जमशेदपुरः अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति सदा से जागरूक रहने वाला आदिवासी समाज आज भी कदम से कदम मिला कर चल रहा है. जिसका जीता जागता प्रमाण बना करनडीह जयपाल स्टेडियम में आयोजित दिशोम सोहराय. जिसमें सालों भर खेती में साथ देने वाले पशुओं की पूजा कर ग्रामीण उनके साथ जोखिम भरा खेल भी खेलते (Worship of cattle on Dishom Sohrai in Jamshedpur) हैं.
जमशेदपुर के करनडीह स्थित जयपाल सिंह मुंडा स्टडियम में चारों तरफ दूर दराज से आये ग्रामीणों की भीड़ लगी हुई है. मैदान के बीचोंबीच जगह जगह खेती में किसानों का साथ देने वाले पशु जिन्हे बांस के खूंटा के सहारे बांधा गया है. ढोल नगाड़े की धुन पर ग्रामीण लोक गीत गाते चलते हैं. महिलायें पहले खूंटे से बांधे गए पशुओं की पूजा कर आरती करती हैं और आदिवासी वाद्य यंत्र बजाते किसान अपनी धुन में नाचते है फिर शुरू होता है पशु और इंसान के बीच एक खेल (traditional game with animals in Jamshedpur). जिसमें पशु के चारों तरफ किसान ढोल नगाड़ा बजता है और एक युवक अपने हाथ में चमड़ा लिए खूंटे से बंधे पशु के साथ खेलता है जो एक जोखिम भरा खेल होता है. दूर दराज गांव से ग्रामीण अपने पशु को लेकर दिशोम सोहराय में शामिल होते है.
इसको लेकर मान्यता है कि साल भर किसान खेती में पशुओं का सहारा लेते है और साल के अंत में उनके साथ खेल कर इस बात को दर्शाते है कि पशु हमारे कितने प्यारे होते है. इस खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले पशु के मालिक को इनाम भी दिया जाता है. देर शाम तक होने वाले इस दिशोम सोहराय में हजारों की संख्या में ग्रामीण शामिल होते हैं. आयोजक बताते है कि प्रति वर्ष साल के अंत में यह परंपरा निभाई जाती है, जो पशु हमें अनाज देने में मदद करते हैं, उन्हें इस तरह का आयोजन कर उन्हें सम्मानित करते हैं. पशुओं की पूजा करने वाली ग्रामीण महिलाओं का कहना है आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा के साथ पशुओं की भी पूजा करता है, आदिवासी समाज में पशु हमारा धन होता है और उसकी पूजा कर हम उसका आशीर्वाद लेते हैं.