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वाह रे डिजिटल इंडिया! चिड़ी दाग नाम के दिल दहलाने वाली परंपरा का दंश आज भी झेल रहा समाज

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Published : Jan 16, 2020, 9:10 PM IST

21वीं सदी के भारत में जहां डिजिटल इंडिया की बात की जाती है. वहीं पूर्वी सिंहभूम जिले के अलावा झारखंड के कुछ अन्य जिले में अभी भी कुछ ऐसी पुरानी परंपरा है जिसे देख दिल दहल जाता है. दर्द भरी इस परंपरा को आदिवासी समाज अपने पूर्वजों की देन कहते हैं, जो आज भी कायम है. कुछ ऐसा है दिखा पूर्वी सिंहभूम जिले के एक गांव में.

वाह रे डिजिटल इंडिया! चिड़ी दाग नाम के दिल दहलाने वाली परंपरा का दंश आज भी झेल रहा समाज
डिजाइन इमेज

जमशेदपुर: खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड की संस्कृति में पुरानी कई ऐसी परंपराएं हैं जो आज भी चली आ रही है. वहीं आदिवासी समाज की एक ऐसी पुरानी परंपरा जो दर्द से भरी है. लौहनगरी से सटे पोटका क्षेत्र का बोदरा टोला में ग्रामीण महिलाएं अपने नन्हें बच्चे को गोद में लिए कपकपाती ठंड में पुरोहित के घर जाती है. जहां पुरोहित अपनी पुरानी परंपरा से बच्चों को गर्म लोहे की सीक से दागता है जिसे चिड़ी दाग कहते हैं.

देखें स्पेशल रिपॉर्ट

क्या है चिड़ी दाग

झारखंड में आदिवासी समाज मकर संक्रांति के दूसरे दिन को अखन जात्रा कहते हैं. अखन जात्रा के दिन अहले सुबह गांव का पुरोहित अपने घर के आंगन में लकड़ी और गोइठे की आग जलाकर उसमें लोहे की एक पतली सीक को गर्म करता है और आग के समक्ष जमीन पर तेल के निशान देकर हाथ जोड़ पूजा कर अपनी पुरानी परंपरा को निभाने के लिए तैयार रहते हैं. ग्रामीण महिलाएं जब बच्चों को लेकर पुरोहित के पास आती हैं तो पुरोहित बच्चे के पेट के नाभि के चारों तरफ तेल लगाते हैं. गर्म लोहे की सीक से नाभि के चारों तरफ 5 बार दागता इस दौरान चीखने और चिल्लाने की आवाज के साथ तड़प देखने को मिलती है. पुरोहित अपनी परंपरा को निभा कर बच्चे को सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हैं. इसी परंपरा का नाम है चिड़ी दाग. आदिवासी समाज में यह माना जाता है कि चिड़ी दाग से पेट दर्द से संबंधित बीमारियां दूर हो जाती है. 21 दिन के नवजात शिशु से लेकर बड़े उम्र के लोग भी चिड़ी दाग लेते है. बड़ों का कहना है कि शरीर में दर्द को दूर करने के लिए चिड़ी दाग लिया जाता है.

और पढ़ें- चतरा: मुख्यमंत्री की ट्वीट के बाद जागा जिला प्रशासन, 3 दिन में होगा किसानों के बकाया राशि भुगतान

परांपरागत है चिड़ी दाग

चिड़ी दाग करने वाले बोदरा टोला गांव के पुरोहित छोटू सरदार ने बताया कि उसके परदादा, दादा, उसके पिता इस परंपरा को करते आ रहे हैं. अब अपने पूर्वजों की इस परंपरा को वह खुद निभा रहा हैं. पुरोहित ने बताया कि मकर संक्रांति के दूसरे दिन अखन जात्रा के दिन सुबह अपने ग्राम देवता और पूर्वजों की पूजा करते हैं और जो बच्चा जिस गांव का रहता है उसके गांव के ग्राम देवता की पूजा कर चिड़ी दाग करते हैं. बच्चे रोते है लेकिन बीमारी से उन्हें मुक्ति मिलती है थोड़ा सहना पड़ता है. महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी रहती हैं और अपने नंबर का इंतजार करती हैं. चिड़ी दाग के समय बच्चा रोता है चिल्लाता है चीखता है लेकिन मां को दर्द तो होता है लेकिन उन्हें इस बात का अहसास है कि यह उनकी पुरानी परंपरा है और इसे निभाना भी है ग्रामीण अपनी इस परंपरा को पुरानी धरोहर मानते हैं. वहीं कुछ ग्रामीण महिलाएं यह भी कहती हैं कि पहले की अपेक्षा चिड़ी दाग लेने वालों की संख्या में कमी आई है.

