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आइये स्वदेशी को बढ़ावा दें...गाय के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, लोगों के बीच बढ़ी डिमांड

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Published : Oct 29, 2021, 7:59 PM IST

Updated : Oct 29, 2021, 11:02 PM IST

जमशेदपुर की सीमा इन दिनों स्वदेशी अपनाने के लिए लोगों को जागरुक कर रही हैं. सीमा महिलाओं का समूह बनाकर गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति बना रही हैं और लोगों से इसे खरीदने की अपील कर रही हैं. सीमा की इस पहल से स्वदेशी को तो बढ़ावा मिल ही रहा है, यह महिलाओं के रोजगार का भी साधन बन रहा है.

Cow dung sculptures in Jamshedpur
जमशेदपुर में गाय के गोबर की मूर्तियां

जमशेदपुर: रोशनी का त्योहार दीपावली में अब कुछ ही दिन बचे हैं. दीपावली को लेकर लोगों ने खरीदारी भी शुरू कर दी है. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना होती है. मार्केट में लक्ष्मी-गणेश की तरह-तरह की मूर्तियां उपलब्ध है जिसे लोग खरीदकर अपने घर लाते हैं और दीपावली के दिन पूजा करते हैं.

यह भी पढ़ें: यहां स्पेशल बच्चे बनाते हैं खास तरह के दीये, विदेशों में भी है मांग

स्वदेशी के प्रति लोगों को जागरुक कर रही सीमा

जमशेदपुर के मानगो की रहने वाली सीमा कुमारी इन दिनों स्वदेशी के प्रति लोगों को जागरुक कर रही हैं. सीमा महिलाओं का समूह बनाकर गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति बना रही हैं. गाय के गोबर से शुभ लाभ और धूपबत्ती भी बना रही हैं. गोबर से तैयार करने के बाद सभी को पेंट किया जाता है जिससे मूर्तियों में चार चांद लग जाती है. मूर्ति की कीमत जहां 80 से 100 रुपए तक है वहीं दीये की कीमत दो रुपए से पांच रुपए तक है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

इस तरह गोबर से मूर्ति बनाती हैं सीमा

सीमा ने बताया कि दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति लाकर लोग पूजा-अर्चना करते हैं. घरों में दीप भी जलाते हैं. चूंकि, गाय के गोबर का काफी महत्व होता है और इसमें शुद्धता होती है, इसे देखते हुए सीमा गोबर से ही मूर्तियां और दीप बना रही हैं. सीमा ने बताया कि पहले गाय के गोबर को सुखाते हैं. इसके बाद प्रीमिक्स पाउडर और गोंद मिलाते हैं. गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथों से गूंथा जाता है और फिर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति के लिए बनाए गए सांचे में ढाल दिया जाता है. सूखने के बाद उसे कलर किया जाता है. इस तरह दीये और धूपबत्ती बनाने के लिए भी किया जाता है. इसमें शुद्धि के लिए जटा मासी, पीली सरसों, विशेष पृष्ठ का छाल, एलोवेरा मेथी के बीज और इमली के बीज को मिलाया जाता है. इसमें 40% ताजा गोबर और 60% सूखे गोबर का इस्तेमाल किया जाता है.

वातावरण के लिए अच्छी हैं इस तरह की मूर्तियां

सीमा का कहना है कि इस प्रकार के दीपक के जलने से घर में हवन जैसा वातावरण हो जाता है. दीप जलाने के बाद इन दीयों से जैविक खाद भी बनाये जा सकते हैं. घरों में रखे गमले और गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है. सीमा अब स्वदेशी के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से मोहल्लों में जाकर महिलाओं का एक ग्रुप बनाया है. महिलाओं को भी इस तरह की मूर्तियां और दीये बनाना सीखा रही हैं. सीखने वाली महिलाएं इसे बनाकर खुद अपने नेटवर्क के माध्यम से बेचती भी हैं और धीरे-धीरे उनके लिए यह रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है. सीमा के द्वारा बनाए गए सामानों की मांग दूसरे प्रदेशों में भी है. स्वदेशी को बढ़ावा और दूसरों के रोजगार लिए सीमा की तरफ से की गई इस पहल की जितनी तारीफ की जाए कम है.

