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यहां स्पेशल बच्चे बनाते हैं खास तरह के दीये, विदेशों में भी है मांग

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Published : Oct 21, 2021, 4:44 PM IST

Updated : Oct 21, 2021, 9:21 PM IST

जमशेदपुर के जीविका स्कूल में पढ़ने वाले स्पेशल बच्चे खास तरह के दीये बनाते हैं. इसकी मांग विदेशों में भी है. इनके दीये बाजार में नहीं मिलते हैं. इसे लेने के लिए स्कूल आना पड़ता है. कई लोग पहले आकर ऑर्डर देते हैं.

special diya in jamshedpur
जमशेदपुर में स्पेशल दीया

जमशेदपुर: दुर्गापूजा से त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. सभी त्योहारों का अलग-अलग महत्व है. दुर्गापूजा के बाद लोग दीपावली की तैयारी में जुट जाते हैं. दीयों की खरीदारी शुरू हो जाती है. बाजार में तरह-तरह के दीये उपलब्ध रहते हैं. घर को सजाने के लिए कुछ लोग इलेक्ट्रिक दीया भी खरीदते हैं. लेकिन, जमशेदपुर में कुछ खास तरह के दीये हैं जिन्हें स्पेशल बच्चे बनाते हैं. हालांकि, यह दीये बाजार में उपलब्ध नहीं रहते हैं. इसे लेने के लिए स्कूल जाना पड़ता है.

यह भी पढ़ें: हर घर में शुद्ध दूध पहुंचाने की इच्छा में दो इंजीनियरों ने छोड़ा विदेश, करोड़ों में पहुंचा टर्न ओवर

विदेशों में भी है दीयों की मांग

जमशेदपुर के सोनारी स्थित जीविका स्कूल में वैसे बच्चे पढ़ते हैं जो मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं. सामान्य दीयों को अपने हाथों से रंगों से कलाकृतियों को बनाकर सजाते हैं. इन दीयों को जमशेदपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से ऑर्डर देकर मांगाया जाता है. कुछ समान कोलकोता से मांगाए जाते हैं जिसे बच्चों के द्वारा रंग-रोगन किया जाता है. यहां पर मिलने वाले दीये की कीमत पांच रुपए से लेकर दो सौ रुपए तक है. इन दीयों की मांग देश के अलग-अलग जगहों के अलावा विदेशों में भी है. वैसे शहर के स्कूलों में भी इन बच्चों के द्वारा बनाए गए दीये बेचे जाते हैं लेकिन कोरोना की वजह से स्कूल बंद होने के कारण इस बार इनके बनाए गए दीये स्कूलों में उपलब्ध नहीं हो पाएंगे. यही नहीं यहां पर दीपावली के दीये के अलावा पेपर बैग, कपड़े के बैग, रोटी नैपकिन, शगुन बैग आदि ऐसी कई चीजें हैं जो यहां के स्पेशल बच्चे बनाते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

पहले से ही दीयों का ऑर्डर दे देते हैं लोग

यहां के दीये समान्य रूप से बाजारों में नहीं मिलते हैं. जिन्हें लेना होता है वे स्कूल में आकर ले जाते हैं. कई लोग तो पहले से इसके लिए ऑर्डर देकर जाते हैं. यही नहीं इन दीयों की इतनी मांग है कि अभी से लोग दीये लेकर जाने लगे हैं. यहां दीये खरीदने के लिए जो लोग आते हैं, वो अपने लिए दीये तो खरीदते ही हैं दूसरों को भी खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं.

आत्मनिर्भर बनाने के लिए दी जाती है ट्रेनिंग

जीविका पिछले 10 वर्षों से मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों को खेलकूद के माध्यम से उनकी क्षमता बढ़ा रहा है. शारीरिक स्वास्थ्य के बाद बच्चों को इको फ्रेंडली काम में लगाया जाता है. फिलहाल यहां जीविका स्कूल में करीब 30 ऐसे बच्चे पढ़ते हैं. उसी के तहत इन बच्चों को अलग-अलग प्रकार के कार्य सिखाए जाते हैं. बकायदा उन्हें इसके लिए ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.