गांव से दूर है डिजिटल भारत

बोदरा टोला के समाजसेवी ईश्वर सोरेन का कहना है कि समाज में यह मान्यता है कि चिड़ी दांत करने से पेट का दर्द दूर होता है नस से संबंधित बीमारियां भी दूर होती है. डिजिटल इंडिया शहरों तक ही सीमित है ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया का कोई असर नहीं पड़ा है. जब ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया आएगा तो अंधविश्वास दूर हो जाएगा लेकिन प्रयास किया जा रहा है लोगों को जागरूक किया जा रहा है.

जमशेदपुर: खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड की संस्कृति में पुरानी कई ऐसी परंपराएं हैं जो आज भी चली आ रही है. वहीं आदिवासी समाज की एक ऐसी पुरानी परंपरा जो दर्द से भरी है. लौहनगरी से सटे पोटका क्षेत्र का बोदरा टोला में ग्रामीण महिलाएं अपने नन्हें बच्चे को गोद में लिए कपकपाती ठंड में पुरोहित के घर जाती है. जहां पुरोहित अपनी पुरानी परंपरा से बच्चों को गर्म लोहे की सीक से दागता है जिसे चिड़ी दाग कहते हैं.

देखें स्पेशल रिपॉर्ट

क्या है चिड़ी दाग

झारखंड में आदिवासी समाज मकर संक्रांति के दूसरे दिन को अखन जात्रा कहते हैं. अखन जात्रा के दिन अहले सुबह गांव का पुरोहित अपने घर के आंगन में लकड़ी और गोइठे की आग जलाकर उसमें लोहे की एक पतली सीक को गर्म करता है और आग के समक्ष जमीन पर तेल के निशान देकर हाथ जोड़ पूजा कर अपनी पुरानी परंपरा को निभाने के लिए तैयार रहते हैं. ग्रामीण महिलाएं जब बच्चों को लेकर पुरोहित के पास आती हैं तो पुरोहित बच्चे के पेट के नाभि के चारों तरफ तेल लगाते हैं. गर्म लोहे की सीक से नाभि के चारों तरफ 5 बार दागता इस दौरान चीखने और चिल्लाने की आवाज के साथ तड़प देखने को मिलती है. पुरोहित अपनी परंपरा को निभा कर बच्चे को सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हैं. इसी परंपरा का नाम है चिड़ी दाग. आदिवासी समाज में यह माना जाता है कि चिड़ी दाग से पेट दर्द से संबंधित बीमारियां दूर हो जाती है. 21 दिन के नवजात शिशु से लेकर बड़े उम्र के लोग भी चिड़ी दाग लेते है. बड़ों का कहना है कि शरीर में दर्द को दूर करने के लिए चिड़ी दाग लिया जाता है.

और पढ़ें- चतरा: मुख्यमंत्री की ट्वीट के बाद जागा जिला प्रशासन, 3 दिन में होगा किसानों के बकाया राशि भुगतान

