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जमशेदपुर की 'देसी तीरंदाजी' प्रतियोगिता, जहां अलग-अलग राज्यों से आते हैं हजारों प्रतिभागी - जमशेदपुर के गांव में देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता

जमशेदपुर के सुंदरनगर में हर साल देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता होती है, जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिभागी अलग-अलग राज्यों से भाग लेने आते हैं. इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि सभी तीर पर पहचान के लिए अलग-अलग रंग के निशान लगे हुए रहते हैं.

जमशेदपुर का 'देसी तीरंदाजी' प्रतियोगिता, जहां अलग-अलग राज्यों से आते हैं हजारों प्रतिभागी
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Published : Feb 9, 2020, 11:57 PM IST

जमशेदपुरः शहर से 10 किलोमीटर दूर सुंदर नगर के पूड़ीहास गांव के मैदान में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता में शामिल हुए. गांव के ग्राम प्रधान ने इस बारे में बताया कि जिस तीर धनुष से वीर बिरसा मुंडा, चांद भैरव, सिद्धो-कान्हू, तिलका मांझी ने अंग्रेजों से लोहा लिया. उसी तीर-धनुष को धरोहर मानकर आदिवासी समाज तीरंदाजी करते हैं, जिसमें बिहार, बंगाल, ओडिशा और कोल्हान से ग्रामीण आते हैं.

और पढ़ें- जहां कभी 'लाल सलाम' के गूंजते थे नारे, वहां आज बच्चे देख रहे अफसर बनने का सपना

बाबा तिलका मांझी की जयंती

सुंदर नगर थाना क्षेत्र के पूड़िहास गांव में स्थित मैदान में अमर शहीद बाबा तिलका मांझी की 270वां वर्षगांठ पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिभागी शामिल हुए. पूड़ीहास के मैदान में चारों तरफ ग्रामीणों के हाथ मे सिर्फ तीर ही तीर देखने को मिला. मैदान के दो अलग-अलग छोर पर टारगेट रखा गया था. एक तरफ महिलाएं और दूसरी तरफ पुरुष खुद से बनाए धनुष पर तीर से टारगेट पर निशाना साध रहे थे. इस प्रतियोगिता की खास बात यह रही कि सभी तीर पर पहचान के लिए अलग-अलग रंग के निशान लगे हुए थे.

तीरंदाजी आदिवासियों की धरोहर

पूड़ीहासा गांव के ग्राम प्रधान भोक्ता हांसदा ने बताया कि तीर धनुष उनकी पुरानी सांस्कृतिक धरोहर है. इसे बचाए रखने के लिए आने वाली पीढ़ी के लिए इस तरह का आयोजन करते है. उन्होंने बताया कि इस तीर धनुष से ही उनके वीर शहीदों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. यह खुशी की बात है कि आज ओलंपिक में आर्चरी को शामिल किया गया है. वहीं तीरंदाजी में भाग लेने वाली फुदन मांझी ने बताया कि ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेना अच्छा लगता है. तीर उनके लिए आत्मरक्षा का हथियार है, जो उनका इतिहास है और शुभ भी है. इस प्रतियोगिता में जीतने वाले को ट्रॉफी और नगद इनाम की राशि मिलती है.

जमशेदपुरः शहर से 10 किलोमीटर दूर सुंदर नगर के पूड़ीहास गांव के मैदान में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता में शामिल हुए. गांव के ग्राम प्रधान ने इस बारे में बताया कि जिस तीर धनुष से वीर बिरसा मुंडा, चांद भैरव, सिद्धो-कान्हू, तिलका मांझी ने अंग्रेजों से लोहा लिया. उसी तीर-धनुष को धरोहर मानकर आदिवासी समाज तीरंदाजी करते हैं, जिसमें बिहार, बंगाल, ओडिशा और कोल्हान से ग्रामीण आते हैं.

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बाबा तिलका मांझी की जयंती

सुंदर नगर थाना क्षेत्र के पूड़िहास गांव में स्थित मैदान में अमर शहीद बाबा तिलका मांझी की 270वां वर्षगांठ पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिभागी शामिल हुए. पूड़ीहास के मैदान में चारों तरफ ग्रामीणों के हाथ मे सिर्फ तीर ही तीर देखने को मिला. मैदान के दो अलग-अलग छोर पर टारगेट रखा गया था. एक तरफ महिलाएं और दूसरी तरफ पुरुष खुद से बनाए धनुष पर तीर से टारगेट पर निशाना साध रहे थे. इस प्रतियोगिता की खास बात यह रही कि सभी तीर पर पहचान के लिए अलग-अलग रंग के निशान लगे हुए थे.

