दुमकाः फूलो झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल में झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग की अदूरदर्शिता साफ नजर आती है. यहां करोड़ों रुपए के मशीन और अन्य उपकरण इंस्टॉल तो कर दिए गए हैं पर इसे चलाने वाले विशेषज्ञ के नहीं रहने से इन उपकरणों का फायदा मरीजों को नहीं मिल पा रहा है.
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क्या है पूरा मामलाः दुमका में 4 वर्ष पूर्व जब फूलो झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल खुला तो लाखों लोगों को लगा अब यहां बेहतर इलाज की सुविधा मिलेगी. खासतौर पर कई तरह के जांच जो यहां नहीं हो पाते थे, उसके लिए दूसरे शहर जाना पड़ता था वह अब यहीं उपलब्ध होगा. इधर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अनुरूप यहां चिकित्सीय उपकरण और मशीनें मंगाकर इंस्टॉल किए गये. लेकिन उसे चलाएगा कौन इस पर किसी का कोई ध्यान नहीं था.
वेंटिलेटर, अल्ट्रासाउंड, ऑक्सीजन प्लांट सभी लगाए गए पर स्पेशलिस्ट नहीं हैं मौजूदः फूलो झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कई करोड़ रुपए खर्च कर 70 वेंटिलेटर, तीन ऑक्सीजन प्लांट, एक अल्ट्रासाउंड मशीन सभी कुछ लगा दिया गया है, लेकिन इसे संचालित करने वाले स्पेशलिस्ट की बहाली नहीं हुई है. अल्ट्रासाउंड मशीन तो इंस्टॉल के बाद से ही शोभा की वस्तु बनी हुई है. वहीं ऑक्सीजन प्लांट और वेंटिलेटर का कामचलाऊ व्यवस्था के तहत थोड़ा बहुत इस्तेमाल हो रहा है.
क्या कहते हैं मेडिकल कॉलेज के सुपरिटेंडेंटः मेडिकल कॉलेज के सुपरिटेंडेंट कहते हैं कि ऑक्सीजन प्लांट और वेंटिलेटर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन विशेषज्ञ नहीं होने की वजह से अगर इसमें थोड़ी बहुत भी खराबी आ जाती है तो फिर हम लोगों के समक्ष बड़ी समस्या आ जाती है. जहां तक अल्ट्रासाउंड मशीन की बात है तो रेडियोलॉजिस्ट और अन्य विशेषज्ञ नहीं रहने से हम लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. अधीक्षक ने जानकारी दी तकनीशियन की जो कमी है उसकी जानकारी विभाग को दी गई है और उनके द्वारा ही इस पर कोई कदम उठाया जा सकता है.
सरकारी अल्ट्रासाउंड मशीन रहने के बावजूद पीपीपी मोड पर लोग इस सेवा लेने को मजबूरः अभी इस अस्पताल में पीपीपी मोड के तहत अल्ट्रासाउंड मशीन से मरीजों की जांच हो रही है. जिसके लिए लगभग प्रति जांच 350 रुपये खर्च होते हैं. जबकि सरकार ने जो लगभग 20 लाख रुपए में अल्ट्रासाउंड मशीन खरीदी थी उसे ढक कर रख दिया गया है क्योंकि इसे चलाने वाला कोई नहीं । जाहिर है गरीबों को इस व्यवस्था से परेशानी होती है.
क्या कहते हैं स्थानीय लोगः मेडिकल कॉलेज अस्पताल में विशेषज्ञ के अभाव में उपकरणों का इस्तेमाल नहीं होने के मामले पर स्थानीय लोग काफी नाराजगी प्रकट करते हैं. उनका कहना है कि लाखों रुपये के मशनों का सिर्फ स्पेशलिस्ट के अभाव में सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हो रहा. वे सरकार से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं.