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1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग तेज, दुमका में धरना पर बैठे सैकड़ों ग्रामीण

दुमका में स्थानीय नीति की मांग को लेकर ग्रामीण धरना पर बैठ गए हैं. ग्रामीणों ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्थानीय नीति लागू करने का वादा किया था. लेकिन ढाई साल बीतने के बावजूद लागू नहीं हो सका है.

protest demanding local policy in Dumka
दुमका में 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग तेज
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Published : Mar 21, 2022, 5:28 PM IST

दुमकाः 1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की मांग तेज हो गई है. पहले छात्र आंदोलन कर रहे थे. अब इस आंदोलन में ग्रामीण भी कूद पड़े हैं. सोमवार को सैकड़ों की संख्या में ग्रामीन स्थानीय नीति की मांग को लकेर पुराना समाहरणालय परिसर में धरने पर बैठे. इस धरने में कई ग्राम प्रधान भी शामिल थे, जो जोर-शोर से स्थानीय नीति की मांग कर रहे थे.

यह भी पढ़ेंः 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग, झारखंडी भाषा संघर्ष समिति ने विधानसभा का किया घेराव



धरना पर बैठे आंदोलनकारियों ने कहा कि 1932 खतियान के आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति लागू की जाए. इसके साथ ही संथाली भाषा को प्रथम राजभाषा बनाया जाए. उन्होंने कहा कि भोजपुरी, अंगिका और मगही भाषा को झारखंड में क्षेत्रीय भाषा से अलग रखा जाए. सरकारी नौकरी अनुबंध पर नहीं बल्कि स्थाई तौर पर दी जाए. उन्होंने कहा कि यह मांग जब तक पूरी नहीं की जाएगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.

देखें पूरी खबर


आंदोलनकारी किरण बास्की ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणा की थी और कहा था कि सरकार बनी तो 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लागू करेंगे. हेमंत सोरेन की सरकार बन गई और ढाई साल भी बीत गए. लेकिन आज तक स्थानीय नीति लागू नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपने वादा पूरा नहीं करेंगे तो आने वाले समय में जो भी चुनाव आएगा, उसमें वोट का बहिष्कार करेंगे.

दुमकाः 1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने की मांग तेज हो गई है. पहले छात्र आंदोलन कर रहे थे. अब इस आंदोलन में ग्रामीण भी कूद पड़े हैं. सोमवार को सैकड़ों की संख्या में ग्रामीन स्थानीय नीति की मांग को लकेर पुराना समाहरणालय परिसर में धरने पर बैठे. इस धरने में कई ग्राम प्रधान भी शामिल थे, जो जोर-शोर से स्थानीय नीति की मांग कर रहे थे.

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धरना पर बैठे आंदोलनकारियों ने कहा कि 1932 खतियान के आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति लागू की जाए. इसके साथ ही संथाली भाषा को प्रथम राजभाषा बनाया जाए. उन्होंने कहा कि भोजपुरी, अंगिका और मगही भाषा को झारखंड में क्षेत्रीय भाषा से अलग रखा जाए. सरकारी नौकरी अनुबंध पर नहीं बल्कि स्थाई तौर पर दी जाए. उन्होंने कहा कि यह मांग जब तक पूरी नहीं की जाएगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.

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आंदोलनकारी किरण बास्की ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव के दौरान घोषणा की थी और कहा था कि सरकार बनी तो 1932 के आधार पर स्थानीय नीति लागू करेंगे. हेमंत सोरेन की सरकार बन गई और ढाई साल भी बीत गए. लेकिन आज तक स्थानीय नीति लागू नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अपने वादा पूरा नहीं करेंगे तो आने वाले समय में जो भी चुनाव आएगा, उसमें वोट का बहिष्कार करेंगे.

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