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बंजर भूमि में लहलहा रहा है लेमनग्रास, प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं तारीफ - लेमन ग्रास की खेती से किसानों में आएगी समृद्धि

बिना खाद, कम पानी और जानवरों से निडर होकर एक फसल किसानों के लिए लाखों की आमदानी का सूत्रधार बनता जा रहा है. लेमनग्रास की खेती से गोड्डा के किसान इन दिनों आत्मनिर्भर बन रहे हैं. बंजर भूमि पर इसकी खेती कर काफी संख्या में महिलाएं भी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं. जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं.

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Published : Aug 30, 2020, 5:03 PM IST

गोड्डा: औषधीय गुणों से भरपूर लेमनग्रास की खेती अब गोड्डा जिले में मिशन मोड पर शुरू किया गया है. दो साल पहले बंजर भूमि पर हुई लेमनग्रास की खेती की शुरूआत, अब 500 एकड़ से ज्यादा भूमि पर हो रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

गोड्डा के किसानों की कामयाबी से प्रेरित होकर अब झारखंड के 16 जिलों में लेमनग्रास की खेती की जा रही है. जिला प्रसाशन की पहल पर बंजर भूमि में लेमनग्रास की खेती की दो साल पहले महज 60 एकड़ में इसकी शुरुआत हुई थी, आज इसकी खेती लगभग 500 एकड़ में की जा रही है. किसान सशक्तिकरण और जोहर परियोजना के तहत 31 प्रखंडों में 16,500 से ज्यादा किसानों को लेमनग्रास की खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके लिए किसानों को तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराये जाने की योजना है. झारखंड में लेमनग्रास की खेती की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने गुमला की महिला किसानों की तारीफ करते हुए कहा था कि इससे लोगों को रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे.

बढ़ रहा है खेती का स्तर

जिला कृषि विज्ञान केंद्र की पहल पर बंजर भूमि पर दो वर्ष पूर्व 60 एकड़ की खेती की शुरुआत हुई थी. पिछले वर्ष ये खेती 200 एकड़ में हुई और अब जिले में लगभग 500 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है. लेमनग्रास की खेती के लिए यहां के किसान बंजर भूमि का इस्तेमाल करते हैं. जहां आम तौर पर किसी प्रकार की खेती नहीं होती है और बेकार पड़ी होती है. इसकी खेती के लिए किसानों को देखरेख में भी कम मेहनत लगती है, इसे आम तौर पर कोई पशु भी नहीं खाते हैं.

स्थानीय स्तर पर हो प्रोसेसिंग प्लांट

किसानों को लेमनग्रास की खेती से अच्छी आमदनी तो मिल रही है. लेकिन पूरा-पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है. स्थानीय स्तर पर लेमनग्रास से तेल निकालने की प्रोसेसिंग प्लांट नहीं होने से किसानों को सस्ते दामों में दूसरे के हाथों फसल को बेचना पड़ता है. इसके लिए फिलहाल निजी एनजीओ की ओर से फसल कलेक्ट किया जाता है. अगर स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग प्लांट लगे तो किसानों को अच्छी आय संभव है. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो गोड्डा की बंजर भूमि में उगाए गए लेमनग्रास अधिक सुगंधित और ज्यादा आयल प्रोड्यूसिंग है. साथ ही साल में तीन बार लेमनग्रास की फसल की कटाई की जा सकती है.

इसे भी पढ़ें- नक्सल प्रभावित खूंटी के बोरी बांध मॉडल को मिली राष्ट्रीय पहचान, जल शक्ति पुरस्कार से हौसले बुलंद

विदेशों में भी है मांग

वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ रवि शंकर के अनुसार लेमनग्रास की खेती के लिए जिले की जलवायु और वातावरण उपयुक्त है. इसमें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत काफी कम होती है. जिले में प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना होने से यहां के किसानों में आशा की नई किरण जग सकती है. अगर प्रोसेसिंग प्लांट स्थानीय स्तर पर लग जाए तो लेमनग्रास की खपत जिले में ही पाएगी. इससे हर्बल चाय और कॉस्मैटिक्स के अलावा तेल निकालने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, इसका विदेशों में भी काफी मांग है.

गोड्डा: औषधीय गुणों से भरपूर लेमनग्रास की खेती अब गोड्डा जिले में मिशन मोड पर शुरू किया गया है. दो साल पहले बंजर भूमि पर हुई लेमनग्रास की खेती की शुरूआत, अब 500 एकड़ से ज्यादा भूमि पर हो रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

गोड्डा के किसानों की कामयाबी से प्रेरित होकर अब झारखंड के 16 जिलों में लेमनग्रास की खेती की जा रही है. जिला प्रसाशन की पहल पर बंजर भूमि में लेमनग्रास की खेती की दो साल पहले महज 60 एकड़ में इसकी शुरुआत हुई थी, आज इसकी खेती लगभग 500 एकड़ में की जा रही है. किसान सशक्तिकरण और जोहर परियोजना के तहत 31 प्रखंडों में 16,500 से ज्यादा किसानों को लेमनग्रास की खेती को बढ़ावा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके लिए किसानों को तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराये जाने की योजना है. झारखंड में लेमनग्रास की खेती की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने गुमला की महिला किसानों की तारीफ करते हुए कहा था कि इससे लोगों को रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे.

बढ़ रहा है खेती का स्तर

जिला कृषि विज्ञान केंद्र की पहल पर बंजर भूमि पर दो वर्ष पूर्व 60 एकड़ की खेती की शुरुआत हुई थी. पिछले वर्ष ये खेती 200 एकड़ में हुई और अब जिले में लगभग 500 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है. लेमनग्रास की खेती के लिए यहां के किसान बंजर भूमि का इस्तेमाल करते हैं. जहां आम तौर पर किसी प्रकार की खेती नहीं होती है और बेकार पड़ी होती है. इसकी खेती के लिए किसानों को देखरेख में भी कम मेहनत लगती है, इसे आम तौर पर कोई पशु भी नहीं खाते हैं.

स्थानीय स्तर पर हो प्रोसेसिंग प्लांट

किसानों को लेमनग्रास की खेती से अच्छी आमदनी तो मिल रही है. लेकिन पूरा-पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है. स्थानीय स्तर पर लेमनग्रास से तेल निकालने की प्रोसेसिंग प्लांट नहीं होने से किसानों को सस्ते दामों में दूसरे के हाथों फसल को बेचना पड़ता है. इसके लिए फिलहाल निजी एनजीओ की ओर से फसल कलेक्ट किया जाता है. अगर स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग प्लांट लगे तो किसानों को अच्छी आय संभव है. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो गोड्डा की बंजर भूमि में उगाए गए लेमनग्रास अधिक सुगंधित और ज्यादा आयल प्रोड्यूसिंग है. साथ ही साल में तीन बार लेमनग्रास की फसल की कटाई की जा सकती है.

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विदेशों में भी है मांग

वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ रवि शंकर के अनुसार लेमनग्रास की खेती के लिए जिले की जलवायु और वातावरण उपयुक्त है. इसमें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत काफी कम होती है. जिले में प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना होने से यहां के किसानों में आशा की नई किरण जग सकती है. अगर प्रोसेसिंग प्लांट स्थानीय स्तर पर लग जाए तो लेमनग्रास की खपत जिले में ही पाएगी. इससे हर्बल चाय और कॉस्मैटिक्स के अलावा तेल निकालने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, इसका विदेशों में भी काफी मांग है.

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