दुमकाः झारखंड की उपराजधानी दुमका के दिव्यांग बच्चों का विद्यालय खुद ही 'विकलांग' अवस्था में है. विद्यालय में बुनियादी सुविधाओं की भी घोर कमी है, जिसे बच्चे इशारों में बताते हैं. पहला तो संथाल परगना प्रमंडल के छह जिलों में से सिर्फ एक में 25 सीट का राजकीय मूक बधिर विद्यालय (आवासीय) स्थापित है. जहां सिर्फ सातवीं कक्षा तक की ही पढ़ाई होती है. यदि बच्चों की संख्या 25 से अधिक हो जाय तो उन्हें पढ़ाई से दूर होना पड़ता है या बच्चे सातवीं पास कर लें तो आगे की पढ़ाई के लिए संकट.
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समस्याएं इतनी ही होती तो फिर भी संतोष कर लेते. हाल यह ही कि हिजला भवन दुमका में समाज कल्याण विभाग की ओर से मूक बधिर बच्चों के लिए संचालित इस आवासीय विद्यालय में शिक्षकों के पांच पदों के मुकाबले दो ही शिक्षक नियुक्त है. जो यहां जैसे-तैसे पढ़ाई कराए जाने की ओर इशारा करता है. इसके अलावा स्कूल में बच्चों की पढ़ाई, भोजन और खेलकूद की व्यवस्थाएं भी ठीक नहीं हैं.
राजकीय मूक बधिर विद्यालय में तैनात शिक्षक सुधीर कुमार ने बताया कि यहां 1 से 7 वर्ग के दिव्यांग बच्चों को इशारों के माध्यम से पढ़ाया जाता है. आज यहां के बच्चे कंप्यूटर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं लेकिन परेशानी यह है कि संथालपरगना प्रमंडल में ऐसे दिव्यांगों के लिए सिर्फ एक ही विद्यालय है और इस विद्यालय में भी दिव्यांग बच्चों के लिए सिर्फ 25 सीट निर्धारित है, जो लगभग तीन दशक पहले तय की गई थी. दूसरी बात यह है कि यहाँ से सातवीं तक पढ़ने के बाद ये आगे कैसे बढ़ेंगे और कहां पढ़ेंगे इसकी व्यवस्था नहीं है. राजधानी रांची में भी ऐसे दिव्यांग बच्चों के लिए जो विद्यालय है उसमें 30 सीट ही निर्धारित है और वहां भी कक्षा सात तक की ही शिक्षा दी जाती है. अगर सीट बढ़ाई जाए तो जरूरतमंदों को लाभ मिल सकता है और साथ ही ऐसे बच्चों के लिए उच्च विद्यालय की भी जरूरत है.