ले आते हैं और फिर 4 से 5 लड़के मिलकर उसे नीचे उतारते हैं. साइकिल से गांव से शहर जाने वाले लोग साइकिल माथे के ऊपर उठा कर जाते हैं. ऐसे में यह भी संभावना बनी रहती है कि कोई अनहोनी न घट जाए. इसे लेकर ग्रामीण काफी परेशान हैं.

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रोजाना होती है जीवन बचाने की कोशिश

प्रधानमंत्री जन धन योजना में पैसा तो आ रहा है, लेकिन इस पैसा का उपयोग तभी होगा जब पैसा खाता से निकाला जाए. महिलाएं अपने खाता से पैसा निकालने के लिए इस लकड़ी के सिढी से पुल पर आती हैं और फिर वापस जाती है. एक हाथ में दूध पीता बच्चा, गर्दन में छाता फंसाए हुए और दूसरे हाथ से जीवन बचाने की कोशिश हर रोज महिलाएं यहां करती हैं. महिलाएं कहती हैं कि करें तो क्या करें. घर में शादी हो या कोई त्योहार उनलोगों को शहर आना होता है और इसी पुल से चढ़कर आना होता है.

पुल का टेंडर

हजारीबाग का यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. नक्सलियों ने आज से 5 साल पहले इस पुल को डायनामाइट से उड़ा दिया था. ऐसे में नक्सली भी कभी-कभार क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं. पुलिस को जानकारी होने के बावजूद वह ऑपरेशन में नहीं जा पाती है. क्योंकि जाने का कोई साधन नहीं है. नदी में बरसात के कारण पानी भरा है. नदी पार करना भी मुश्किल है. ऐसे में न पुलिस गांव जा पाती है और न ही गांव के लोग शिकायत लेकर थाने पहुंच पाते हैं. ऐसे में अब विष्णुगढ़ एसडीपीओ भी लाचार नजर आते हैं. इस गांव के प्रबुद्ध लोग कहते हैं कि ग्रामीणों के प्रयास से इस पुल का टेंडर किया गया. टेंडर लेने वाले संवेदक ने काम भी शुरू कर दिया था और फिर काम छोड़कर भाग गया. ऐसे में कार्य भी पूरा नहीं हो सका है और पुल अब तक निर्माणाधीन है.

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नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सरकारी काम के लिए अलग फंड

मामले में हजारीबाग की उप विकास आयुक्त विजया जाधव का कहना है कि अभी काम रुका हुआ है. जब काम होगा तो प्राथमिकता दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि कई ऐसी योजनाएं हैं, जिसके तहत काम किया जा सकता है. जनप्रतिनिधि मुखिया या आम जनता अपनी बातों को रखते हैं तो वह उस योजना को पूरा कराते. अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कोई सरकारी काम करना हो तो उसके लिए अलग फंड है. हर व्यक्ति के पास हर सवाल का जवाब है, लेकिन बेबस ग्रामीण हर रोज अपनी जान हथेली पर रखकर सिढी से पुल पर चढ़ते हैं और फिर दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लग जाते हैं. जरूरत है सरकार को इस मामले पर तत्काल संज्ञान लेने की. नहीं तो कभी बड़ी घटना घट सकती है और किसी के घर का चिराग बुझ सकता है.

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