बहरहाल, इन बच्चों ने अपने हुनर और प्रतिभा से यह साबित कर दिया कि टैलेंट किसी का मोहताज नहीं होता. दीये और उससे सबंधित वस्तुओं को रंग रोगन कर एक नए रूप में देकर यहां पढ़ने वाले छात्र के साथ उनके शिक्षक भी गौरवान्वित महसूस कर रहे है. यह कार्य इन छात्रों को आर्थिक रूप से मजबूती के साथ-साथ स्वावलंबन बना रहा है. इससे यह साबित होता है कि हिम्मत और लगन से इंसान कुछ भी कर सकता है. यह इन बच्चों ने साबित कर दिखाया है.

जमशेदपुर: दुर्गापूजा से त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. सभी त्योहारों का अलग-अलग महत्व है. दुर्गापूजा के बाद लोग दीपावली की तैयारी में जुट जाते हैं. दीयों की खरीदारी शुरू हो जाती है. बाजार में तरह-तरह के दीये उपलब्ध रहते हैं. घर को सजाने के लिए कुछ लोग इलेक्ट्रिक दीया भी खरीदते हैं. लेकिन, जमशेदपुर में कुछ खास तरह के दीये हैं जिन्हें स्पेशल बच्चे बनाते हैं. हालांकि, यह दीये बाजार में उपलब्ध नहीं रहते हैं. इसे लेने के लिए स्कूल जाना पड़ता है.

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विदेशों में भी है दीयों की मांग

जमशेदपुर के सोनारी स्थित जीविका स्कूल में वैसे बच्चे पढ़ते हैं जो मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं. सामान्य दीयों को अपने हाथों से रंगों से कलाकृतियों को बनाकर सजाते हैं. इन दीयों को जमशेदपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से ऑर्डर देकर मांगाया जाता है. कुछ समान कोलकोता से मांगाए जाते हैं जिसे बच्चों के द्वारा रंग-रोगन किया जाता है. यहां पर मिलने वाले दीये की कीमत पांच रुपए से लेकर दो सौ रुपए तक है. इन दीयों की मांग देश के अलग-अलग जगहों के अलावा विदेशों में भी है. वैसे शहर के स्कूलों में भी इन बच्चों के द्वारा बनाए गए दीये बेचे जाते हैं लेकिन कोरोना की वजह से स्कूल बंद होने के कारण इस बार इनके बनाए गए दीये स्कूलों में उपलब्ध नहीं हो पाएंगे. यही नहीं यहां पर दीपावली के दीये के अलावा पेपर बैग, कपड़े के बैग, रोटी नैपकिन, शगुन बैग आदि ऐसी कई चीजें हैं जो यहां के स्पेशल बच्चे बनाते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

पहले से ही दीयों का ऑर्डर दे देते हैं लोग

यहां के दीये समान्य रूप से बाजारों में नहीं मिलते हैं. जिन्हें लेना होता है वे स्कूल में आकर ले जाते हैं. कई लोग तो पहले से इसके लिए ऑर्डर देकर जाते हैं. यही नहीं इन दीयों की इतनी मांग है कि अभी से लोग दीये लेकर जाने लगे हैं. यहां दीये खरीदने के लिए जो लोग आते हैं, वो अपने लिए दीये तो खरीदते ही हैं दूसरों को भी खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं.

आत्मनिर्भर बनाने के लिए दी जाती है ट्रेनिंग

जीविका पिछले 10 वर्षों से मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों को खेलकूद के माध्यम से उनकी क्षमता बढ़ा रहा है. शारीरिक स्वास्थ्य के बाद बच्चों को इको फ्रेंडली काम में लगाया जाता है. फिलहाल यहां जीविका स्कूल में करीब 30 ऐसे बच्चे पढ़ते हैं. उसी के तहत इन बच्चों को अलग-अलग प्रकार के कार्य सिखाए जाते हैं. बकायदा उन्हें इसके लिए ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.

बहरहाल, इन बच्चों ने अपने हुनर और प्रतिभा से यह साबित कर दिया कि टैलेंट किसी का मोहताज नहीं होता. दीये और उससे सबंधित वस्तुओं को रंग रोगन कर एक नए रूप में देकर यहां पढ़ने वाले छात्र के साथ उनके शिक्षक भी गौरवान्वित महसूस कर रहे है. यह कार्य इन छात्रों को आर्थिक रूप से मजबूती के साथ-साथ स्वावलंबन बना रहा है. इससे यह साबित होता है कि हिम्मत और लगन से इंसान कुछ भी कर सकता है. यह इन बच्चों ने साबित कर दिखाया है.

Last Updated : Oct 21, 2021, 9:21 PM IST
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