गुमला: 14 फरवरी 2019 की वो घटना जिसमें जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों के आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे. शहीद होने वाले जवानों में गुमला जिला के बसिया प्रखंड क्षेत्र के फरसामा गांव के रहने वाले विजय सोरेंग भी शामिल थे. जवानों की शहादत के बाद जिन राज्यों के शहीद जवान रहने वाले थे, वहां की सरकारों ने शहीद के परिवारवालों को लाखों रुपए सहायता के तौर पर देने की घोषणा की थी.
शहादत के एक साल
वहीं, विजय सोरेंग के परिवारवालों को तत्कालीन सरकार ने 10 लाख सहायता के तौर पर दिया था. लेकिन इसमें सबसे बड़ी विडंबना यह है कि झारखंड सरकार के मंत्रियों, विधायकों सहित सचिवालय के अधिकारियों, कर्मचारियों की ओर से घोषित एक दिन का वेतन अभी तक शहीद के परिजनों को नहीं मिला है. जबकि विजय सोरेंग की शहादत को एक साल पूरे हो गए हैं.
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सिर्फ घोषणा, लाभ नहीं
विजय सोरेंग के पार्थिव शरीर को रांची में राज्यपाल, उस समय के विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, मंत्री और अन्य वीआईपी ने श्रद्धांजलि दी थी. सूबे की सरकार की ओर से दस लाख, झारखंड के मंत्री और विधायक की ओर से एक दिन का वेतन, सचिवालय के पदाधिकारी और कर्मचारियों का एक दिन का वेतन दिए जाने की घोषणा की गई थी. मगर अब साल भर बीत गए अभी तक घोषणा अधूरी की अधूरी रह गई. इसी के साथ सीसीएल और बीसीसीएल के कर्मचारियों ने भी एक दिन का वेतन शहीद के परिवारवालों को देने की घोषणा की थी, लेकिन वह भी नहीं मिली.
'एक साल हो गए किसी ने सुध तक नहीं ली'
शहीद विजय सोरेंग की मां और पिता गांव में ही रहते हैं, जबकि उनकी पत्नी और बच्चे रांची में रहते हैं. शहीद विजय सोरेंग के पिता ने बताया कि जब बेटा शहीद हुआ था उस समय सरकार के साथ-साथ कई संस्थाओं की ओर से सहायता राशि देने की घोषणा की गई थी. लेकिन आज एक साल हो गए किसी ने सुध तक नहीं ली. वहीं काफी जद्दो-जहद के बाद सरकार की ओर से घोषित दस लाख रुपए की राशि ही मिली है.
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BCCL, CCL पहले की काट चुकी है एक दिन का वेतन
बता दें कि बीसीसीएल की ओर से 90 लाख रुपए, जबकि सीसीएल की ओर से 84 लाख रुपए मार्च 2019 में ही अपने कर्मचारियों के एक दिन का वेतन काट कर जमा किया गया है.
जानकारी नहीं: डीसी
इस मामले पर जिले के उपायुक्त ने कहा कि सरकार की ओर से घोषित राशि शहीद के परिवारवालों को दी गई है. इसके साथ ही कई अन्य संस्थानों के लोगों ने भी शहीद के परिवारवालों को सहायता दी है. डीसी ने बताया कि अन्य घोषणा के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है.
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'सरकारी कार्यों में लेट लतिफी तो आम बात'
बहरहाल, सरकारी कार्यों में लेट लतिफी तो आम बात है. जिस तरह से शहीद के परिवारवालों के साथ उनके बेटे की शहादत के बाद घोषणा को अमल में नहीं लाया गया है, उससे तो यही लगता है कि अब शहादत को भी लोग एक महज सरकारी घोषणा ही मानते हैं, जो कभी पूरा हुआ तो कभी अधर में लटक गया.