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धधकते अंगारों ने छीना इस शहर का चैन, जानिए दशकों पहले भड़की चिंगारी की कहानी

धनबाद के झरिया में सालों पहली लगी भूमिगत आग अब तक बुझ नहीं पाई है. इस आग में कईयों की जिंदगी तबाह हो गई तो कई लोग आज भी संघर्ष करते नजर आते हैं. इस पर देश की अलग-अलग सरकारों ने कई योजनाएं बनाई और काम भी किया लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.

Jharia fire, झरिया की आग
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Published : Feb 13, 2020, 6:29 AM IST

Updated : Feb 13, 2020, 2:18 PM IST

धनबाद: कोयलांचल धनबाद के झरिया इलाके में लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से भूमिगत आग लगी हुई है, लेकिन आज तक इस आग पर काबू नहीं पाया गया है, कई बार आग पर काबू पाने का प्रयास हुआ लेकिन यह सफल नहीं हो सका. जबकि पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम ने भी यह कहा था कि झरिया की आग पर काबू पाया जा सकता है. लेकिन आज तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई. अब यह आग जमीन के अंदर धधकती जा रही है, इससे झरिया का अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

1890 में यहां हुई कोयले की खोज

आपने और हमने राजाओं के लिए जान देते नौकरों की तो कई कहानियां सुनी हैं. लेकिन किसी एक शहर के विकास के लिए दूसरे शहर की कुर्बानी देने का शायद यह इकलौता उदाहरण है. सन 1890 में कोयले की खोज के बाद से ही धनबाद का शहरीकरण शुरू हो गया था. धनबाद बनता गया और झरिया उडजड़ता गया. अगर हम ये कहें कि आज धनबाद की जो रौनक है वो झरिया की देन है. अगर झरिया न होता तो धनबाद कभी आबाद नहीं हो पाता.

1916 में लगी झरिया की आग

दरअसल, झरिया की खदानों में आग लगने की खबर1916 में आई थी, इस भूमिगत आग के कारण झरिया स्टेशन काफी पहले ही खत्म हो गया था. धनबाद-झरिया रेल लाइन उजड़ चुकी है और कुछ दिनों पहले ही धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन पर भी खतरा मंडराया था जिस कारण डीसी रेल लाइन को बंद कर दिया गया था. हालांकि बाद में काफी हो-हंगामा के बाद इस रेल लाइन को अब चालू जरूर किया गया है. लेकिन, भू-धंसान के कारण आज फिर एक बार डीसी रेल लाइन भी बंद के कगार पर है.

ये भी पढ़ें- एक ही मंडप में मां-बेटी ने लिए सात फेरे, अनोखी शादी के गवाह बने लोग

बुझ सकती है झरिया की आग

स्थानीय लोगों की मानें तो झरिया की आग को बीसीसीएल प्रबंधन ने जान-बूझकर भड़कने दिया और इसे बुझाने का प्रयास नहीं कर रहा है. क्योंकि बीसीसीएल प्रबंधन यह चाहती है कि लोग यहां से डरकर भाग जाएं ताकि वह यहां की खदानों से कोयला निकाल सके. इस बारे में सिंफर के रिटायर्ड वैज्ञानिक और वर्तमान सिंफर निदेशक दोनों लोगों ने कहा कि इस आग को बुझाया जा सकता है, बशर्ते एक उचित प्लेटफार्म की जरूरत है अगर सभी मिल बैठकर इस आग पर चर्चा करें तो यह आग बुझाई जा सकती है.

पलायन को मजबूर लोग

झरिया की भूमिगत आग की वजह से लोग बीमार पड़ रहे हैं और पलायन को मजबूर हैं. जरेडा के तहत पुनर्वास की रफ्तार भी काफी धीमी है. इन सारी समस्याओं को झेलते हुए झरियावासी आज भी अपने बेबसी पर मजबूर हैं और उन्हें किसी फरिश्ते का इंतजार है जो इन्हें इन समस्याओं से निजात दिला सके.

