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चूल्हे में झुलस रहा बच्ची की पढ़ाई का सपना, मां के इलाज के लिए थाम लिया कुदाल

दुमका के जरमुंडी प्रखंड की एक बच्ची के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब है. बीमार मां के इलाज और मजदूर पिता की मदद के लिए बच्ची को पढ़ाई छोड़ना पड़ गया. मगर अब तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली.

girl from jarmundi block of dumka
दुमका के जरमुंडी प्रखंड की निशा
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Published : Jul 13, 2021, 12:19 PM IST

Updated : Jul 14, 2021, 10:58 AM IST

दुमकाः दुख भरी कहानियां आपने कई सुनी होंगी, लेकिन आज हम जिस कहानी को पढ़ाने जा रहे हैं, वो आपके कठोर दिल को भी पसीज देगा. यह कहानी है दुमका जिलेके जरमुंडी प्रखंड क्षेत्र के महुआ गांव की नाबालिग बच्ची निशा कुमारी की. जिसको मां के इलाज और पांच छोटे भाई-बहनों की भूख मिटाने में पिता का सहारा बनने के लिए पढ़ने की उम्र में मजदूरी के लिए कुदाल थामना पड़ गया. और जिस उम्र में आंखों में तमाम सपने होते हैं, बच्ची को खाना बनाने के लिए खुद को अपने प्यारों, भाई-बहनों के लिए चूल्हे के सामने रखना पड़ गया.

ये भी पढ़ें-कोबरा, रसल वाइपर और बैंडेड करैत से रहें सावधान, झाड़-फूंक की बजाय मरीज को तुरंत ले जाएं अस्पताल

यह है दिल को झकझोरने वाली कहानी

महुआ गांव की निशा की मां दिव्यांग हैं और पिता मजदूरी कर परिवार का जैसे-तैसे भरण-पोषण कर रहे थे. लेकिन जैसे नीयति को यह भी मंजूर नहीं था. छह साल पहले निशा की मां मानसिक रूप से बीमार हो गईं. अब कुर्बानी का वक्त आ गया था. एक तरफ निशा के पढ़ने के सपने थे तो दूसरी तरफ छोटे-भाई बहन की भूख और मां का इलाज. आखिरकार बच्ची ने वह फैसला किया जिसके लिए चट्टान जैसा कलेजा जाहिए. उसने गृहस्थी की गाड़ी खींचने में खुद और अपने पढ़ाई के सपने को झोंक दिया. और पिता का सहारा बनने के लिए पहले घर का खाना बनाती है, फिर खेतों में पिता के साथ मिलकर मजदूरी करती है. निशा के पिता भीम दरबे बताते हैं कि बच्ची ही तो है कभी-कभार रो देती है. लेकिन क्या कर सकते हैं. इधर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के बीपीएम वरूण कुमार शर्मा ने साग-सब्जी की खेती करने की सलाह दी है. ताकि आमदनी बढ़ाकर कम से कम निशा की मां का इलाज कराया जा सके. उन्होंने दीदी बाड़ी योजना का लाभ दिलाने का भी भरोसा दिलाया है.

देखें पूरी खबर

मां के इलाज के लिए बड़ी बहन का जद्दोजहद

भीम दरबे का कहना है कि मेहनत-मजदूरी से किसी तरह परिवार का पालन पोषण करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस आमदनी में पत्नी का इलाज कराना मुश्किल है. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी बेटी निशा से माता का दर्द और पिता की बेबसी देखी नहीं गई. इसलिए निशा परिवार चलाने के लिए मजदूरी करने लगी और अपने पिता के सहयोग में जुट गई. छोटे भाई बहनों की देखभाल के बाद जब समय मिलता है निशा हाथ में कुदाल लेकर दूसरे के खेतों में मजदूरी करने निकल जाती है. निशा चाहती है कि मां का समुचित इलाज हो जाए तो वह घर के बोझ से मुक्त होकर पढ़ाई कर सके.

ये भी पढ़ें-विश्व बाल श्रम दिवस पर विशेषः झारखंड में एक बार फिर एक्टिव हुए मानव तस्कर, निशाने पर बच्चे

मदद का भरोसा
इधर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के बीपीएम वरूण कुमार शर्मा ने मदद के लिए वादा किया है. उन्होंने सरकार की ओर से संचालित दीदीबाड़ी योजना के तहत लाभ दिलाने का भरोसा दिलाया है. बीपीएम ने निशा के पिता से बात की है और उनको अपनी जमीन में ही साग-सब्जी की खेती की सलाह दी है ताकि फसल की बिक्री से परिवार की आय में वृद्धि हो.

