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गोड्डाः बकरी पालन से मिल रहा रोजगार, ब्लैक बंगाल के नस्ल की खूब डिमांड - गोड्डा में बकरी पालन से रोजगार

गोड्डा में सिमरदा गांव के एक पढ़े लिखे बेरोजगार युवक ने बकरी पालन का मन बनाया. अशोक कुमार पढ़े लिखे हैं, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली, जिसके बाद उन्होंने बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया. हर साल वह एक से दो लाख तक के बकरी की बिक्री कर आय करते हैं.

goat rearing in godda
बकरी पालन
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Published : Aug 4, 2020, 5:24 PM IST

गोड्डाः जिले के सिमरदा गांव निवासी अशोक कुमार ने नौकरी न मिलने पर बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया है. 2008 से आधुनिक तरीके से कर रहे इस व्यवसाय से वह हर साल एक से दो लाख तक की बकरी की बिक्री कर आय करते हैं. इस व्यवसाय की मदद से उन्होंने अपने गांव में लोगों को रोजगार भी दिलाया है.

देखें पूरी खबर

बकरी पालन से चला रहे जीविका
'कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता' इसी सोच के साथ सिमरदा गांव के एक पढ़े लिखे बेरोजगार युवक ने बकरी पालन का मन बनाया. दरअसल, अशोक कुमार पढ़े लिखे है, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. रोजी रोटी की तलाश के वक्त उसे एक पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. सतीश कुमार मिले, जो एक कार्यशाला में गांव के लोगों को पशुपालन के बारे में बता रहे थे. डॉ सतीश कुमार ने 2008 में अशोक कुमार को बकरी पालन के बारे में बताया, जिसके बाद उसने एक-दो बकरी से यह व्यवसाय शुरू किया. आज उनके पास 23 बकरी और बकरें है और हर साल वह एक से दो लाख तक के बकरी की बिक्री कर आय करते है.

इसे भी पढ़ें- पूर्वी सिंहभूमः अलग-अलग हादसे में 5 की मौत, इलाके में मातम


परंपरागत तरीके से देशी नस्ल की बकरी
गांव में बकरी पालन आम बात है. लोग परंपरागत तरीके से देशी नस्ल की बकरी पालते हैं, जिसका ग्रोथ रेट कम होता और मेहनत के हिसाब से कम आय होती है. ऐसे में आधुनिक तरीके से बकरी पालन के उन्नत नस्ल की बकरी के साथ उनके लिए चारा जैसे अजोला आदि का उत्पादन जरूरी है. वर्तमान में अशोक कुमार अपने खेत में इन बकरों के लिए जैविक घास का उत्पादन भी करते है. इन्होंने गांव के व्यक्ति को रोजगार भी दिया है.

ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी
इस संबंध में पशुपालन वैज्ञानिक डॉ सतीश कुमार ने बताया कि क्षेत्र में बकरे का पालन मांस के लिए किया जाता है. गोड्डा और आस पास के जिलों में ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी का ज्यादा पालन होता है, क्योंकि इसकी डिमांड ज्यादा है.

गोड्डाः जिले के सिमरदा गांव निवासी अशोक कुमार ने नौकरी न मिलने पर बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया है. 2008 से आधुनिक तरीके से कर रहे इस व्यवसाय से वह हर साल एक से दो लाख तक की बकरी की बिक्री कर आय करते हैं. इस व्यवसाय की मदद से उन्होंने अपने गांव में लोगों को रोजगार भी दिलाया है.

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बकरी पालन से चला रहे जीविका
'कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता' इसी सोच के साथ सिमरदा गांव के एक पढ़े लिखे बेरोजगार युवक ने बकरी पालन का मन बनाया. दरअसल, अशोक कुमार पढ़े लिखे है, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. रोजी रोटी की तलाश के वक्त उसे एक पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. सतीश कुमार मिले, जो एक कार्यशाला में गांव के लोगों को पशुपालन के बारे में बता रहे थे. डॉ सतीश कुमार ने 2008 में अशोक कुमार को बकरी पालन के बारे में बताया, जिसके बाद उसने एक-दो बकरी से यह व्यवसाय शुरू किया. आज उनके पास 23 बकरी और बकरें है और हर साल वह एक से दो लाख तक के बकरी की बिक्री कर आय करते है.

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परंपरागत तरीके से देशी नस्ल की बकरी
गांव में बकरी पालन आम बात है. लोग परंपरागत तरीके से देशी नस्ल की बकरी पालते हैं, जिसका ग्रोथ रेट कम होता और मेहनत के हिसाब से कम आय होती है. ऐसे में आधुनिक तरीके से बकरी पालन के उन्नत नस्ल की बकरी के साथ उनके लिए चारा जैसे अजोला आदि का उत्पादन जरूरी है. वर्तमान में अशोक कुमार अपने खेत में इन बकरों के लिए जैविक घास का उत्पादन भी करते है. इन्होंने गांव के व्यक्ति को रोजगार भी दिया है.

ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी
इस संबंध में पशुपालन वैज्ञानिक डॉ सतीश कुमार ने बताया कि क्षेत्र में बकरे का पालन मांस के लिए किया जाता है. गोड्डा और आस पास के जिलों में ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरी का ज्यादा पालन होता है, क्योंकि इसकी डिमांड ज्यादा है.

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