रांचीः झारखंड राज्य गठन के बाद सबसे ज्यादा आंदोलन किसी संगठन ने किया है तो वो वर्ग शिक्षकों का रहा है. पारा शिक्षक, माध्यमिक शिक्षकों का प्रमोशन या वित्त रहित विद्यालयों की मान्यता को लेकर समय-समय पर सरकार के निर्णय का मसला हो. इन सभी मुद्दों पर राजधानी रांची की सड़कों पर आंदोलन होते रहे हैं और इस दौरान पुलिस की लाठी चलती रही है.
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22 वर्ष में शिक्षा का स्तरः 22 वर्ष के कालखंड में झारखंड में शिक्षा को लेकर हर समय प्रयोग होते रहे (Education Condition of Jharkhand After 22 Years) हैं. विभागीय अधिकारियों के अनुसार शिक्षा विभाग के तौर तरीके भी बदलते रहे. जिस वजह से जिन शिक्षकों को स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना चाहिए वो सड़कों पर आंदोलन करते रहे. इन सबके बीच जो भी सरकारें बनी, स्कूलों में क्वालिटी एजुकेशन पर जोर जरूर देती रही. समय के साथ शिक्षक रिटायर होते चले गए और जो बचे हुए शिक्षकों पर बच्चों को पढ़ाने के बजाय गैर शैक्षणिक कार्य का बोझ बढ़ता गया. आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 45908 स्कूल हैं जिनमें 14 फीसदी स्कूलों में एक ही शिक्षक ही विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं. बिहार के बाद झारखंड दूसरा ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं. आकलन के अनुसार राज्य में सबसे ज्यादा शिक्षकों के खाली पद ग्रामीण क्षेत्रों में है जिसमें करीब 50,000 पद अभी भी खाली हैं.
माध्यमिक शिक्षकों को अब तक नहीं मिला प्रमोशनः राज्य गठन के बाद शिक्षक वर्ग ने सबसे ज्यादा आंदोलन किया है (Para Teacher Movement in Jharkhand). शिक्षा के मुद्दों पर राजधानी रांची समेत प्रदेश की सड़कों पर आंदोलन होते रहे हैं और इस दौरान पुलिस की लाठी भी उनपर खूब चली. पारा शिक्षकों के आंदोलनों को आंशिक रूप से समाप्त करते हुए हेमंत सरकार इसे बड़ी सफलता मान रही है मगर पारा शिक्षकों का वेतनमान का मसला आज भी लटका हुआ है. दुखद पहलू यह है कि 22 वर्षों में माध्यमिक शिक्षकों को प्रमोशन सरकार नहीं दे पाई, जिसको लेकर हमेशा आंदोलन होते रहे हैं. 2004 से इसको लेकर चल रहा आंदोलन 2016 में सुलझता दिखा. तत्कालीन सरकार ने नियमावली बनाकर कैबिनेट में माध्यमिक शिक्षकों के प्रोन्नति नियमावली को लेकर फैसला लिया, मगर यह आज तक अमल में नहीं उतर पाया.
एमएसईबी संघर्ष मोर्चा झारखंड के बैनर तले आंदोलन कर रहे शिक्षक संघ के संयोजक अमरनाथ झा कहते हैं कि राज्य गठन के बाद से अब तक सरकार शिक्षा को लेकर गंभीर नहीं रही. जिस वजह से एक तरफ स्कूलों में शिक्षकों की कमी को नहीं दूर किया गया. वहीं दूसरी तरफ जो भी शिक्षक सेवारत रहे उन्हें गैर शैक्षणिक कार्य में लगा कर सरकार ने उन्हें शैक्षणिक कार्यों से अलग कर दिया.
शिक्षक को पूरे सेवाकाल में प्रोन्नति नहीं मिलीः उन्होंने माध्यमिक शिक्षकों के प्रमोशन राज्य गठन के बाद से अब तक नहीं दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार एक तरफ हर कर्मचारियों को एक समान मानती है. वहीं दूसरी तरफ कितनी विडंबना है कि एक शिक्षक को पूरे सेवाकाल में एक प्रोन्नति तक नहीं मिलती. 2004 में जो माध्यमिक शिक्षकों की नियमावली बनी उसमें प्रोन्नति संबंधी प्रावधान नहीं था. काफी जद्दोजहद के बाद राज्य सरकार ने 2016 में नियमावली बनाकर प्रोन्नति का प्रावधान उसमें जरूर शामिल किया. कैबिनेट से पास भी उसे कराया गया, जिसके तहत राज्य के गुमला सहित 3 जिलों में माध्यमिक शिक्षकों को प्रमोशन देने की तैयारी भी शुरू हुई. मगर उसके बाद अन्य जिलों में आज तक शिक्षकों को प्रोन्नति का लाभ नहीं मिला. अब तो हालत यह है कि पिछले वर्ष 2021 में गुमला सहित कुछ जिलों के शिक्षकों को जो प्रोन्नति मिली थी. उन्हें भी वापस लेने की तैयारी निदेशालय स्तर से होने लगी. जबकि प्रावधान के अनुसार शिक्षकों को पूरे सेवाकाल में दो प्रोन्नति देने का प्रावधान है.
दूर के ढोल के समान है क्वालिटी एजुकेशनः इसी तरह वित्त रहित स्कूलों की स्थिति है जो सरकार के अनुदान पर कार्यरत है. समय पर अनुदान मिलने की बात तो दूर इन स्कूलों की मान्यता को लेकर विभाग और स्कूल शिक्षकों के बीच दो दो हाथ होता रहा है. इन सबके बीच राज्य में निजी स्कूलों को टक्कर देने के लिए मॉडल स्कूल खोलने की तैयारी की जा रही है. मगर सच्चाई यह है कि आज भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे मुफ्त किताब और पोषाहार को लेकर जद्दोजहद करते रहते हैं और इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक इनकी मांगों को पूरा करने के लिए शिक्षा विभाग की दौड़ लगाते फिरते हैं. अगर इनसे फुर्सत मिलती है तो सरकार के द्वारा निर्देशित जाति प्रमाण पत्र बनाने जैसे कामों में इन्हें ड्यूटी में लगाई जाती है. ऐसे में क्वालिटी एजुकेशन की बात करना वाकई में दूर के ढोल के समान है.