परांपरागत है चिड़ी दाग

चिड़ी दाग करने वाले बोदरा टोला गांव के पुरोहित छोटू सरदार ने बताया कि उसके परदादा, दादा, उसके पिता इस परंपरा को करते आ रहे हैं. अब अपने पूर्वजों की इस परंपरा को वह खुद निभा रहा हैं. पुरोहित ने बताया कि मकर संक्रांति के दूसरे दिन अखन जात्रा के दिन सुबह अपने ग्राम देवता और पूर्वजों की पूजा करते हैं और जो बच्चा जिस गांव का रहता है उसके गांव के ग्राम देवता की पूजा कर चिड़ी दाग करते हैं. बच्चे रोते है लेकिन बीमारी से उन्हें मुक्ति मिलती है थोड़ा सहना पड़ता है. महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी रहती हैं और अपने नंबर का इंतजार करती हैं. चिड़ी दाग के समय बच्चा रोता है चिल्लाता है चीखता है लेकिन मां को दर्द तो होता है लेकिन उन्हें इस बात का अहसास है कि यह उनकी पुरानी परंपरा है और इसे निभाना भी है ग्रामीण अपनी इस परंपरा को पुरानी धरोहर मानते हैं. वहीं कुछ ग्रामीण महिलाएं यह भी कहती हैं कि पहले की अपेक्षा चिड़ी दाग लेने वालों की संख्या में कमी आई है.

गांव से दूर है डिजिटल भारत

बोदरा टोला के समाजसेवी ईश्वर सोरेन का कहना है कि समाज में यह मान्यता है कि चिड़ी दांत करने से पेट का दर्द दूर होता है नस से संबंधित बीमारियां भी दूर होती है. डिजिटल इंडिया शहरों तक ही सीमित है ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया का कोई असर नहीं पड़ा है. जब ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया आएगा तो अंधविश्वास दूर हो जाएगा लेकिन प्रयास किया जा रहा है लोगों को जागरूक किया जा रहा है.

Intro:जमशेदपुर।

21 वी सदी के भारत में जहां हम डिजिटल इंडिया के बात कर रहे हैं वही पूर्वी सिंहभूम जिला के अलावा झारखंड में अभी भी कुछ ऐसी पुरानी परंपरा है जिसे देख दिल दहल जाता है । दर्द भरी इस परंपरा को आदिवासी समाज अपने पूर्वजों की देन कहते हैं जो आज भी कायम है।कुछ ऐसा है दिखा पूर्वी सिंहभूम ज़िला के एक गांव में ।


Body:खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड की संस्कृति में पुरानी कई ऐसी परंपराएं हैं जो आज भी चली आ रही है वही आदिवासी समाज की एक ऐसी पुरानी परंपरा जो दर्द से भरी है।

यह नजारा है जमशेदपुर शहर से सटे पोटका क्षेत्र का बोदरा टोला का जहां सूरज की लालिमा दिखते ही ग्रामीण महिलाएं अपने नन्हे बच्चे को गोद में लिए कपकपाती ठंड में चली आ रही है और यह महिलाएं गांव के एक पुरोहित के घर में जाती है जहां पुरोहित अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार बच्चों को गर्म लोहे की सीक से दागता है जिसे चिड़ी दाग कहते हैं।

क्या है चिड़ी दाग
झारखंड में आदिवासी समाज मकर संक्रांति के दूसरे दिन को अखन जात्रा कहते हैं। अखन जात्रा के दिन अहले सुबह गांव का पुरोहित अपने घर के आंगन में लकड़ी और गोइठा की आग जलाकर उसमें लोहे की एक पतली सीक को गर्म करता है । और आग के समक्ष जमीन पर तेल के निशान देकर हाथ जोड़ पूजा कर अपनी पुरानी परंपरा को निभाने के लिए तैयार रहते हैं।
ग्रामीण महिलाएं जब बच्चों को लेकर पुरोहित के पास आती हैं पुरोहित बच्चे के पेट के नाभि के चारों तरफ तेल लगाते हैं और गर्म लोहे की सीक से नाभि के चारों तरफ 5 बार दागता इस दौरान एक चीखने और चिल्लाने की आवाज के साथ तड़प देखने को मिलती है गर्म लोहे की सीक से दागे जाने के बाद बच्चे तड़पते हैं चिल्लाते हैं रोते हैं लेकिन पुरोहित अपनी परंपरा को निभा कर बच्चे को सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हैं।
और इस परंपरा का नाम है चिड़ी दाग।
आदिवासी समाज में यह माना जाता है कि चिड़ी दाग से पेट दर्द से संबंधित बीमारियां दूर हो जाती है।
21 दिन के नवजात शिशु से लेकर बड़े उम्र के लोग भी चिड़ी दाग लेते है।बड़ों का कहना है शरीर मे दर्द को दूर करने के लिए चिड़ी दाग लिया जाता है ।

