दुमकाः पश्चिम बंगाल सरकार ने 1955 में बिहार सरकार से जमीन लेकर मयूराक्षी नदी पर मसानजोर डैम का निर्माण कराया. इस डैम के निर्माण में दुमका जिले के शिकारीपाड़ा, रानीश्वर, मसलिया और सदर प्रखंड के 144 गांवों के हजारों किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई. इस जमीन के बदले 20 वर्षों की उपज का आकलन कर मुआवजा राशि दी गई थी, लेकिन डैम बने 60 सालों से अधिक हो गए स्थिति यह है कि डैम के निर्माण में जमीन देने वाले किसान या जमींदार मजदूर बन गए हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
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मसानजोर डैम के लिए एक-एक किसानों ने 50 से 200 एकड़ तक जमीन अधिग्रहित की गई. इससे अधिकतर किसानों के पास दो से चार बीधा जमीन बचा गया और कुछ किसान तो बिल्कुल भूमिहीन हो गए. डैम बनने वक्त जो बड़े-बड़े जमीनदार या किसान थे, उसकी आज दयनीय स्थिति है. स्थिति यह है कि मजदूरी कर जीवन जीने को मजबूर हैं.
मुआवजे के तौर की गई खानापूर्ति
डैम के निर्माण में लोगों की खेती योग्य जमीन जल में समाहित हो गई. विस्थापित कहते हैं कि उस वक्त 20 वर्षों में उपजने वाली फसल का आकलन किया गया, जिसकी कीमत मुआवजे के तौर पर देकर खानापूर्ति की गई. उन्होंने कहा कि डैम बने 60 साल बीत गए, उन्हें बकाया मुआवजा मिलना चाहिए.
बकाया मुआवजा राशि की मांग
विस्थापितों के एक गांव मसलिया प्रखंड के सकरीगली के ग्राम प्रधान अभिनाथ मंडल कहते हैं कि उनके पास जो भी उपजाऊ भूमि थी, वह डैम में चली गई और वे विस्थापित हो गए. उन्होंने कहा कि थोड़ी-बहुत जमीन है, जो जीवन जीने के लिए पर्याप्त नहीं है. अधिकतर विस्थापित शहरों में जाकर मजदूरी करने को विवश हैं. उन्होंने कहा कि कुछ विस्थापित दूध बेचकर आजीविका चला रहे हैं. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहते है कि बकाया मुआवजे की राशि का भुगतान करने के साथ साथ परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए.
मुआवजा दिलाने की पहल करे सरकार
दुमका सिविल कोर्ट के अधिवक्ता निवास मंडल भी डैम में जमीन देकर विस्थापित हो गए. मसलिया प्रखंड के कठलिया गांव के रहने वाले निवास मंडल कहते हैं कि हजारों विस्थापित परिवार बिखर गए हैं. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच जो एग्रीमेंट हुआ था, उस एग्रीमेंट की कॉपी झारखंड सरकार सार्वजनिक करें और उस एग्रीमेंट के अनुसार विस्थापितों को मुआवजा दिलाने की पहल करें.