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'बाल विवाह एक अभिशाप'...बाल विवाह के दंश में फंस रहा बचपन, देश में तीसरे स्थान पर है झारखंड

बाल विवाह के मामले में झारखंड देश में तीसरे स्थान पर है. जमशेदपुर के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले तीन सालों में 216 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं. इसमें 94 मामले चाइल्ड लाइन ने रोके हैं. बाल विवाह को लेकर सख्त कानून है लेकिन फिर भी लोग इसे नहीं समझते. इसके पीछे मुख्य वजह बताई जाती है गरीबी और अशिक्षा.

cases of child marriage case in jharkhand
झारखंड में बाल विवाह
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Published : Mar 31, 2021, 5:45 PM IST

Updated : Apr 1, 2021, 2:58 PM IST

जमशेदपुर: बशीर बद्र ने एक शेर लिखा है..'उड़ने दो परिदों को अभी शोख हवा में..फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते'. खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को बेड़ियों से बांधा जा रहा है. बाल विवाह ऐसी ही बेड़ी है जिसके दंश में बचपन फंसता जा रहा है. आंकड़ों को देखें तो बाल विवाह के मामले में झारखंड तीसरे स्थान पर है. जागरूकता के बावजूद 38 प्रतिशत बाल विवाह झारखंड में ही होते हैं. पिछले तीन सालों में जमशेदपुर में कुल 216 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं. इसमें 94 मामले चाइल्ड लाइन ने रोके हैं. चाइल्ड लाइन की अध्यक्ष प्रभा जायसवाल बताती हैं कि बाल विवाह के ज्यादातर मामले ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं. जब इसे रोकने जाते हैं तो समाज सही नहीं मानता है. लोग कहते हैं कि एक पवित्र काम हो रहा है और उसमें अड़चन डाला जा रहा है. लोग बड़ी मुश्किल से समझते हैं और कई बार लोग मानने को तैयार नहीं होते.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

शिक्षा के अभाव के कारण बाल विवाह

शिक्षा का अभाव और पुरानी सोच की बेड़ियों में जकड़े लोग यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि बाल विवाह गलत है. चाइल्ड लाइन में कार्यरत उषा महतो बताती हैं कि जब भी इस तरह के मामले की जानकारी आती है तो पहले रेस्क्यू करते हैं और फिर दोनों परिवारों को बैठाकर काउंसलिंग करते हैं. हमारी कोशिश होती है कि उन्हें गाइड करके उनकी सोच बदली जाए. केस का फॉलोअप भी करते हैं. मां-बाप को बच्चियों को पढ़ाने के लिए उत्साहित करते हैं. उन्हें समझाते हैं कि 18 वर्ष के बाद ही बच्चियों की शादी की जाए.

यह भी पढ़ें: आदिम जनजाति परिवार पीढ़ियों से कर रहा मधु और मोम का उत्पादन, पलाश ब्रांड उत्पादों को देगा नई पहचान

cases of child marriage case in jharkhand
बाल विवाह के चलते कई दुष्प्रभाव होते हैं.

बाल विवाह रोकने के लिए सख्त कानून

बाल विवाह का मतलब लड़कियों की शादी 18 से कम और लड़कों की शादी 21 साल से कम उम्र में कर देना. बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम 1929 में बना था. तब लड़कियों की शादी के लिए 14 और लड़कों के लिए 18 वर्ष तय की गई थी जिसे बाद में बढ़ाकर लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया. 2006 में बाल विवाह खत्म करने के लिए भी कानून बनाया गया. सामाजिक कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा बताते हैं कि इसमें मां-बाप के अलावा पूजा कराने वाले और तमाशा देखने वाले भी दोषी होते हैं. इस कानून को तोड़ने पर कड़ी सजा का प्रावधान है लेकिन फिर भी ऐसे मामले लगातार आते रहते हैं.

जमशेदपुर में बाल विवाह के हाल के केस

  • 13 मार्च 2021

चाइल्ड लाइन के द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर प्रखंड विकास पदाधिकारी कुचियासोली पंचायत में संपन्न होने जा रही बाल विवाह को रुकवाया. छात्रा की उम्र 15 वर्ष थी.

  • 15 नवंबर 2020

जमशेदपुर के सीमावर्ती क्षेत्र से सटे सरायकेला के कपाली थाना क्षेत्र के डैमजोड़ा में पुलिस ने बाल विवाह रुकवाया. दोनों पक्ष की तरफ से बॉन्ड भी भरवाया गया.

  • 16 नंबर 2019

महिला कल्याण समिति एवं चाइल्ड लाइन के द्वारा सुंदरनगर थाना क्षेत्र में बाल विवाह रुकवाया गया.

