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बाबूलाल मरांडीः प्राइमरी टीचर से झारखंड के पहले मुख्यमंत्री तक का सफर - babulal marandi birthday

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी 11 जनवरी को 63वां जन्मदिन मना रहे हैं. पेशे से शिक्षक बाबूलाल मरांडी कैसे राजनीति में आए और कैसे उन्हें झारखंड के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने का मौका मिला? ये जानने के लिए पूरी खबर पढ़ें.

बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी
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Published : Jan 11, 2021, 4:53 PM IST

गिरिडीहः संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. गिरिडीह में 11 जनवरी 1958 को जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की है. उन्होंने प्राइमरी स्कूल में टीचर के रूप में सेवाएं दी हैं. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया.

बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी का सफरनामा

दिशोम गुरु को हरा कर बने करिश्माई नेता

साल 1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविंदाचार्य ने बाबूलाल मरांडी को बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

ये भी पढ़ें-एक शिक्षक के बेटे से दिशोम गुरु बनने तक कैसा रहा शिबू सोरेन का सफर

उपेक्षा से बने बागी फिर साल 14 बाद घर वापसी

झारखंड में तत्कालीन परिस्थितियों के कारण बाबूलाल मरांडी को सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी. नए राज्य की पहली सरकार का कार्यकाल पूरा न हो पाना बड़ा झटका था. सरकार बची रहे इसके लिए कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को कमान सौंपनी पड़ी. इसके बाद बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे. पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 14 सितंबर 2006 को खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया.

2009 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. बाबूलाल मरांडी किंग मेंकर की भूमिका में नजर आने लगे. इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 73 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में जेवीएम सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकी और 55 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने भी बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम से 3 विधायक चुने गए. बाबूलाल मरांडी ने प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को पार्टी से निकाल दिया और कार्यसमिति की बैठक के बाद बीजेपी में विलय की घोषणा कर दी. 17 फरवरी 2020 को अमित शाह की मौजूदगी में बाबूलाल मरांडी एक बार फिर भाजपा में चले गए.

गिरिडीहः संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं. गिरिडीह में 11 जनवरी 1958 को जन्मे बाबूलाल मरांडी ने स्नातक तक की पढ़ाई की है. उन्होंने प्राइमरी स्कूल में टीचर के रूप में सेवाएं दी हैं. इसी दौरान उनका संपर्क संघ के नेताओं से हुआ और उन्होंने संघ के प्रचार के लिए शिक्षक की नौकरी छोड़ दी. वे साल 1983 में दुमका चले गए और खुद को संघ के लिए समर्पित कर दिया.

बाबूलाल मरांडी
बाबूलाल मरांडी का सफरनामा

दिशोम गुरु को हरा कर बने करिश्माई नेता

साल 1991 में बीजेपी के महामंत्री गोविंदाचार्य ने बाबूलाल मरांडी को बीजेपी में शामिल किया और लोकसभा चुनाव में टिकट भी दिलवाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर बाबूलाल पर भरोसा जताया लेकिन इस बार उन्हें दिग्गज नेता शिबू सोरेन से हारना पड़ा, हालांकि हार का अंतर महज 5 हजार वोट था. बाबूलाल भले ही चुनाव हार गए लेकिन भाजपा का विश्वास जीत लिया. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने न केवल दिशोम गुरु शिबू सोरेन को मात दी, बल्कि झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 लोकसभा सीटों पर भी भाजपा का कमल खिल गया. इसी जीत ने उन्हें झारखंड का करिश्माई नेता साबित कर दिया और वे केंद्रीय मंत्रिमंडल से होते हुए नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

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उपेक्षा से बने बागी फिर साल 14 बाद घर वापसी

झारखंड में तत्कालीन परिस्थितियों के कारण बाबूलाल मरांडी को सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के दबाव के चलते मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी. नए राज्य की पहली सरकार का कार्यकाल पूरा न हो पाना बड़ा झटका था. सरकार बची रहे इसके लिए कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा को कमान सौंपनी पड़ी. इसके बाद बीजेपी में बाबूलाल की अनदेखी की जाने लगी. इससे नाराज बाबूलाल ने राज्य की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली. बीजेपी प्रभारियों से बाबूलाल के मतभेद बढ़ने लगे और वे सार्वजनिक मंच पर भी राज्य सरकार की आलोचना करने लगे. पार्टी में उपेक्षित होने पर बाबूलाल मरांडी ने 14 सितंबर 2006 को खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का गठन किया.

2009 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 11 सीटों पर जीत हासिल की. बाबूलाल मरांडी किंग मेंकर की भूमिका में नजर आने लगे. इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम ने 73 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन मोदी लहर में जेवीएम सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकी और 55 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने भी बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जेवीएम से 3 विधायक चुने गए. बाबूलाल मरांडी ने प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को पार्टी से निकाल दिया और कार्यसमिति की बैठक के बाद बीजेपी में विलय की घोषणा कर दी. 17 फरवरी 2020 को अमित शाह की मौजूदगी में बाबूलाल मरांडी एक बार फिर भाजपा में चले गए.

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