गिरिडीह: कोरोना की दूसरी लहर आई तो पीड़ितों की संख्या में रोजाना इजाफा होता रहा. शहर और उससे सटे इलाके में कोरोना संक्रमितों की पहचान होती रही, लेकिन सुदूरवर्ती इलाके में कोरोना की टेस्टिंग लगभग नहीं हो सकी जबकि इस क्षेत्र के लोग भी बुखार, सर्दी खांसी, सिर दर्द से पीड़ित रहे. यह स्थिति जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूरी पर स्थित हरलाडीह और उससे सटे लगभग दो दर्जन गांव की भी रही है. नक्सल प्रभावित इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से बदहाल हैं.
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यहां पारसनाथ की तराई और धनबाद बॉर्डर से सटे कई गांवों के लोग बीमार हो रहे हैं. इस क्षेत्र में इलाज की सरकारी व्यवस्था नदारद हैं. ऐसे में यहां के बीमार लोगों का इलाज स्थानीय ग्रामीण चिकित्सक ही करते हैं. ईटीवी भारत ने हरलाडीह में स्थिति की जानकारी ली. ईटीवी की टीम ने हरलाडीह के उन ग्रामीण चिकित्सकों से भी बात की, जिन्होंने एक माह के दौरान सैकड़ों लोगों का इलाज किया है.
दो दर्जन गांव के लोगों का होता रहा इलाज
इस मामले पर हरलाडीह बाजार में संचालित ममता मेडिकल हॉल के बैकुंठनाथ से बात की गई. उन्होंने बताया कि पिछले एक माह के दौरान उनकी मेडिकल दुकान पर प्रत्येक दिन 10-15 मरीज आते रहे. सभी मरीज तेज बुखार, सर्दी-खांसी, सिरदर्द से ही पीड़ित थे. ज्यादातर लोग टायफाइड के ही शिकार मिले.
चूंकि किसी की कोरोना टेस्टिंग नहीं हुई थी ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि जो भी मरीज आए वो कोरोना संक्रमित थे या नहींं, फिर भी उन्होंने सभी का इलाज किया. इलाज के दौरान पूरी सावधानी बरती गई. जितने भी मरीज का उन्होंने इलाज किया वो सभी आज ठीक हैं. यही बात पूजा मेडिकल हॉल के राजेन्द्र कुमार ने भी कही.
उन्होंने कहा कि हरलाडीह इस क्षेत्र का प्रमुख बाजार है. यहां पर दो दर्जन से अधिक गांव के लोग आते हैं. चूंकि सूदूरवर्ती गांवों में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कर्मी पहुंचे नहीं, तो किसी व्यक्ति की कोरोना जांच नहीं हो सकी. ऐसे में जो दवा की लिस्ट और इलाज का तरीका सरकार के स्तर पर बताया गया था. उसी के अनुसार लोगों का इलाज किया गया और लोग ठीक हुए. कहा अभी पहले से स्थिति काफी अच्छी है और मरीजों की संख्या काफी कम है.
स्वास्थ्य व्यवस्था लचर
दोनों ग्रामीण चिकित्सकों ने कहा कि वो लोग सेवा में जुटे रहे. इस दौरान एमबीबीएस डॉक्टर की कमी जरूर खली. उन्होंने बताया कि हरलाडीह में स्वास्थ्य केंद्र बना है, लेकिन यहां डॉक्टर बैठते नहीं हैं. उन्होंने कहा कि इलाका काफी सूदूरवर्ती है, ऐसे में यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 24 घंटे एक चिकित्सक की व्यवस्था की जानी चाहिए. यहां यदि डॉक्टर बैठेंगे तो लोगों का भला होगा.
उग्रवाद प्रभावित है यह इलाका
हरलाडीह और उससे सटे इलाके पूरी तरह उग्रवाद प्रभावित हैं. पारसनाथ की तराई में स्थित इस क्षेत्र के ज्यादातर गांव जंगलों के बीच हैं. इस क्षेत्र में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का वर्चस्व भी है. इसी क्षेत्र से सटे गांव में एक-एक करोड़ के इनामी दो नक्सलियों के घर हैं. भाकपा माओवादी नेता मिसिर बेसरा का गांव मंदनाडीह जो हरलाडीह से काफी सटा है.
जबकि एक करोड़ के एक अन्य इनामी नक्सली विवेक का गांव हरलाडीह के समीप है. इसके अलावा कई इनामी नक्सलियों का घर भी इसी क्षेत्र के गांवों में है. मुख्यालय से 50 किमी दूरी होने और इलाका संवेदनशील होने के कारण सरकारी कर्मी भी यहां आने से कतराते हैं. हालांकि अभी इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था भी काफी दुरुस्त है.
ईटीवी भारत बता चुका है लचर व्यवस्था की कहानी
हरलाडीह क्षेत्र में चिकित्सा की लचर व्यवस्था की कहानी ईटीवी भारत बता चुका है. ईटीवी भारत ने यह भी बताया है कि किस तरह 3 करोड़ रुपये की लागत से बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक बैठते नहीं है. यह भी बताया है कि स्वास्थ्य केंद्र में पहुंचने वाले लोगों का इलाज एएनएम ही करती हैं. अब यहां के लोगों का कहना है कि सिर्फ हरलाडीह के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक बैठने लगे तो इस इलाके के 20-25 गांव के लोगों की समस्या काफी हद तक दूर हो जाएगी.