चिड़ी दाग करने वाले बोदरा टोला गांव के पुरोहित छोटू सरदार ने बताया कि उसके परदादा दादा उसके पिता इस परंपरा को करते आ रहे हैं अब अपने पूर्वजों की इस परंपरा को वह खुद निभा रहा है पुरोहित ने बताया कि मकर संक्रांति के दूसरे दिन अखन जात्रा के दिन सुबह अपने ग्राम देवता और पूर्वजों की पूजा करते है और जो बच्चा जिस गांव का रहता है उसके गांव के ग्राम देवता की पूजा कर चिड़ी दाग करते है।बच्चे रोते है लेकिन बीमारी से उन्हें मुक्ति मिलती है थोड़ा सहना पड़ता है।
बाईट छोटू सरदार पुरोहित चिड़ी दाग करने वाला

इधर पुरोहित के घर में गांव की महिलाएं अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी रहती हैं और अपने नंबर का इंतजार करती हैं चिड़ी दाग के समय बच्चा रोता है चिल्लाता है चीखता है लेकिन मां को दर्द तो होती है लेकिन उन्हें इस बात का एहसास है कि यह उनकी पुरानी परंपरा है और इसे निभाना भी है ग्रामीण अपने इस परंपरा को पुरानी धरोहर मानते हैं।वही कुछ ग्रामीण महिलाये यह भी कहती है कि पहले की अपेक्षा चिड़ी दाग लेने वालों की सिंझ्या में कमी आई है वजह क्या है नही मालूम।
बाईट शर्मिला सरदार माँ
बाईट रानी बिरुली माँ
बाईट दुर्गामणि मार्डी स्थानीय

गौरतलब है कि झारखंड बनने के बाद सरकार ने कई मुद्दों पर ग्रामीण क्षेत्र में जागरूकता अभियान चलाया है कई संस्थाएं भी ग्रामीणों को जागरूक करने में लगी हुई है वहीं दूसरी तरफ पंचायत राज बनने के बाद भी पंचायत क्षेत्र में दर्द भरी इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है ।
बोदरा टोला के समाजसेवी ईश्वर सोरेन का कहना है कि समाज में यह मान्यता है कि चिड़ी दांत करने से पेट का दर्द दूर होता है नस से संबंधित बीमारियां भी दूर होती है डिजिटल इंडिया शहरों तक ही सीमित है ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया का कोई असर नहीं पड़ा है जब ग्रामीण क्षेत्र में डिजिटल इंडिया आएगा तो अंधविश्वास दूर हो जाएगा लेकिन प्रयास किया जा रहा है लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
बाईट ईश्वर सोरेन समाजसेवी




Conclusion:वहीं मेडिकल साइंस चिड़ी दाग को पूरी तरह अंधविश्वास बताता है जमशेदपुर के सदर अस्पताल की फिजीशियन डॉक्टर सोनी नारायण ने कहा है कि आदिवासी समाज में यह पुरानी परंपरा चली आ रही है लेकिन हकीकत ऐसा नहीं है लोहे की सीक से दागने के बाद कोई बीमारी दूर नहीं होती है बल्कि उससे बच्चे या बड़े जख्मी होते हैं इसे बड़ा खतरा भी हो सकता है आज ऐसे क्षेत्र में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है ।
बाईट डॉ सोनी नारायण फिजिशियन सदर अस्पताल

बहर हाल एक तरफ हम मंगल ग्रह पर जा रहे हैं वही देश के एक छोटे से राज्य में ऐसी दर्द भरी परंपरा सरकार और प्रशासन की सिस्टम की सच्चाई को उजागर करती है अंधविश्वास से भरी ऐसी दर्द भरी परंपरा में बदलाव लाने के लिए सिर्फ भाषणों और घोषणाओं से नही जमीनी स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है ।
जितेंद्र कुमार ईटीवी भारत जमशेदपुर

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