दुमकाः जिले के जामा प्रखंड अंतर्गत लकड़ाजोड़िया में सिदो कान्हू प्रतिमा के सामने सफा होड़ समुदाय के लोगों ने रात्रि जागरण कार्यक्रम का आयोजन किया. इसके बाद सुबह लोगों ने सिदो कान्हू की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर हूल दिवस मनाया. इस दौरान लोगों ने सरकार की गाइडलाइन को दरकिनार करते हुए मास्क नहीं लगाया और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया.
हूल दिवस के कार्यक्रम के अवसर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के जामा प्रखंड सचिव सत्तार खान और हेमलाल मुर्मू ने आदिवासी पारम्परिक वस्त्र पंछी देकर रात्रि जागरण करने वाले ग्रामीणों को सम्मानित किया.
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सरकार की गाइडलाइन का उल्लंघन
देश में कोरोना महामारी प्रकोप को बढ़ता देख सरकार ने सामाजिक दूरी का पालन करने और घर से बाहर निकलने पर मास्क पहनना अनिवार्य किया है. साथ ही इसके लिए प्रशासन रोको-टोको अभियान चला रहा है. ताकि इस जानलेवा महामारी से बचाव किया जा सके, लेकिन इसके बावजूद उत्साह में लोग सामजिक दूरी का पालन और मास्क लगाना भूल गए.
हूल दिवस क्या है?
हूल क्रांति की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से काफी पहले 30 जून 1855 में ही हुई थी. 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भूमि हड़पने के लिए क्रूर नीति अपनाई और उन्होंने इस पर मालगुजारी भत्ता लगा दिया. इसके विरोध में आदिवासियों ने सिदो-कान्हू के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया. इसे दबाने के लिए अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लगा दिया, नतीजा यह हुआ कि 20 हजार लोग जान से हाथ धो बैठे. हूल का शाब्दिक अर्थ होता है विद्रोह है.