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कितना बढ़िया 'नया झरिया', जानिए बेलगड़िया टाउनशिप की 'हकीकत'

100 वर्ष पहले झरिया में लगी इस भूमिगत आग ने झरिया को उजड़ने पर मजबूर कर दिया. हमने आपको पहले दिखाया था कि झरिया में लोग कैसे संघर्ष कर रहे हैं और यहां से मजबूर होकर विस्थापन को मजबूर हैं. झरिया को पुनर्वासित कर बेलगड़िया में बसाया गया है. लेकिन इस नए झरिया में आकर लोग अब पुराने झरिया को ही बढ़िया कह रहे हैं.

jharia fire, झरिया की आग
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Published : Feb 22, 2020, 8:16 PM IST

धनबाद: धनबाद पूरे देश में कोयला राजधानी के नाम से जाना जता है. धनबाद की ये चमक झरिया की कोयला खानों की बदोलत है. लेकिन 100 वर्ष पहले झरिया में लगी इस भूमिगत आग ने झरिया को उजड़ने पर मजबूर कर दिया. हमने आपको पहले दिखाया था कि झरिया में लोग कैसे संघर्ष कर रहे हैं और यहां से मजबूर होकर विस्थापन को मजबूर हैं. झरिया को पुनर्वासित कर बेलगड़िया में बसाया गया है. लेकिन इस नए झरिया में आकर लोग अब पुराने झरिया को ही बढ़िया कह रहे हैं जानिए आखिर क्यों ?

देखें स्पेशल स्टोरी

खटाई में पड़ी पुनर्वास योजना

बता दें कि झरिया पुनर्वास और विकास प्राधिकार के तहत बेलगड़िया टाउनशिप का निर्माण कराया गया था. आग से प्रभावित लोगों को यहां पर बसाया जाना था, 2021 तक इस काम को पूरा कर लेना था लगभग एक लाख से अधिक लोग आग से प्रभावित हैं. जिसमें रैयतदारों की संख्या 32 हजार के करीब है और अतिक्रमणकारियों की संख्या 72 हजार के आस-पास है. बेलगड़िया और उसके आस-पास 849 एकड़ जमीन पर बन रहे टाउनशिप में बसाना था. 13 वर्षों में लगभग सिर्फ 3000 लोगों को ही अभी तक पुनर्वास किया गया है. ऐसे में अब यह काम 2021 तक पूरा होना असंभव सा लगता है. अभी तक सर्वे का भी काम पूर्ण रूप से नहीं हो पाया है. जो लोग पुनर्वास के तहत बेलगड़िया में आए भी हैं उनका कहना है कि इससे तो अच्छा आग प्रभावित पुराना झरिया ही था.

ये भी पढ़ें- धधकते अंगारों ने छीना इस शहर का चैन, जानिए दशकों पहले भड़की चिंगारी की कहानी

अधिकारियों पर मुहं फेरने का आरोप

यहां के लोगों का कहना है कि जो मकान बनाए गए हैं वह काफी छोटे-छोटे हैं. मात्र तीन-चार सालों में ही वह भी धंस कर गिरने लगा है. लोगों के घरों के ऊपर लगे पानी की टंकी से पानी लीकेज होता है इससे लोगों का घर में सोना भी दूभर हो गया है. यहां न तो रोजगार के साधन हैं और ना ही साफ-सफाई की व्यवस्था है. लोगों के घरों में बने शौचालय की टंकी भी लीकेज हो रही है और उसकी बदबू से यहां के लोग परेशान हैं. कई बार शिकायत करने के बावजूद भी जरेडा के अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. शहर से काफी दूर होने के कारण वहां पर यातायात की भी व्यवस्था नहीं है. जिससे लोग काफी परेशान है बेलगड़िया में स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नहीं है. स्थानीय लोगों की माने तो रात में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उस समय आने वाली गाड़ियां भी दोगुना-तिगुना भाड़ा वसूल करती हैं.

सिर्फ आग की तपिश से मिली मुक्ति

विस्थापित लोगों का कहना है कि जीते जी यहां गुजर-बसर करना काफी मुश्किल है. इतना ही नहीं मरने के बाद भी उन्हें दामोदर नदी स्थित शमशान घाट पर जाने के लिए भी चंदा इकट्ठा करना पड़ता है. उनकी माने तो उन्हें यहां सिर्फ आग की तपिश से राहत मिली है बाकी सब कुछ नारकीय है. ये लोग यहां 4 साल पहले आ चुके हैं, इनमें ज्यादातर कम पढ़े-लिखे लोग हैं. जिन्होंने आज तक अपना वोटर कार्ड भी नहीं बनवाया है. सिंदरी विधानसभा के अंतर्गत आने वाले बेलगड़िया टाउनशिप के लोग काफी संख्या में आज भी झरिया विधानसभा में वोटिंग देते हैं.

ये भी पढ़ें- एक ही मंडप में मां-बेटी ने लिए सात फेरे, अनोखी शादी के गवाह बने लोग

स्थिति में हो रहा सुधार-जरेडा के प्रभारी

इस पूरे मामले में जरेडा के प्रभारी पदाधिकारी कुमार बंधु कच्छप ने कहा कि रोजगार दिलाना जरेडा का काम नहीं था. हालांकि, रोजगार की समस्या को देखते हुए वहां पर कौशल विकास केंद्र के तहत अब लोगों को कई प्रकार की ट्रेनिंग दी जा रही है. स्वास्थ्य की समस्या पर उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के की तरफ से 108 नंबर पर डायल करने के बाद एंबुलेंस भी पहुंच रही है. उन्होंने यह भी माना कि अभी तक सर्वे का काम ही पूरा नहीं हो पाया है, ऐसे में 2021 तक सभी लोगों को पुनर्वासित करना असंभव सा दिख रहा है.