ये भी पढ़ें- 'अहिंसा की नगरी' में बढ़ता गया 'लाल आतंक' का साया, दशकों बाद बह रही बदलाव की बयार

पुनर्वास पर हो रहा काम

इस आग से प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 2010 में बेलगढ़िया में एक टाउनशिप बसाया जा रहा है. जहां 70 हजार से भी ज्यादा परिवारों को बसाया जाना है. धनबाद और झरिया से यह जगह 12 से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. इसके लिए झरिया विस्थापित पुनर्वास योजना (JRDA) बनाया गया है.

धनबाद: कोयलांचल धनबाद के झरिया इलाके में लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से भूमिगत आग लगी हुई है, लेकिन आज तक इस आग पर काबू नहीं पाया गया है, कई बार आग पर काबू पाने का प्रयास हुआ लेकिन यह सफल नहीं हो सका. जबकि पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम ने भी यह कहा था कि झरिया की आग पर काबू पाया जा सकता है. लेकिन आज तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई. अब यह आग जमीन के अंदर धधकती जा रही है, इससे झरिया का अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

1890 में यहां हुई कोयले की खोज

आपने और हमने राजाओं के लिए जान देते नौकरों की तो कई कहानियां सुनी हैं. लेकिन किसी एक शहर के विकास के लिए दूसरे शहर की कुर्बानी देने का शायद यह इकलौता उदाहरण है. सन 1890 में कोयले की खोज के बाद से ही धनबाद का शहरीकरण शुरू हो गया था. धनबाद बनता गया और झरिया उडजड़ता गया. अगर हम ये कहें कि आज धनबाद की जो रौनक है वो झरिया की देन है. अगर झरिया न होता तो धनबाद कभी आबाद नहीं हो पाता.

1916 में लगी झरिया की आग

दरअसल, झरिया की खदानों में आग लगने की खबर1916 में आई थी, इस भूमिगत आग के कारण झरिया स्टेशन काफी पहले ही खत्म हो गया था. धनबाद-झरिया रेल लाइन उजड़ चुकी है और कुछ दिनों पहले ही धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन पर भी खतरा मंडराया था जिस कारण डीसी रेल लाइन को बंद कर दिया गया था. हालांकि बाद में काफी हो-हंगामा के बाद इस रेल लाइन को अब चालू जरूर किया गया है. लेकिन, भू-धंसान के कारण आज फिर एक बार डीसी रेल लाइन भी बंद के कगार पर है.

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बुझ सकती है झरिया की आग

स्थानीय लोगों की मानें तो झरिया की आग को बीसीसीएल प्रबंधन ने जान-बूझकर भड़कने दिया और इसे बुझाने का प्रयास नहीं कर रहा है. क्योंकि बीसीसीएल प्रबंधन यह चाहती है कि लोग यहां से डरकर भाग जाएं ताकि वह यहां की खदानों से कोयला निकाल सके. इस बारे में सिंफर के रिटायर्ड वैज्ञानिक और वर्तमान सिंफर निदेशक दोनों लोगों ने कहा कि इस आग को बुझाया जा सकता है, बशर्ते एक उचित प्लेटफार्म की जरूरत है अगर सभी मिल बैठकर इस आग पर चर्चा करें तो यह आग बुझाई जा सकती है.

पलायन को मजबूर लोग

झरिया की भूमिगत आग की वजह से लोग बीमार पड़ रहे हैं और पलायन को मजबूर हैं. जरेडा के तहत पुनर्वास की रफ्तार भी काफी धीमी है. इन सारी समस्याओं को झेलते हुए झरियावासी आज भी अपने बेबसी पर मजबूर हैं और उन्हें किसी फरिश्ते का इंतजार है जो इन्हें इन समस्याओं से निजात दिला सके.

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पुनर्वास पर हो रहा काम

इस आग से प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 2010 में बेलगढ़िया में एक टाउनशिप बसाया जा रहा है. जहां 70 हजार से भी ज्यादा परिवारों को बसाया जाना है. धनबाद और झरिया से यह जगह 12 से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. इसके लिए झरिया विस्थापित पुनर्वास योजना (JRDA) बनाया गया है.

Last Updated : Feb 13, 2020, 2:18 PM IST
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