जमशेदपुरः भारत गांव का देश है जहां रोजगार का प्रमुख साधन खेती है. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में ग्रामीण अब खेती के जरिये अपनी जिंदगी को संवारने में लगे हुए हैं. वहीं झारखंड लौटे प्रवासी मजदूर अब कंधे पर कुदाल लेकर खेत को अपना मंजिल बना कर निकल पड़े है. जमशेदपुर शहर से 28 किलोमीटर दूर पोटका विधान सभा क्षेत्र के झरिया गांव के भाटिन पंचायत में गांव के किसान खेलाराम मुर्मू ने खेती को अपनी मंजिल मानकर 2010 से खेतों से नाता जोड़ा.
आज उन्होंने 300 किसानों को अपने साथ जोड़ा है और प्रतिमाह उन्हें वेतन दे रहे हैं. किसान खेलाराम मुर्मू ग्रामीणों को खेती के प्रति जागरूक कर उन्हें बेहतर खेती के लिए प्रशिक्षण देते हैं और इस दौरान उन्हें पारिश्रमिक भी मिलता है.
30 एकड़ की जमीन पर आज साल भर सब्जी उगा रहे हैं जिनमें कद्दू, भिंडी,टमाटर खीरा, टमाटर के अलावा अन्य कई प्रकार की सब्जी की खेती होती है, जिनमें महिला पुरुष समेत 300 किसान सुबह से शाम तक खेतों में मेहनत कर रहे हैं. सब्जियों की खेती ने खेलाराम को मालामाल कर दिया है. इन खेतों से प्रतिदिन 1 टन भिंडी, 2 टन के लगभग टमाटर को बाजार में उपलब्ध कराया जाता है. आज खेलाराम के कृषक संगठन में बाहर से लौटे प्रवासी मजदूर भी शामिल हो रहे हैं.
वहीं लॉकडाउन में बाहर फंसे मजदूर अपने प्रदेश लौट चुके हैं जो अब अपने गांव में रहकर मिट्टी से नाता जोड़ खेती करने की शुरुआत कर दी है. उन्हें अपने गांव की मिट्टी पर भरोसा है. खेलाराम का मानना है कि सरकार अगर चाह ले तो झारखंड खेती और सब्जी का हब बन सकता है.
दुबई जाता है माल
वे बताते हैं कि झारखंड से पहली बार उनके खेत में उपजी भिंडी को दुबई के लिए एक्सपोर्ट किया गया है. आने वाले दिनों में जल्द ही सब्जी की दूसरा खेप सऊदी में एक्सपोर्ट की की जाएगी. इस संबंध में जिला कृषि विभाग उनकी पूरी मदद कर रहा है. खेती के लिए प्रयुक्त संसाधन के साथ सभी सुविधाएं मुहैया कराएगा. जिला कृषि विभाग खेती के लिए प्रयुक्त संसाधन के साथ सभी सुविधाएं मुहैया करा रहा है. जिला कृषि पदाधिकारी मिथिलेश कालिंदी ने बताया है कि खेती के जरिये रोजगार के साथ खुद को स्थापित करने का प्रयास झरिया क्षेत्र के किसान कर रहे हैं. उनके द्वारा उपजाई गई सब्जी का उत्पादन बढ़ा है.
लॉकडाउन में खेलाराम का खेत अनलॉक रहा है. सब्जी के उत्पादन को सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में और आस पास के इलाकों में डोर टू डोर सस्ती कीमत पर जनता को उपलब्ध कराया गया है.
जैविक खाद का इस्तेमाल
खेलाराम सब्जी के उत्पादन के लिए खेतों में खुद से निर्मित जैविक खाद का इस्तेमाल करते है. प्रशिक्षण लेने के बाद खेती करने वाले किसान कृष्णा पदो महतो पिछले चार साल से खेलाराम के साथ जुड़कर खेती कर अपनी जीविका चला रहे है और खुशहाल जिंदगी गुजार रहे हैं. उनका कहना है खेत है तो जिंदगी है. मजदूरों का कहना है कि बाहर पैसा समय पर नही मिलता है और कम पैसे मिलते हैं यहां आने के बाद जबसे खेती का काम कर रहे है पैसा समय पर मिल रहा है. अब वे बाहर नही जाएंगे.
सैकड़ों किसानों को दे रहे प्रशिक्षण
खेलाराम क्षेत्र के करीब 300 किसानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. ये किसान भी अब धीरे-धीरे समृद्ध हो रहे हैं. उनसे प्रशिक्षण ले रहे जोबा टुडू और दुखु टुडू ने बताया कि अब उन्हें खेती के करने पर प्रतिमाह वेतन मिल रहा है जिससे वो संतुष्ट हैं. इसी तरह प्रवासी मजदूर बाबूलाल महतो ने बताया कि वे खेलाराम के साथ जुड़कर खेती करने में व्यस्त हैं. वे कहते है कि बाहर पैसा समय पर नहीं मिलता है और कम पैसे मिलते हैं यहां आने के बाद जब से खेती का काम कर रहे हैं, पैसा समय पर मिल रहा है अब बाहर नही जाएंगे.
बहरहाल जल जंगल जमीन वाले इस झारखंड में खेलाराम जैसे किसान ने मिट्टी से सैकड़ों किसानों के चेहरे पर मुस्कान भरने का काम किया है. ऐसे में प्रवासी मजदूर भी अपने गांव की मिट्टी से जुड़कर खुशहाल होंगे इससे इंकार नही किया जा सकता है. जरूरत है पहल करने की