गिरिडीह: पवित्र पर्वत पारसनाथ के अलग-अलग स्थानों पर लगी आग निरंतर बढ़ती जा रही है. आग पर्वत के कई स्थानों तक फैल चुकी है. सैकड़ों पेड़-पौधे जल चुके हैं. कितने जीव जंतु को नुकसान हुआ है, इसका आकलन नहीं हो सका है. इस बीच आग को बुझाने के लिए पर्वत की तराई में अवस्थित गांव के लगभग 3 सौ लोग पर्वत पर चढ़े हैं. मकर संक्रांति मेला समिति के सदस्यों के साथ डुमरी एसडीओ प्रेमलता मूर्मू, एसडीपीओ मनोज कुमार के अलावा स्थानीय थाना प्रभारी भी पर्वत पर गए हैं. इनके अलावा वन विभाग की टीम भी आग बुझाने के लिए पर्वत पर डटी है. आग बुझाने के लिए पर्वत गए ग्रामीणों के भोजन की व्यवस्था भी तलेटी तीर्थ द्वारा करवाई गई है. तलेटी तीर्थ के द्वारा तीन सौ से अधिक लोगों के लिए भोजन की पैकेटिंग की गई है.
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दुसरी तरफ आग बुझाने पर्वत गए ग्रामीणों में अलग ही जोश देखा जा रहा है. यहां के लोग खासकर मकर संक्रांति मेला समिति के सदस्य किसी तरह से आग पर काबू पाना चाहते हैं. इसी चाहत से मेला समिति के लोग पिछले एक पखवाड़े से जी-जान लगाकर मेहनत कर रहे हैं. इनका कहना है कि यह पर्वत और जंगल ही इस इलाके की पहचान है. ऐसे में इस क्षेत्र के सभी लोगों का कर्तव्य है कि आग पर किसी भी तरह काबू पाया जा सके.
बैठक के बाद बढ़ा जोश: इससे पहले गुरुवार को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से खबर को प्रकाशित भी किया. दुसरी तरफ गुरुवार को ही आग पर काबू पाने के लिए डुमरी एसडीओ प्रेमलता मुर्मू और वन विभाग के पदाधिकारियों की मौजूदगी में बैठक हुई. इस बैठक में मधुबन के विभिन्न संस्था के लोगों के अलावा मेला समिति और स्थानीय लोग मौजूद रहे. आग पर काबू पाने की रणनीति तय की गई. स्थानीय लोगों की अलग-अलग टोली बनी. शुक्रवार को तय रणनीति के अनुसार काम शुरू हुआ.
वन पदाधिकारी से नाराजगी: शुक्रवार को आग बुझाने पर्वत पर गए युवकों की एक टोली ने यहां पर कार्यरत वन विभाग के पदाधिकारी पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है. इसे लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने नाराजगी जाहिर की है. युवक का कहना है कि जब वे लोग आग बुझाने के लिए पर्वत पर जा रहे थे तो डाक बंगला के वन कर्मी और पदाधिकारी मिले. इन लोगों ने रूखा व्यवहार किया और कहा कि तुमलोग आग बुझाते हो या राजनीति करते हो. कहा कि यहां के स्थानीय लोग पिछले एक पखवाड़े से आग बुझाने में जुटे हैं. इस पर इन युवकों की हौसला अफजाई करनी चाहिए ना कि हतोत्साहित करना चाहिए. इधर, इस व्यवहार को भूलकर स्थानीय लोग आग बुझाने में जुटे हैं. इनका कहना है कि उन्हें इस बात की फिक्र नहीं है कि कौन क्या बोलता है वे लोग तो बस अपना जंगल बचाना चाहते हैं.