गुमला: भाई-बहन के अटूट बंधन और भाई की सलामती के लिए बहनें करमा की पूजा करती हैं. पूजा की तैयारी गणेश चतुर्थी के दिन चार-पांच प्रकार के अनाज का जावा उठाकर शुरू होता है, जिसके बाद सातवें दिन भादो एकादशी के दिन करमा पूजा की जाती है, जिसमें बहनें दिन भर उपवास रहकर रात में करम पेड़ की डाली की पूजा करती हैं और अपने भाइयों की सलामती की दुआ मांगती हैं. यह पूजा खासकर दक्षिणी छोटानागपुर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. इस पूजा में प्रकृति पूजक जनजाति समुदाय और सदान वर्ग के लोग भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं.
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करमा और धर्मा दो भाई
वहीं, बुजुर्गों का कहना है कि करमा पूजा के पीछे की मान्यताएं तो कई हैं जिसका विवरण करने से फेहरिस्त बहुत ही लंबी हो जाएगी. उन्होंने कहा कि जब बारिश के दिनों में किसान खेतों में धान के बिचड़े लगा लेते हैं और खेत में चारों ओर हरियाली होती है, तब किसान खुशियां मनाते हैं. जिसमें यहां के आदिवासी और मूलवासी विशेष रूप से भाग लेते हैं. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है सदियों वर्ष पूर्व करमा और धर्मा दो भाई थे उन्हीं से यह कहानी बनी है. जिसमें करमा और धर्मा की रक्षा के लिए उनकी बहन ने करमा की डाली की पूजा की थी. जिसके बाद से ही यह पूजा अनवरत जारी है.
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ये है कहानी
माना जाता है कि करमा और धर्मा दो भाई थे. करमा का विवाह ऐसी स्त्री के साथ हुआ जो अधर्मी थी. वह हर किसी को परेशान करती थी. इससे दुखी होकर करमा घर से निकल गया. उसके घर छोड़ते ही सभी के भाग्य फूट गए. लोग दुखी रहने लगे. धर्मा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा.
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कई अनोखी घटनाएं घटी
धर्मा को प्यास लगी पर आस पास कही पानी नहीं था. दूर एक नदी दिखी वहां जाने पर देखा की उसमें पानी नहीं है. तभी नदी ने धर्मा से कहा जबसे कर्मा भाई यहां से गए हैं, तबसे हमारा कर्म फुट गया है. यहां का पानी सुख गया है, अगर वे मिले तो उनसे कहा देना. कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुए थे, उसने भी धर्मा से कहा जब से करमा गए हैं तब से हमारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं, अगर वे मिले तो उनसे कह देना और उपाय पूछ के बताना. धर्मा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला, उन्होंने बताया कि जबसे कर्मा यहां से गया है उनके सिर के बोझ तबतक नहीं उतरते जब तक 3-4 लोग मिलकर न उतारे, कर्मा से बताकर इसके निवारण के उपाय बताना.
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दोनों भाई वापस घर चले गए
धर्मा वहां से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की कर्मा से पूछकर बताना की जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं क्यों, उपाय बताना. धर्मा चलते-चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा. वहां उसने देखा कि करमा धुप और गर्मी से परेशान है. उसके शरीर पर फोड़े पड़े हैं. धरमा से उसकी हालत देखी नहीं गई और उसने करमा से आग्रह किया की वो घर वापस चले, तो करमा ने कहा कि वो उस घर कैसे जाए जहां उसकी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है. तब धर्मा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नहीं फेंकेगी. फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चले.
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ऐसे हल हुई समस्या
घर जाने के दौरान उसे सबसे पहले वह महिला मिली उससे करमा ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था, इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ. आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जाएगा. आखिर में नदी मिला तो करमा ने कहा कि तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना. इस तरह उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम का डाल लगाकर पूजा की. उसके बाद से पूरे इलाके में खुशहाली लोट आई और सभी खुशी से रहने लगे. तब से करम पर्व की मान्यता चली आ रही है.