दरअसल, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग बेटियों को बोझ मानने लगते हैं और कम उम्र में ही शादी कर देना चाहते हैं. शिक्षा के अभाव के चलते बेटियां कम उम्र में ही ब्याह दी जाती हैं. दुखद है कि 21वीं सदी के हिंदुस्तान में भी ऐसी तस्वीरें देखने को मिलती है. बेटियों के लिए सरकार चाहे लाख योजना ले आए लेकिन जब तक सोच नहीं बदलेगी तब तक दृश्य जस का तस रहेगा.

जमशेदपुर: बशीर बद्र ने एक शेर लिखा है..'उड़ने दो परिदों को अभी शोख हवा में..फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते'. खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों को बेड़ियों से बांधा जा रहा है. बाल विवाह ऐसी ही बेड़ी है जिसके दंश में बचपन फंसता जा रहा है. आंकड़ों को देखें तो बाल विवाह के मामले में झारखंड तीसरे स्थान पर है. जागरूकता के बावजूद 38 प्रतिशत बाल विवाह झारखंड में ही होते हैं. पिछले तीन सालों में जमशेदपुर में कुल 216 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं. इसमें 94 मामले चाइल्ड लाइन ने रोके हैं. चाइल्ड लाइन की अध्यक्ष प्रभा जायसवाल बताती हैं कि बाल विवाह के ज्यादातर मामले ग्रामीण क्षेत्रों में आते हैं. जब इसे रोकने जाते हैं तो समाज सही नहीं मानता है. लोग कहते हैं कि एक पवित्र काम हो रहा है और उसमें अड़चन डाला जा रहा है. लोग बड़ी मुश्किल से समझते हैं और कई बार लोग मानने को तैयार नहीं होते.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

शिक्षा के अभाव के कारण बाल विवाह

शिक्षा का अभाव और पुरानी सोच की बेड़ियों में जकड़े लोग यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि बाल विवाह गलत है. चाइल्ड लाइन में कार्यरत उषा महतो बताती हैं कि जब भी इस तरह के मामले की जानकारी आती है तो पहले रेस्क्यू करते हैं और फिर दोनों परिवारों को बैठाकर काउंसलिंग करते हैं. हमारी कोशिश होती है कि उन्हें गाइड करके उनकी सोच बदली जाए. केस का फॉलोअप भी करते हैं. मां-बाप को बच्चियों को पढ़ाने के लिए उत्साहित करते हैं. उन्हें समझाते हैं कि 18 वर्ष के बाद ही बच्चियों की शादी की जाए.

यह भी पढ़ें: आदिम जनजाति परिवार पीढ़ियों से कर रहा मधु और मोम का उत्पादन, पलाश ब्रांड उत्पादों को देगा नई पहचान

cases of child marriage case in jharkhand
बाल विवाह के चलते कई दुष्प्रभाव होते हैं.

बाल विवाह रोकने के लिए सख्त कानून

बाल विवाह का मतलब लड़कियों की शादी 18 से कम और लड़कों की शादी 21 साल से कम उम्र में कर देना. बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम 1929 में बना था. तब लड़कियों की शादी के लिए 14 और लड़कों के लिए 18 वर्ष तय की गई थी जिसे बाद में बढ़ाकर लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया. 2006 में बाल विवाह खत्म करने के लिए भी कानून बनाया गया. सामाजिक कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा बताते हैं कि इसमें मां-बाप के अलावा पूजा कराने वाले और तमाशा देखने वाले भी दोषी होते हैं. इस कानून को तोड़ने पर कड़ी सजा का प्रावधान है लेकिन फिर भी ऐसे मामले लगातार आते रहते हैं.

जमशेदपुर में बाल विवाह के हाल के केस

  • 13 मार्च 2021

चाइल्ड लाइन के द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर प्रखंड विकास पदाधिकारी कुचियासोली पंचायत में संपन्न होने जा रही बाल विवाह को रुकवाया. छात्रा की उम्र 15 वर्ष थी.

  • 15 नवंबर 2020

जमशेदपुर के सीमावर्ती क्षेत्र से सटे सरायकेला के कपाली थाना क्षेत्र के डैमजोड़ा में पुलिस ने बाल विवाह रुकवाया. दोनों पक्ष की तरफ से बॉन्ड भी भरवाया गया.

  • 16 नंबर 2019

महिला कल्याण समिति एवं चाइल्ड लाइन के द्वारा सुंदरनगर थाना क्षेत्र में बाल विवाह रुकवाया गया.

दरअसल, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग बेटियों को बोझ मानने लगते हैं और कम उम्र में ही शादी कर देना चाहते हैं. शिक्षा के अभाव के चलते बेटियां कम उम्र में ही ब्याह दी जाती हैं. दुखद है कि 21वीं सदी के हिंदुस्तान में भी ऐसी तस्वीरें देखने को मिलती है. बेटियों के लिए सरकार चाहे लाख योजना ले आए लेकिन जब तक सोच नहीं बदलेगी तब तक दृश्य जस का तस रहेगा.

Last Updated : Apr 1, 2021, 2:58 PM IST
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