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कार्ल मार्क्स के विचार आज भी प्रासंगिक : भाकपा (माले)

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Published : May 5, 2021, 7:47 PM IST

Updated : May 5, 2021, 10:35 PM IST

बुधवार को कार्ल हेनरिक मार्क्स की 203वीं जयंती है. उनकी जंयती पर ईटीवी भारत की टीम ने भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य राजेश यादव से बातचीत की और जानने की कोशिश किया कि मार्क्स के विचार का वर्तमाम समय में क्या औचित्य है.

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कार्ल मार्क्स के विचार सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि प्रासंगिक भी है

गिरिडीहः दुनिया के मजदूरों के पास अपनी जंजीर के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं, दुनिया के मजदूर एक हों, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, शोषण के खिलाफ आवाज उठानेवाले कार्ल हेनरिक मार्क्स की बुधवार को 203वीं जयंती है. आज के दिन ईटीवी भारत यह जानने का प्रयास कर रहा है कि क्या कार्ल मार्क्स के विचार वर्तमान समय में कितने प्रासंगिक हैं ? क्या मौजूदा नक्सलवाद उनकी विचारधारा से अलग है? क्या झारखंड या भारत में वामपंथ का कोई औचित्य है? ईटीवी भारत की टीम ने इन सवालों का जवाब भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य राजेश यादव से जाना.

क्या कहते हैं भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य

राजेश यादव ने बताया कि कार्ल मार्क्स के विचार आज भी प्रासंगिक हैं. मार्क्स के विचार की जरूरत पूरी मानव जाति को है. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में शोषण और भेदभाव आधारित व्यवस्था चल रही है. इंसान-इंसान का शोषण कर रहा है. इस स्थिति में कार्ल मार्क्स की विचारधारा की जरूरत सभी को है.



यह भी पढ़ेंःगिरिडीह में वज्रपात से एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत, छत का प्लास्टर कराते वक्त हुआ हादसा

उन्होंने कहा कि नक्सलबाड़ी से जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी प्रमुख वजह थी किसानों को उनकी जमीन वापस दिलवाना और शोषण का प्रतिकार था. अभी दो धारा चल रही हैं एक सशस्त्र संघर्ष के रास्ते तो दूसरी धारा संसदीय व्यवस्था के रास्ते आगे बढ़ रही है.

गरीबों को बनाया जा रहा मोहरा

राजेश यादव ने कहा कि राज्य और भारत में वामपंथ का औचित्य है या नहीं, इसका जवाब तो वामपंथी शासन आने के बाद ही दिया जा सकता है. वामपंथियों के विपरीत दक्षिणपंथ या मध्यमार्गीय पार्टियों का जो शासन चल रहा है, वह सिर्फ दोहन का शासन है. अभी झारखंड के साथ-साथ केंद्र सरकार सिर्फ गरीबों को मोहरा बना रही है. पूरा संसाधन सिर्फ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए है. कोविड काल में जो सुविधा मिलनी चाहिए वह लोगों को नहीं मिल पा रहा है.

गिरिडीहः दुनिया के मजदूरों के पास अपनी जंजीर के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं, दुनिया के मजदूर एक हों, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, शोषण के खिलाफ आवाज उठानेवाले कार्ल हेनरिक मार्क्स की बुधवार को 203वीं जयंती है. आज के दिन ईटीवी भारत यह जानने का प्रयास कर रहा है कि क्या कार्ल मार्क्स के विचार वर्तमान समय में कितने प्रासंगिक हैं ? क्या मौजूदा नक्सलवाद उनकी विचारधारा से अलग है? क्या झारखंड या भारत में वामपंथ का कोई औचित्य है? ईटीवी भारत की टीम ने इन सवालों का जवाब भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य राजेश यादव से जाना.

क्या कहते हैं भाकपा माले के राज्य कमिटी सदस्य

राजेश यादव ने बताया कि कार्ल मार्क्स के विचार आज भी प्रासंगिक हैं. मार्क्स के विचार की जरूरत पूरी मानव जाति को है. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में शोषण और भेदभाव आधारित व्यवस्था चल रही है. इंसान-इंसान का शोषण कर रहा है. इस स्थिति में कार्ल मार्क्स की विचारधारा की जरूरत सभी को है.



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उन्होंने कहा कि नक्सलबाड़ी से जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसकी प्रमुख वजह थी किसानों को उनकी जमीन वापस दिलवाना और शोषण का प्रतिकार था. अभी दो धारा चल रही हैं एक सशस्त्र संघर्ष के रास्ते तो दूसरी धारा संसदीय व्यवस्था के रास्ते आगे बढ़ रही है.

गरीबों को बनाया जा रहा मोहरा

राजेश यादव ने कहा कि राज्य और भारत में वामपंथ का औचित्य है या नहीं, इसका जवाब तो वामपंथी शासन आने के बाद ही दिया जा सकता है. वामपंथियों के विपरीत दक्षिणपंथ या मध्यमार्गीय पार्टियों का जो शासन चल रहा है, वह सिर्फ दोहन का शासन है. अभी झारखंड के साथ-साथ केंद्र सरकार सिर्फ गरीबों को मोहरा बना रही है. पूरा संसाधन सिर्फ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए है. कोविड काल में जो सुविधा मिलनी चाहिए वह लोगों को नहीं मिल पा रहा है.

Last Updated : May 5, 2021, 10:35 PM IST
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