तीरंदाजी आदिवासियों की धरोहर

पूड़ीहासा गांव के ग्राम प्रधान भोक्ता हांसदा ने बताया कि तीर धनुष उनकी पुरानी सांस्कृतिक धरोहर है. इसे बचाए रखने के लिए आने वाली पीढ़ी के लिए इस तरह का आयोजन करते है. उन्होंने बताया कि इस तीर धनुष से ही उनके वीर शहीदों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. यह खुशी की बात है कि आज ओलंपिक में आर्चरी को शामिल किया गया है. वहीं तीरंदाजी में भाग लेने वाली फुदन मांझी ने बताया कि ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेना अच्छा लगता है. तीर उनके लिए आत्मरक्षा का हथियार है, जो उनका इतिहास है और शुभ भी है. इस प्रतियोगिता में जीतने वाले को ट्रॉफी और नगद इनाम की राशि मिलती है.

Intro:जमशेदपुर।

जमशेदपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर सुंदरनगर के पूड़िहास गांव के मैदान में हज़ारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोगों ने देशी तीरंदाजी प्रतियोगिता में शामिल हुए।गांव के ग्रामप्रधान ने बताया कि जिस तीर से वीर विरसा मुंडा चांद भैरव सिद्दू कान्हू तिलका मांझी ने अंग्रेजों से लोहा लिया उस तीर धनुष धरोहर मानकर आदिवासी समाज मे अमर शहीदों को याद कर तीरंदाजी करते है जिसमे बिहार बंगाल ओडिसा और कोल्हान से ग्रामीण आते है।


Body:जमशेदपुर के सुंदर नगर थाना क्षेत्र के पूड़िहास गांव में स्थित मैदान में अमर शहीद बाबा तिलका मांझी की 270 वां वर्षगांठ पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के देशी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमे बंगाल बिहार ओडिसा और कोल्हान से हजारों की संख्या में शामिल हुए ।
पूड़िहास के मैदान में चारों तरफ ग्रामीणों के हाथ मे सिर्फ तीर ही तीर देखने को मिला ।मैदान के दो अलग अलग छोर पर टारगेट रखा गया था एक तरफ महिलाये और दूसरी तरफ पुरुष खुद से बनाये धनुष पर तीर से टारगेट पर निशान साध रहे थे ।
इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि सभी तीर पर पहचान के लिए अलग अलग रंग के निशान लगे हुए थे ।
इस आयोजन को गांव के ग्रामप्रधान मांझी बाबा करते है ।
पूड़िहासा गांव के ग्राम प्रधान भोक्ता हांसदा ने बताया कि तीर धनुष हमारी पुरानी सांस्कृतिक धरोहर है इसे बचाये रखने के लिए आने वाली पीढ़ी के लिए इस तरह का आयोजन करते है।इस तीर धनुष से ही हमारे वीर शहीदों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था ।आज खुशी की बात है कि आज ओलंपिक में आर्चरी को शामिल किया गया है।
बाईट भोक्ता हांसदा ग्रामप्रधान मांझी बाबा


Conclusion:इधर निशाना साधने के बाद प्रतिभागी के साथ आयोजक टारगेट के पास जाते है जहां का नज़ारा कुछ अलग देखने को मिलता है ।टारगेट के भरा रहता है और मैदान में चारों तरफ तीर ज़मीन में धंसा हुआ रहता है।
जिस रंग का तीर सबसे ज़्यादा टारगेट में रहता है वो विजेता घोषित होता है।
तीरंदाजी में भाग लेने वाली फुदन मांझी ने बताया है कि ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेना अच्छा लगता है तीर हमारे लिए आत्मरक्षा का हथियार है जो हमारा इतिहास है तीर हमारे लिए शुभ होता है बच्चे के जन्म में इससे नाभि काटते है शादी में और अन्य काम मे इसका महत्व है ।प्रतियोगिता में हारे या जीते लेकिन तीरंदाजी खेलने में खुशी मिलती है।
बाईट फुदन मांझी प्रतिभागी।
भैरव प्रतियोगिता में जीतने वाले को ट्रॉफी और नगद इनाम की राशि मिलती है वही आदिवासियों की पुरानी धरोहर आज आर्चरी के नाम से ओलंपिक में शामिल हुआ है और इससे झारखंड के कई खिलाड़ियों ने आर्चरी में अपनी पहचान बनाई है और झारखंड का नाम भी रोशन किया है

जितेंद्र कुमार ईटीवी भारत जमशेदपुर
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