जमशेदपुर: रोशनी का त्योहार दीपावली में अब कुछ ही दिन बचे हैं. दीपावली को लेकर लोगों ने खरीदारी भी शुरू कर दी है. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना होती है. मार्केट में लक्ष्मी-गणेश की तरह-तरह की मूर्तियां उपलब्ध है जिसे लोग खरीदकर अपने घर लाते हैं और दीपावली के दिन पूजा करते हैं.

यह भी पढ़ें: यहां स्पेशल बच्चे बनाते हैं खास तरह के दीये, विदेशों में भी है मांग

स्वदेशी के प्रति लोगों को जागरुक कर रही सीमा

जमशेदपुर के मानगो की रहने वाली सीमा कुमारी इन दिनों स्वदेशी के प्रति लोगों को जागरुक कर रही हैं. सीमा महिलाओं का समूह बनाकर गाय के गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति बना रही हैं. गाय के गोबर से शुभ लाभ और धूपबत्ती भी बना रही हैं. गोबर से तैयार करने के बाद सभी को पेंट किया जाता है जिससे मूर्तियों में चार चांद लग जाती है. मूर्ति की कीमत जहां 80 से 100 रुपए तक है वहीं दीये की कीमत दो रुपए से पांच रुपए तक है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

इस तरह गोबर से मूर्ति बनाती हैं सीमा

सीमा ने बताया कि दीपावली के दिन लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति लाकर लोग पूजा-अर्चना करते हैं. घरों में दीप भी जलाते हैं. चूंकि, गाय के गोबर का काफी महत्व होता है और इसमें शुद्धता होती है, इसे देखते हुए सीमा गोबर से ही मूर्तियां और दीप बना रही हैं. सीमा ने बताया कि पहले गाय के गोबर को सुखाते हैं. इसके बाद प्रीमिक्स पाउडर और गोंद मिलाते हैं. गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथों से गूंथा जाता है और फिर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति के लिए बनाए गए सांचे में ढाल दिया जाता है. सूखने के बाद उसे कलर किया जाता है. इस तरह दीये और धूपबत्ती बनाने के लिए भी किया जाता है. इसमें शुद्धि के लिए जटा मासी, पीली सरसों, विशेष पृष्ठ का छाल, एलोवेरा मेथी के बीज और इमली के बीज को मिलाया जाता है. इसमें 40% ताजा गोबर और 60% सूखे गोबर का इस्तेमाल किया जाता है.

वातावरण के लिए अच्छी हैं इस तरह की मूर्तियां

सीमा का कहना है कि इस प्रकार के दीपक के जलने से घर में हवन जैसा वातावरण हो जाता है. दीप जलाने के बाद इन दीयों से जैविक खाद भी बनाये जा सकते हैं. घरों में रखे गमले और गार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है. सीमा अब स्वदेशी के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से मोहल्लों में जाकर महिलाओं का एक ग्रुप बनाया है. महिलाओं को भी इस तरह की मूर्तियां और दीये बनाना सीखा रही हैं. सीखने वाली महिलाएं इसे बनाकर खुद अपने नेटवर्क के माध्यम से बेचती भी हैं और धीरे-धीरे उनके लिए यह रोजगार का साधन भी बनता जा रहा है. सीमा के द्वारा बनाए गए सामानों की मांग दूसरे प्रदेशों में भी है. स्वदेशी को बढ़ावा और दूसरों के रोजगार लिए सीमा की तरफ से की गई इस पहल की जितनी तारीफ की जाए कम है.

Last Updated : Oct 29, 2021, 11:02 PM IST
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