गोड्डा: जिले के बलबड्डा में सबसे पुराने दुर्गा मेला में विजयादशमी के अवसर पर हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग महिषासुर की तलाश में पहुंचे. उनका दावा है कि महिषासुर उनके ही वंशज और गुरु हैं. समुदाय के लोगों का मानना है कि उनका नाम महिषासुर नहीं बल्कि महिषा सोरेन है.
नवरात्र में शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा होती है. विजयादशमी के दिन मान्यता है कि मां दुर्गा ने ही राक्षस महिषासुर का वध किया था. इसके लिए ही मां दुर्गा शक्ति स्वरूपा के रूप में अवतरित हुई थी, लेकिन आदिवासी समुदाय के लोग खासकर संथाल आदिवासी महिषासुर को अपना कुल गुरु और वंशज मानते हैं.
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समुदाय के लोगों का मानना है कि मां दुर्गा ने महिषासुर का वध गलत तरीके से किया था, इसलिए विजयादशमी के दिन समुदाय के लोग हजारों की संख्या में आकर पूरी ताकत और आक्रोशित भाव के साथ मां दुर्गे से सवाल करते हैं. उसके बाद इन्हें समझा-बुझाकर और तुलसी का पत्ता और जल देकर मनाया जाता है. देवी का प्रसाद देकर विदा किया जाता है. इस मौके हर साल की तरह इस साल भी हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय अपने कुल गुरु की तलाश में मेला पहुंचे थे. इस मौके पर उन्होंने कई तरह की कलाबाजी और पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किया.