आज तक नहीं मिली सरकारी मदद

वहीं वार्ड सदस्य एवं ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें सरकार की विकास योजनाओं का समुचित लाभ निशा और उसके परिवार को मिलता तो एक बच्ची के पढ़ने का सपना नहीं टूटता. उन्होंने निशा के मां के सरकारी स्तर पर इलाज और पिता को रोजगार दिलाने की मांग की है.

दुमकाः दुख भरी कहानियां आपने कई सुनी होंगी, लेकिन आज हम जिस कहानी को पढ़ाने जा रहे हैं, वो आपके कठोर दिल को भी पसीज देगा. यह कहानी है दुमका जिलेके जरमुंडी प्रखंड क्षेत्र के महुआ गांव की नाबालिग बच्ची निशा कुमारी की. जिसको मां के इलाज और पांच छोटे भाई-बहनों की भूख मिटाने में पिता का सहारा बनने के लिए पढ़ने की उम्र में मजदूरी के लिए कुदाल थामना पड़ गया. और जिस उम्र में आंखों में तमाम सपने होते हैं, बच्ची को खाना बनाने के लिए खुद को अपने प्यारों, भाई-बहनों के लिए चूल्हे के सामने रखना पड़ गया.

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यह है दिल को झकझोरने वाली कहानी

महुआ गांव की निशा की मां दिव्यांग हैं और पिता मजदूरी कर परिवार का जैसे-तैसे भरण-पोषण कर रहे थे. लेकिन जैसे नीयति को यह भी मंजूर नहीं था. छह साल पहले निशा की मां मानसिक रूप से बीमार हो गईं. अब कुर्बानी का वक्त आ गया था. एक तरफ निशा के पढ़ने के सपने थे तो दूसरी तरफ छोटे-भाई बहन की भूख और मां का इलाज. आखिरकार बच्ची ने वह फैसला किया जिसके लिए चट्टान जैसा कलेजा जाहिए. उसने गृहस्थी की गाड़ी खींचने में खुद और अपने पढ़ाई के सपने को झोंक दिया. और पिता का सहारा बनने के लिए पहले घर का खाना बनाती है, फिर खेतों में पिता के साथ मिलकर मजदूरी करती है. निशा के पिता भीम दरबे बताते हैं कि बच्ची ही तो है कभी-कभार रो देती है. लेकिन क्या कर सकते हैं. इधर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के बीपीएम वरूण कुमार शर्मा ने साग-सब्जी की खेती करने की सलाह दी है. ताकि आमदनी बढ़ाकर कम से कम निशा की मां का इलाज कराया जा सके. उन्होंने दीदी बाड़ी योजना का लाभ दिलाने का भी भरोसा दिलाया है.

देखें पूरी खबर

मां के इलाज के लिए बड़ी बहन का जद्दोजहद

भीम दरबे का कहना है कि मेहनत-मजदूरी से किसी तरह परिवार का पालन पोषण करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस आमदनी में पत्नी का इलाज कराना मुश्किल है. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी बेटी निशा से माता का दर्द और पिता की बेबसी देखी नहीं गई. इसलिए निशा परिवार चलाने के लिए मजदूरी करने लगी और अपने पिता के सहयोग में जुट गई. छोटे भाई बहनों की देखभाल के बाद जब समय मिलता है निशा हाथ में कुदाल लेकर दूसरे के खेतों में मजदूरी करने निकल जाती है. निशा चाहती है कि मां का समुचित इलाज हो जाए तो वह घर के बोझ से मुक्त होकर पढ़ाई कर सके.

ये भी पढ़ें-विश्व बाल श्रम दिवस पर विशेषः झारखंड में एक बार फिर एक्टिव हुए मानव तस्कर, निशाने पर बच्चे

मदद का भरोसा
इधर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के बीपीएम वरूण कुमार शर्मा ने मदद के लिए वादा किया है. उन्होंने सरकार की ओर से संचालित दीदीबाड़ी योजना के तहत लाभ दिलाने का भरोसा दिलाया है. बीपीएम ने निशा के पिता से बात की है और उनको अपनी जमीन में ही साग-सब्जी की खेती की सलाह दी है ताकि फसल की बिक्री से परिवार की आय में वृद्धि हो.

आज तक नहीं मिली सरकारी मदद

वहीं वार्ड सदस्य एवं ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें सरकार की विकास योजनाओं का समुचित लाभ निशा और उसके परिवार को मिलता तो एक बच्ची के पढ़ने का सपना नहीं टूटता. उन्होंने निशा के मां के सरकारी स्तर पर इलाज और पिता को रोजगार दिलाने की मांग की है.

Last Updated : Jul 14, 2021, 10:58 AM IST
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