धनबाद: धनबाद पूरे देश में कोयला राजधानी के नाम से जाना जता है. धनबाद की ये चमक झरिया की कोयला खानों की बदोलत है. लेकिन 100 वर्ष पहले झरिया में लगी इस भूमिगत आग ने झरिया को उजड़ने पर मजबूर कर दिया. हमने आपको पहले दिखाया था कि झरिया में लोग कैसे संघर्ष कर रहे हैं और यहां से मजबूर होकर विस्थापन को मजबूर हैं. झरिया को पुनर्वासित कर बेलगड़िया में बसाया गया है. लेकिन इस नए झरिया में आकर लोग अब पुराने झरिया को ही बढ़िया कह रहे हैं जानिए आखिर क्यों ?

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खटाई में पड़ी पुनर्वास योजना

बता दें कि झरिया पुनर्वास और विकास प्राधिकार के तहत बेलगड़िया टाउनशिप का निर्माण कराया गया था. आग से प्रभावित लोगों को यहां पर बसाया जाना था, 2021 तक इस काम को पूरा कर लेना था लगभग एक लाख से अधिक लोग आग से प्रभावित हैं. जिसमें रैयतदारों की संख्या 32 हजार के करीब है और अतिक्रमणकारियों की संख्या 72 हजार के आस-पास है. बेलगड़िया और उसके आस-पास 849 एकड़ जमीन पर बन रहे टाउनशिप में बसाना था. 13 वर्षों में लगभग सिर्फ 3000 लोगों को ही अभी तक पुनर्वास किया गया है. ऐसे में अब यह काम 2021 तक पूरा होना असंभव सा लगता है. अभी तक सर्वे का भी काम पूर्ण रूप से नहीं हो पाया है. जो लोग पुनर्वास के तहत बेलगड़िया में आए भी हैं उनका कहना है कि इससे तो अच्छा आग प्रभावित पुराना झरिया ही था.

ये भी पढ़ें- धधकते अंगारों ने छीना इस शहर का चैन, जानिए दशकों पहले भड़की चिंगारी की कहानी

अधिकारियों पर मुहं फेरने का आरोप

यहां के लोगों का कहना है कि जो मकान बनाए गए हैं वह काफी छोटे-छोटे हैं. मात्र तीन-चार सालों में ही वह भी धंस कर गिरने लगा है. लोगों के घरों के ऊपर लगे पानी की टंकी से पानी लीकेज होता है इससे लोगों का घर में सोना भी दूभर हो गया है. यहां न तो रोजगार के साधन हैं और ना ही साफ-सफाई की व्यवस्था है. लोगों के घरों में बने शौचालय की टंकी भी लीकेज हो रही है और उसकी बदबू से यहां के लोग परेशान हैं. कई बार शिकायत करने के बावजूद भी जरेडा के अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. शहर से काफी दूर होने के कारण वहां पर यातायात की भी व्यवस्था नहीं है. जिससे लोग काफी परेशान है बेलगड़िया में स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नहीं है. स्थानीय लोगों की माने तो रात में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो उस समय आने वाली गाड़ियां भी दोगुना-तिगुना भाड़ा वसूल करती हैं.

सिर्फ आग की तपिश से मिली मुक्ति

विस्थापित लोगों का कहना है कि जीते जी यहां गुजर-बसर करना काफी मुश्किल है. इतना ही नहीं मरने के बाद भी उन्हें दामोदर नदी स्थित शमशान घाट पर जाने के लिए भी चंदा इकट्ठा करना पड़ता है. उनकी माने तो उन्हें यहां सिर्फ आग की तपिश से राहत मिली है बाकी सब कुछ नारकीय है. ये लोग यहां 4 साल पहले आ चुके हैं, इनमें ज्यादातर कम पढ़े-लिखे लोग हैं. जिन्होंने आज तक अपना वोटर कार्ड भी नहीं बनवाया है. सिंदरी विधानसभा के अंतर्गत आने वाले बेलगड़िया टाउनशिप के लोग काफी संख्या में आज भी झरिया विधानसभा में वोटिंग देते हैं.

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स्थिति में हो रहा सुधार-जरेडा के प्रभारी

इस पूरे मामले में जरेडा के प्रभारी पदाधिकारी कुमार बंधु कच्छप ने कहा कि रोजगार दिलाना जरेडा का काम नहीं था. हालांकि, रोजगार की समस्या को देखते हुए वहां पर कौशल विकास केंद्र के तहत अब लोगों को कई प्रकार की ट्रेनिंग दी जा रही है. स्वास्थ्य की समस्या पर उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के की तरफ से 108 नंबर पर डायल करने के बाद एंबुलेंस भी पहुंच रही है. उन्होंने यह भी माना कि अभी तक सर्वे का काम ही पूरा नहीं हो पाया है, ऐसे में 2021 तक सभी लोगों को पुनर्वासित करना असंभव सा दिख रहा है.

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