जमशेदपुर: खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड की संस्कृति में पुरानी कई ऐसी परंपराएं हैं जो आज भी चली आ रही है. वहीं आदिवासी समाज की एक ऐसी पुरानी परंपरा जो दर्द से भरी है. लौहनगरी से सटे पोटका क्षेत्र का बोदरा टोला में ग्रामीण महिलाएं अपने नन्हें बच्चे को गोद में लिए कपकपाती ठंड में पुरोहित के घर जाती है. जहां पुरोहित अपनी पुरानी परंपरा से बच्चों को गर्म लोहे की सीक से दागता है जिसे चिड़ी दाग कहते हैं.
क्या है चिड़ी दाग
झारखंड में आदिवासी समाज मकर संक्रांति के दूसरे दिन को अखन जात्रा कहते हैं. अखन जात्रा के दिन अहले सुबह गांव का पुरोहित अपने घर के आंगन में लकड़ी और गोइठे की आग जलाकर उसमें लोहे की एक पतली सीक को गर्म करता है और आग के समक्ष जमीन पर तेल के निशान देकर हाथ जोड़ पूजा कर अपनी पुरानी परंपरा को निभाने के लिए तैयार रहते हैं. ग्रामीण महिलाएं जब बच्चों को लेकर पुरोहित के पास आती हैं तो पुरोहित बच्चे के पेट के नाभि के चारों तरफ तेल लगाते हैं. गर्म लोहे की सीक से नाभि के चारों तरफ 5 बार दागता इस दौरान चीखने और चिल्लाने की आवाज के साथ तड़प देखने को मिलती है. पुरोहित अपनी परंपरा को निभा कर बच्चे को सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हैं. इसी परंपरा का नाम है चिड़ी दाग. आदिवासी समाज में यह माना जाता है कि चिड़ी दाग से पेट दर्द से संबंधित बीमारियां दूर हो जाती है. 21 दिन के नवजात शिशु से लेकर बड़े उम्र के लोग भी चिड़ी दाग लेते है. बड़ों का कहना है कि शरीर में दर्द को दूर करने के लिए चिड़ी दाग लिया जाता है.
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परांपरागत है चिड़ी दाग
चिड़ी दाग करने वाले बोदरा टोला गांव के पुरोहित छोटू सरदार ने बताया कि उसके परदादा, दादा, उसके पिता इस परंपरा को करते आ रहे हैं. अब अपने पूर्वजों की इस परंपरा को वह खुद निभा रहा हैं. पुरोहित ने बताया कि मकर संक्रांति के दूसरे दिन अखन जात्रा के दिन सुबह अपने ग्राम देवता और पूर्वजों की पूजा करते हैं और जो बच्चा जिस गांव का रहता है उसके गांव के ग्राम देवता की पूजा कर चिड़ी दाग करते हैं. बच्चे रोते है लेकिन बीमारी से उन्हें मुक्ति मिलती है थोड़ा सहना पड़ता है. महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी रहती हैं और अपने नंबर का इंतजार करती हैं. चिड़ी दाग के समय बच्चा रोता है चिल्लाता है चीखता है लेकिन मां को दर्द तो होता है लेकिन उन्हें इस बात का अहसास है कि यह उनकी पुरानी परंपरा है और इसे निभाना भी है ग्रामीण अपनी इस परंपरा को पुरानी धरोहर मानते हैं. वहीं कुछ ग्रामीण महिलाएं यह भी कहती हैं कि पहले की अपेक्षा चिड़ी दाग लेने वालों की संख्या में कमी आई है.
गांव से दूर है डिजिटल भारत
बोदरा टोला के समाजसेवी ईश्वर सोरेन का कहना है कि समाज में यह मान्यता है कि चिड़ी दांत करने से पेट का दर्द दूर होता है नस से संबंधित बीमारियां भी दूर होती है. डिजिटल इंडिया शहरों तक ही सीमित है ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया का कोई असर नहीं पड़ा है. जब ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया आएगा तो अंधविश्वास दूर हो जाएगा लेकिन प्रयास किया जा रहा है लोगों को जागरूक किया जा रहा है.