जमशेदपुरः शहर से 10 किलोमीटर दूर सुंदर नगर के पूड़ीहास गांव के मैदान में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता में शामिल हुए. गांव के ग्राम प्रधान ने इस बारे में बताया कि जिस तीर धनुष से वीर बिरसा मुंडा, चांद भैरव, सिद्धो-कान्हू, तिलका मांझी ने अंग्रेजों से लोहा लिया. उसी तीर-धनुष को धरोहर मानकर आदिवासी समाज तीरंदाजी करते हैं, जिसमें बिहार, बंगाल, ओडिशा और कोल्हान से ग्रामीण आते हैं.
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बाबा तिलका मांझी की जयंती
सुंदर नगर थाना क्षेत्र के पूड़िहास गांव में स्थित मैदान में अमर शहीद बाबा तिलका मांझी की 270वां वर्षगांठ पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के देसी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में प्रतिभागी शामिल हुए. पूड़ीहास के मैदान में चारों तरफ ग्रामीणों के हाथ मे सिर्फ तीर ही तीर देखने को मिला. मैदान के दो अलग-अलग छोर पर टारगेट रखा गया था. एक तरफ महिलाएं और दूसरी तरफ पुरुष खुद से बनाए धनुष पर तीर से टारगेट पर निशाना साध रहे थे. इस प्रतियोगिता की खास बात यह रही कि सभी तीर पर पहचान के लिए अलग-अलग रंग के निशान लगे हुए थे.
तीरंदाजी आदिवासियों की धरोहर
पूड़ीहासा गांव के ग्राम प्रधान भोक्ता हांसदा ने बताया कि तीर धनुष उनकी पुरानी सांस्कृतिक धरोहर है. इसे बचाए रखने के लिए आने वाली पीढ़ी के लिए इस तरह का आयोजन करते है. उन्होंने बताया कि इस तीर धनुष से ही उनके वीर शहीदों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. यह खुशी की बात है कि आज ओलंपिक में आर्चरी को शामिल किया गया है. वहीं तीरंदाजी में भाग लेने वाली फुदन मांझी ने बताया कि ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेना अच्छा लगता है. तीर उनके लिए आत्मरक्षा का हथियार है, जो उनका इतिहास है और शुभ भी है. इस प्रतियोगिता में जीतने वाले को ट्रॉफी और नगद इनाम की राशि मिलती है.