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अपने वंशज की तलाश में मेला पहुंचते हैं संथाली आदिवासी, मां दुर्गा से करते हैं सवाल - महिषासुर हैं आदिवासियों का देवता

गोड्डा में हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग दुर्गा पूजा मेला में पहुंचे. जहां उन लोगों में अपने वंशज और गुरु महिषासुर को तलाशा. इस दौरान उन्होंने अपने रीति रिवाज के साथ गीत गाकर नृत्य भी किया.

अपने वंशज की तलाश में आदिवासी समुदाय
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Published : Oct 9, 2019, 10:25 AM IST

गोड्डा: जिले के बलबड्डा में सबसे पुराने दुर्गा मेला में विजयादशमी के अवसर पर हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग महिषासुर की तलाश में पहुंचे. उनका दावा है कि महिषासुर उनके ही वंशज और गुरु हैं. समुदाय के लोगों का मानना है कि उनका नाम महिषासुर नहीं बल्कि महिषा सोरेन है.

देखें पूरी खबर

नवरात्र में शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा होती है. विजयादशमी के दिन मान्यता है कि मां दुर्गा ने ही राक्षस महिषासुर का वध किया था. इसके लिए ही मां दुर्गा शक्ति स्वरूपा के रूप में अवतरित हुई थी, लेकिन आदिवासी समुदाय के लोग खासकर संथाल आदिवासी महिषासुर को अपना कुल गुरु और वंशज मानते हैं.

इसे भी पढ़ें:- गोड्डा के इस मंदिर में मां दुर्गा की अनूठे तरीके से होती है पूजा, जानिए क्या है मान्यता

समुदाय के लोगों का मानना है कि मां दुर्गा ने महिषासुर का वध गलत तरीके से किया था, इसलिए विजयादशमी के दिन समुदाय के लोग हजारों की संख्या में आकर पूरी ताकत और आक्रोशित भाव के साथ मां दुर्गे से सवाल करते हैं. उसके बाद इन्हें समझा-बुझाकर और तुलसी का पत्ता और जल देकर मनाया जाता है. देवी का प्रसाद देकर विदा किया जाता है. इस मौके हर साल की तरह इस साल भी हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय अपने कुल गुरु की तलाश में मेला पहुंचे थे. इस मौके पर उन्होंने कई तरह की कलाबाजी और पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किया.

गोड्डा: जिले के बलबड्डा में सबसे पुराने दुर्गा मेला में विजयादशमी के अवसर पर हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग महिषासुर की तलाश में पहुंचे. उनका दावा है कि महिषासुर उनके ही वंशज और गुरु हैं. समुदाय के लोगों का मानना है कि उनका नाम महिषासुर नहीं बल्कि महिषा सोरेन है.

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नवरात्र में शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा होती है. विजयादशमी के दिन मान्यता है कि मां दुर्गा ने ही राक्षस महिषासुर का वध किया था. इसके लिए ही मां दुर्गा शक्ति स्वरूपा के रूप में अवतरित हुई थी, लेकिन आदिवासी समुदाय के लोग खासकर संथाल आदिवासी महिषासुर को अपना कुल गुरु और वंशज मानते हैं.

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समुदाय के लोगों का मानना है कि मां दुर्गा ने महिषासुर का वध गलत तरीके से किया था, इसलिए विजयादशमी के दिन समुदाय के लोग हजारों की संख्या में आकर पूरी ताकत और आक्रोशित भाव के साथ मां दुर्गे से सवाल करते हैं. उसके बाद इन्हें समझा-बुझाकर और तुलसी का पत्ता और जल देकर मनाया जाता है. देवी का प्रसाद देकर विदा किया जाता है. इस मौके हर साल की तरह इस साल भी हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय अपने कुल गुरु की तलाश में मेला पहुंचे थे. इस मौके पर उन्होंने कई तरह की कलाबाजी और पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किया.

Intro:गोड्डा के बलबड्डा में पहुचे हज़ारो आदिवासी अपने कुल गुरु व पूर्वज महिषा सुर की तलाश में संताल आदिवासी।कहा कि महिषासुर नही उनका नाम वे है महिषा सोरेन।हम दुर्गा से पूछने आये है वो कहा हैBody:गोड्डा के बलबड्डा में लगने वाले सबसे पुराने मेले में से एक दुर्गा मेला में विजयादशमी पर हजारी की संख्या में आदिवासी लोग महिषासुर की तलाश में पहुचे,दर उनका दावा है कि महिषासुर उनके ही वंशज व गुरु है।और उनका नाम महिषासुर नही बल्कि महिषा सोरेन है।
वैसे तो नवरात्र पर पर शक्ति की देवी दुर्गा के8 पूजा होती है।और विजयादशमी के दिन मान्यता है कि माँ दुर्गे द्वारा राक्षस महिषासुर वध किया।इसके लिए ही दुर्गा की शक्ति स्वरूपा के रूप में अवतरित होना पड़ा।लेकिन आदिवासी खास तौर पर संताल आदिवासी महिषासुर को अपना कुल गुरु व वंशज मानते है और ऊंज मानना है कि दुर्गा ने उनका वध गलत तरीके से किया।इसी लिए विजय दशमी के दिन हज़ारो की संख्या में आते है और पूरी ताकत व आक्रोशित भाव लिए माँ दुर्गे से सवाल करते है कि ..बोलो बोलो.बोलो बोलो.महिषासुर कहा है।तब जाकर इन्हें समझा बुझा कर और तुलसी का पत्ता व जल देकर मनाया जाता और देवी का प्रसाद देकर विदा किया जाता है।इस मौके प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हज़ारो की संख्या में आदिवासी अपने कुल गुरु की तलाश में पहुचे।इस दौरान उनके द्वरा के तरह की प्रार्थना व पूजा की परंपरा है।वे तरह तरह की कलवाजिया व पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति की गयी।
Bt-ब्रह्म सोरेन-बोआरीजोर आदिवासी दाल
Bt.ताला सोरेन-बनियाडीह दलConclusion:Na

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